दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए तारीख़ों की घोषणा हो गई। चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच तलवारें खीचीं है। दोनों दल आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान चला रहे हैं। हालाँकि, कांग्रेस और आप के बीच समझौता नहीं होने की वजह से त्रिकोणीय मुक़ाबला है।
पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आप लगातार तीसरी बार सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा राष्ट्रीय राजधानी में सत्ता हथियाने की कोशिश में है। कांग्रेस भी कड़ी टक्कर देने की तैयारी कर रही है और उसे उम्मीद है कि वह चौंकाने वाली जीत हासिल करेगी। तो सवाल है कि इस चुनाव में किसका पलड़ा भारी है?
मौज़ूदा राजनीतिक समीकरणों से तो इसको समझा ही जा सकता है, पिछले चुनाव नतीजे भी इसे समझने में मदद कर सकते हैं। 2003 से 2020 के बीच चुनाव नतीजों के आँकड़ों से इसकी तुलना की जा सकती है। 2003 और 2020 के बीच आप को 62 सीटों का फायदा हुआ। कांग्रेस की 47 सीटें कम हुईं और बीजेपी की 12 सीटें कम हुईं।
इन 17 सालों के बीच वोट प्रतिशत में भी इसी तरह का बदलाव आया है। 2003 से 2020 के बीच आप को 54 फ़ीसदी वोटों का फायदा हुआ, जबकि कांग्रेस को 44 फीसदी वोटों का नुक़सान हुआ और बीजेपी को 4 फ़ीसदी वोटों का फायदा हुआ। अन्य को 13 फीसदी वोटों का नुक़सान हुआ।
वैसे, दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आप ने बड़ी जीत हासिल की थी। तब उस चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को 70 में से 62 सीटें मिली थीं। बीजेपी 8 सीटों पर सिमट गई थी। पिछले चुनाव की तरह कांग्रेस जीरो पर ही रही। हालाँकि, आप को इस चुनाव में पाँच सीटों का नुक़सान हुआ था।
इससे पहले दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में आप ने रिकॉर्ड 67 सीटें जीती थीं। तब बीजेपी सिर्फ़ 3 सीटें ही जीत पाई थी। 2015 के चुनाव में कांग्रेस की हालत ख़राब थी और वह एक भी सीट नहीं जीत पाई थी।
इस चुनाव में आप को 54.3 फीसदी, बीजेपी को 32.2 फीसदी और कांग्रेस को 9.7 फीसदी वोट मिले थे।
उससे पहले विधानसभा चुनाव 2013 में आम आदमी पार्टी पहली बार चुनाव लड़ने उतरी थी। तब उसने 28 सीटों पर जीत हासिल की थी। उस चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसे 31 सीटें मिली थीं। कांग्रेस 8 सीटें जीतकर सत्ता से बाहर हो गई थी। हालाँकि, कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए आप को समर्थन दे दिया था। अरविंद केजरीवाल की सरकार कुछ दिनों तक कांग्रेस के सहयोग से चली।
हालाँकि, सत्ता में आने के महज 49 दिन बाद ही केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी जन लोकपाल विधेयक पारित न कर पाने का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।
विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हालत ख़राब दिखती है, लेकिन लोकसभा चुनाव में दिल्ली में स्थिति उलट हो जाती है। 2013 में आप को 30 फीसदी वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 33 फीसदी। लेकिन इसके तुरंत बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 46 फीसदी और आप को 33 फीसदी वोट मिले। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप को 54 फीसदी वोट मिले तो बीजेपी का वोट शेयर घटकर 32 फीसदी हो गया।
बता दें कि विधानसभा चुनाव को सभी खेमों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है। पिछले साल सितंबर में शराब नीति मामले में जमानत मिलने के बाद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, इसके बाद आप ने घोषणा की थी कि दिल्ली की जनता उन पर भरोसा जताने के बाद वह सत्ता में वापस आएंगे।
इस बीच, भाजपा आप को सत्ता से बेदखल करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है और पार्टी पर हर स्तर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा रही है।
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