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दिल्ली चुनाव में दलितों का रुझान क्या रहेगा? जानें सर्वे के नतीजे

दिल्ली विधानसभा चुनाव में दलितों का क्या रुख रहेगा? दलितों का आप, बीजेपी और कांग्रेस को लेकर अब तक क्या रुझान रहा है? उनका पसंदीदा नेता पीएम मोदी हैं या फिर अरविंद केजरीवाल या राहुल गांधी? वे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए किस पार्टी पर अपना भरोसा जताते हैं? कुछ ऐसे ही सवालों को लेकर एक सर्वे किया गया है और इसपर दलितों की मिलीजुली प्रतिक्रिया आई है।

यह सर्वे नैशनल कन्फ़डरेशन ऑफ़ दलित एंड आदिवासी ऑर्गनाइजेशन यानी नैकडोर और द कनवर्जेन्ट मीडिया यानी टीसीएम ने किया है। नैकडोर और टीसीएम का साझा सर्वे 1 जनवरी से 15 जनवरी के बीच हुआ। कुल 70 महिला वॉलन्टियर्स ने इस सर्वे को अंजाम दिया।

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सर्वेक्षण का सैम्पल साइज 6256 है। इसमें 3865 पुरुष और 2574 महिलाएं शामिल हैं। दलित वोटरों को समझने के लिए आरक्षित और गैर आरक्षित सभी सीटों पर फोकस किया गया। यह बात हमेशा से उल्लेखनीय रही है कि दलित वोटरों का रुझान चुनाव नतीजों की दिशा तय करते हैं।

प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर नैकडोर के प्रमुख अशोक भारती, टीसीएम के डायरेक्टर व वरिष्ठ पत्रकार प्रेम कुमार और वरिष्ठ पत्रकार रंजन कुमार ने रिपोर्ट को जारी किया। सर्वे में नाम, पता, उम्र, लिंग जैसी जानकारियों के अतिरिक्त 10 सवाल किए गये। इन सवालों के ज़रिए दलित वोटरों के मूड, रुझान और नज़रिए को समझने का प्रयास किया गया है।

2024 लोकसभा चुनाव में दलितों ने किसे वोट दिया?

सर्वेक्षण में यह दिखता है कि दलित इंडिया गठबंधन की ओर झुकाव रखते हैं। 52 फीसदी दलितों ने माना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने आप और कांग्रेस के गठबंधन को वोट किया था। 46 फीसदी दलित वोटरों ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट देने की बात मानी है। दलित महिलाओं में 53 फीसदी वोटर मानती हैं कि उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान इंडिया गठबंधन को वोट किया था। 45 फीसदी महिला दलित वोटरों ने बीजेपी को वोट देने की बात कही है।

delhi dalit mood survey before assembly elections 2025 - Satya Hindi

39 फीसदी दलित वोटर इंडिया गठबंधन को अपना हितैषी मानते हैं तो 25 फीसदी दलित वोटर एनडीए को। इंडिया गठबंधन को हितैषी मानने वाली दलित महिलाएं 42 फीसद हैं तो 25 फीसदी दलित महिलाएँ एनडीए को हितैषी मानती हैं।

विधानसभा 2020 चुनाव में किसे वोट दिया?

सर्वेक्षण के नतीजे बताते हैं कि दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के मुक़ाबले दलितों के बीच कांग्रेस का रुझान और समर्थन बढ़ा है। बीते विधानसभा चुनाव में 11 फीसदी दलितों ने कांग्रेस को वोट देने की बात कही है जबकि 5 फरवरी को होने जा रहे विधानसभा चुनाव में 21 फीसदी दलित मतदाताओं ने कांग्रेस को वोट देने की बात कही है। महिलाओं में भी यह झुकाव विगत विधानसभा चुनाव में 9 फीसदी से बढ़कर आगामी विधानसभा चुनाव के लिए 19 फीसदी होता दिख रहा है।

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महंगाई-बेरोजगारी सबसे बड़े मुद्दे 

दिल्ली विधानसभा चुनाव में महंगाई और बेरोजगारी सबसे बड़े मुद्दे हैं। महंगाई को 49 फीसदी दलित वोटर मुद्दा मानते हैं जबकि बेरोजगारी को 33 फीसदी। दोनों को जोड़कर देखें तो 92 फीसदी वोटर महंगाई या बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं। छुआछूत को 7 फीसदी और सांप्रदायिकता को 3 फीसदी वोटर बड़ा मुद्दा मान रहे हैं। दलित महिलाओं में 57 फीसदी महंगाई को और 31 फीसदी बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा मानती हैं।

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सबसे अच्छा मुख्यमंत्री कौन?

मुख्यमंत्री के तौर पर दलित वोटरों में अरविन्द केजरीवाल के कार्यकाल को 51 फीसदी लोगों को पसंद किया है। दलित महिलाओं में केजरीवाल ज़्यादा लोकप्रिय हैं। 55 फीसदी महिलाओं को अरविन्द केजरीवाल का कार्यकाल अच्छा लगता है। 

12 साल बाद भी जेहन में शीला दीक्षित : शीला दीक्षित का कार्यकाल 12 साल बाद भी 32 फीसदी दलित वोटरों की पसंद है।

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‘आप’ की लोकप्रियता घटने के बावजूद शीर्ष पर 

दलितों में आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता घटने के बावजूद शीर्ष पर है। 53 फीसदी मतदाताओं ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आम आदमी पार्टी को वोट देने की बात मानी है। लेकिन, आगामी विधानसभा चुनाव में 9 फीसदी कम यानी 44 फीसदी लोगों ने आम आदमी पार्टी को वोट देने की बात मानी है। महिलाओं में 8 फीसदी समर्थन घटा दिखता है। 2020 के विधानसभा चुनाव में 55 फीसदी महिलाओं ने आम आदमी पार्टी को वोट देने की बात कही है, जबकि आगामी विधानसभा चुनाव में 47 फीसदी महिलाएं आम आदमी पार्टी को वोट करने जा रही हैं।

दलितों में बीजेपी के वोट शेयर में कमी 

सर्वेक्षण में दलित वोटरों में बीजेपी का वोट शेयर एक फीसदी घटता दिख रहा है। विधानसभा चुनाव 2020 में बीजेपी को वोट करने की बात 33 फीसदी दलित वोटरों ने मानी है। वहीं आगामी विधानसभा चुनाव में 32 फीसदी दलित वोटर बीजेपी को वोट देने की बात कह रहे हैं। महिलाओं के बीच विगत विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले वोटों में 2 फीसदी की गिरावट आयी है। हमारे ही सर्वेक्षण में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को वोट करने की बात 46 फीसदी दलित वोटरों ने मानी है। लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले दलित वोटरों में बीजेपी के वोट 14 फीसदी कम होते दिख रहे हैं। 

समस्याएं हल करने का भरोसा किस पर?

38 फीसदी दलित वोटर कांग्रेस को ऐसी पार्टी मानते हैं जो समस्याओं को हल करने की कोशिश कर रही है। बीजेपी के लिए ऐसा सोचने वाले 33 फीसद हैं तो आम आदमी पार्टी के लिए ऐसा सोचने वाले 18 फीसदी हैं।

महिला वोटरों को समस्याएँ हल करने का भरोसा कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी पर है। बीजेपी के लिए 33 फीसदी और कांग्रेस के लिए 30 फीसदी महिलाएं ऐसा कहती नज़र आईं। आप के लिए 26 फीसदी महिलाओं ने कहा कि समस्याएं हल करने का भरोसा उन्हें आप पर है।

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प्रदूषण के लिए दिल्ली सरकार जिम्मेदार

प्रदूषण के लिए दलित वोटर दिल्ली सरकार को जिम्मेदार मानते हैं। 39 फीसदी दलित वोटर ऐसा सोचते हैं। केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताने वाले 17 फीसदी हैं। दोनों को जिम्मेदार बता रहे दलित वोटर 27 फीसदी हैं। 17 फीसदी इस सवाल का जवाब नहीं दे सके।

नरेंद्र मोदी पसंदीदा राष्ट्रीय नेता

दिल्ली के दलित वोटरों में राष्ट्रीय स्तर पर पसंद के नेता नरेंद्र मोदी हैं। सर्वेक्षण में 38 फीसदी दलित वोटरों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पसंदीदा नेता माना है।

दिल्ली के दलित वोटरों में राहुल गांधी 33 फीसदी समर्थन लेकर राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे सबसे ज्यादा पसंदीदा नेता बने हुए हैं। दिल्ली में यह आंकड़ा कांग्रेस के लिए इसलिए सुखद है क्योंकि कांग्रेस का कोई सांसद या विधायक दिल्ली से नहीं है।

दिल्ली के दलित वोटरों में अरविन्द केजरीवाल को राष्ट्रीय स्तर पर पसंदीदा नेता मानने वाले 18 फीसद दलित वोटर हैं जबकि मायावती के लिए यह समर्थन 3 फीसदी दिखता है।

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दलित महिलाओं में राहुल गांधी पसंदीदा, मोदी दूसरे नंबर पर 

दलित महिलाओँ के बीच राहुल गांधी ने दिल्ली में पसंदीदा नेता के तौर पर लीड ले ली है। 33 फीसदी दलित महिलाएँ राहुल गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर पसंदीदा नेता मानती हैं तो 31 फीसदी नरेंद्र मोदी को। 30 फीसदी महिलाएं अरविन्द केजरीवाल को राष्ट्रीय पसंदीदा नेता मानती हैं।

2014 के पहले का समय अच्छा था?

दलित वोटरो में यह धारणा मजबूत है कि 2014 से पहले का समय अच्छा था। 37 प्रतिशत लोग ऐसा मानते हैं। 2014 के बाद के समय को अच्छा बताने वाले 31 फीसदी दलित वोटर हैं। 27 फीसदी दलित वोटरों को 2014 से पहले या उसके बाद एक जैसा ही महसूस होता है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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