पायल कपाड़िया सुर्खियों में हैं। उन्होंने कान्स फिल्म फेस्टिवल में इतिहास रच दिया। वह ग्रैंड प्रिक्स पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म निर्माता बनी हैं। इनकी इस उपलब्धि पर एफ़टीआईआई से लेकर पीएम मोदी तक गर्व कर रहे हैं। लेकिन इन्हीं पायल कपाड़िया पर इसी एफ़टीआईआई ने कभी दंडात्मक कार्रवाई की थी। वह भी अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़े मामले के लिए। उस अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए जिसके बिना अच्छी फिल्म नहीं बनायी जा सकती है और जिसके बिना कान्स फ़िल्म फेस्टिवल जैसा पुरस्कार जीतना आसान नहीं।
पायल कपाड़िया पर वह क्या दंडात्मक कार्रवाई की गई थी और इसमें बीजेपी का कैसे जुड़ाव था, इसको जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर पायल कपाड़िया की तारीफ़ में अब क्या कहा जा रहा है। एफ़टीआईआई ने ट्वीट किया है, 'यह एफटीआईआई के लिए गर्व का क्षण है क्योंकि इसके पूर्व छात्रों ने कान्स में इतिहास रचा है। जैसा कि हम 77वें कान्स फिल्म महोत्सव में भारतीय सिनेमा के लिए एक अभूतपूर्व वर्ष देख रहे हैं, एफटीआईआई सिनेमा के इस मेगा अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने पूर्व छात्रों की शानदार उपलब्धियों का जश्न मना रहा है।'
It is a moment of pride for FTII as its Alumni create history at Cannes.
— FTII (@FTIIOfficial) May 26, 2024
As we witness a phenomenal year for Indian Cinema at 77th Cannes Film Festival, FTII cherishes the glorious achievements of its Alumni at this Mega International Stage of Cinema.#cannes2024 #cannesawards pic.twitter.com/3fFURhzuSK
प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर लिखा है, 'भारत को पायल कपाड़िया पर 'ऑल वी इमेजिन एज लाइट' के लिए 77वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में ग्रैंड प्रिक्स जीतने की ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए गर्व है। एफटीआईआई की पूर्व छात्रा की उल्लेखनीय प्रतिभा वैश्विक मंच पर चमकती रही है। यह भारत में समृद्ध रचनात्मकता की झलक देती है। यह प्रतिष्ठित सम्मान न केवल उनके असाधारण कौशल का सम्मान करता है बल्कि भारतीय फिल्म निर्माताओं की नई पीढ़ी को भी प्रेरित करता है।'
जिन पायल कपाड़िया के लिए ऐसी-ऐसी तारीफ़ें की जा रही हैं, उन पर 2015 में कड़ी कार्रवाई की गई थी। 2015 में कपाड़िया उन छात्रों में से थीं जिन्होंने एफटीआईआई अध्यक्ष के रूप में अभिनेता गजेंद्र चौहान की नियुक्ति का विरोध किया था। चौहान हिंदी फिल्म उद्योग के अभिनेता और भारतीय जनता पार्टी के सदस्य हैं। आरोप लगाया गया था कि चौहान के पास उस प्रतिष्ठित संस्थान का नेतृत्व करने की योग्यता नहीं थी। तब चौहान के नाम का ख़ूब विरोध भी हुआ था।
इस बीच, कपाड़िया को 2017 में अच्छी ख़बर मिली। उनकी लघु फिल्म आफ्टरनून क्लाउड्स को कान्स के सिनेफॉन्डेशन सेक्शन के लिए चुना गया। यह दुनिया भर के फिल्म स्कूलों के लिए खुला है।
एफटीआईआई ने तीसरे वर्ष की इस छात्रा की कान्स की यात्रा के लिए आर्थिक सहयोग दिया। हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, एफटीआईआई ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि उसने कपाड़िया को अपने आचरण में अनुशासित पाया।
कपाड़िया तब से लगातार मजबूत होती गईं। 2019 में उन्होंने डॉक्यूमेंट्री 'ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग' पूरी की। फिल्म को कान्स के लिए चुना गया, जहां इसने सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री के लिए गोल्डन आई पुरस्कार जीता।
बता दें कि पायल कपाड़िया ने अपनी फिल्म 'ऑल वी इमेजिन एज़ लाइट' के लिए कान्स फ़िल्म फेस्टिवल में ग्रैंड प्रिक्स पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म निर्माता बनकर इतिहास रच दिया है। शनिवार रात को समापन समारोह में फिल्म को यह पुरस्कार मिला। यह पाल्मे डी'ओर के बाद महोत्सव का दूसरा सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। पायल की फिल्म 30 वर्षों में पहली भारतीय फिल्म है और किसी भारतीय महिला निर्देशक द्वारा मुख्य प्रतियोगिता में प्रदर्शित होने वाली पहली फिल्म है।
इस वर्ष कान्स में एफटीआईआई की अन्य प्रतिभाएँ भी चमकीं। एफटीआईआई के छात्र चिदानंद एस नाइक की 'सनफ्लावर वेयर द फर्स्ट वन्स टू नो' ने छात्र फिल्म श्रेणी में शीर्ष पुरस्कार जीता। इस साल के कान्स चयन में मैसम अली की इन रिट्रीट शामिल है।
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