2022 का साल कोरोना की महामारी से राहत की ख़बर के साथ शुरू हुआ था और हिंदी फिल्म उद्योग को उम्मीद बंधी थी कि लॉकडाउन की पाबंदियों की वजह से सिनेमाघरों से दो साल दूर रहे दर्शक वापस लौटेंगे और कारोबार फिर चल निकलेगा। साल बीतते-बीतते हिंदी सिनेमा बुरी तरह लड़खड़ाता दिख रहा है ।

साल 2023 में पठान से लेकर द कश्मीर फाइल्स और लाल सिंह चड्ढा जैसी कई फिल्में चर्चा के केंद्र में रहीं। कई फिल्मों को लेकर सोशल मीडिया पर बॉयकॉट का अभियान चलाया गया। क्या 2023 में कुछ बदलेगा या हालात ऐसे ही रहेंगे?
इसकी वजह सिर्फ हिट-फ्लॉप का गणित या मुंबइया मसाला फिल्मों के कारख़ाने से निकल रही कमजोर कहानियों वाली लचर फिल्में ही नहीं हैं , बल्कि फिल्मों और कलाकारों को लेकर इस साल जिस तरह के तमाम विवाद हुए और कई फिल्मों के बहिष्कार के फ़तवे जारी किये गये, उससे फिल्म उद्योग के अस्तित्व के लिए ही गंभीर चुनौतियाँ खडीं हो गई हैं।
शाहरुख खान और दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘पठान’ के एक गाने के बोल और हीरोइन की पोशाक के रंग को लेकर एक सुनियोजित सांप्रदायिक बवाल मचाया गया और बहुसंख्यक वर्ग की आहत भावनाओं के शोरशराबे के दबाव में सेंसर बोर्ड को इस फिल्म के निर्माताओं को बदलाव करने को कहना पड़ा । यह सेंसर बोर्ड के दब्बूपने के साथ साथ हिंदी फिल्म उद्योग के भगवाकरण की लगातार तेज़ होती कोशिशों की बानगी है।