फ़िल्म- गुल मकई
डायरेक्टर- एच.ई. अमजद
स्टार कास्ट- रीमा शेख, अतुल कुलकर्णी, दिव्या दत्ता, मुकेश ऋषि, ओम पुरी, पंकज त्रिपाठी
शैली- बायोग्राफ़ी
रेटिंग- 1.5/5
काल्पनिक कहानियों से हटकर बायोपिक और सच्ची घटनाओं पर फ़िल्में बनाना अब आम हो गया है और इसी कड़ी में एक और फ़िल्म जुड़ गई है। फ़िल्म का नाम ‘गुल मकई’ है और इसे डायरेक्टर एच.ई. अमजद ने डायरेक्ट किया है। डायरेक्टर अमजद की यह दूसरी फ़िल्म है और इसमें उन्होंने पाकिस्तान की सामाजिक कार्यकर्ता मलाला युसुफजई के संघर्ष भरे जीवन पर रोशनी डालने की कोशिश की है। तो आइये जानते हैं क्या है फ़िल्म की कहानी-
फ़िल्म ‘गुल मकई’ की शुरुआत एक छोटे कस्बे मीन्गोरा से शुरू होती है जो कि पाकिस्तान की स्वात घाटी के पास बसा हुआ है। यहीं पर जियाउद्दीन युसुफजई (अतुल कुलकर्णी) उनकी पत्नी (दिव्या दत्ता) बेटी मलाला युसुफजई (रीमा शेख) व अन्य दो बच्चे रहते हैं। स्वात वैली में तालिबानियों का दहशत चारों ओर फैला हुआ है और वे सभी को धार्मिक रूढ़ीवादिता को थोपना चाहते हैं। तालिबानियों में मौलाना फजलुल्लाह (मुकेश ऋषि) नाम का एक व्यक्ति भी है जिसके लिए जिहाद के नाम पर लोगों को मारना कोई बड़ी बात नहीं है। मलाला जो कि पढ़ने में तेज़ हैं और आगे पढ़ने की ख्वाहिश रखती हैं, उनकी पढ़ाई तालिबानियों के कहर के कारण बंद हो जाती है। इस लड़ाई में मलाला को गोली भी खानी पड़ी। तो आगे मलाला ने पढ़ाई कैसे की और किस तरह से मलाला ने लड़कियों की पढ़ाई के लिए आवाज़ उठाई? यह सब जानने के लिए आप शुक्रवार को यह फ़िल्म देखने के लिए पहुँच जाइये।
कौन हैं मलाला?
मलाला का जन्म 1997 में पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा की स्वात घाटी में हुआ था। साल 2007 में तालिबानियों ने जिहाद के नाम पर स्वात घाटी में आतंक मचाया था और इसी दौरान मलाला का स्कूल जाना बंद हो गया था। मलाला ने ‘गुल मकई’ के नाम से बीबीसी के लिए ब्लॉग लिखना शुरू किया, जिसमें वह स्वात घाटी के माहौल के बारे में लिखती थीं। इसके बाद मलाला ने पेशावर में एक मशहूर भाषण भी दिया था, जिसके बाद लोग उन्हें जानने लगे थे। मलाला लड़कियों की पढ़ाई को लेकर काफ़ी चिंतित थीं और उनका कहना था कि तालिबान लड़कियों से उनकी शिक्षा का हक कैसे छीन सकता है। साल 2012 में तालिबानी आतंकियों ने मलाला को गोली मार दी थी। जिसके बाद उन्हें इलाज के लिए ब्रिटेन ले जाया गया था और वहाँ से मलाला स्वस्थ होकर लौटीं।
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इसके बाद मलाला को अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार, राष्ट्रीय युवा शांति पुरस्कार और अन्य कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। लड़कियों की शिक्षा के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाली बहादुर मलाला के लिए संयुक्त राष्ट्र ने मलाला के जन्मदिन की तारीख़ 12 जुलाई को ‘मलाला दिवस‘ के रूप में घोषित किया। इसके बाद मलाला को साल 2013 में नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया।
कलाकारों की अदाकारी-
फ़िल्म ‘गुल मकई’ में मलाला के किरदार में रीमा शेख की एक्टिंग में दम नहीं दिखा। तो वहीं उनके माता-पिता के रोल में अतुल कुलकर्णी व दिव्या दत्ता ने अच्छी एक्टिंग की है। इसके अलावा मुकेश ऋषि ने अपने किरदार के साथ पूरी तरह से न्याय किया। स्वर्गीय ओम पुरी, पंकज त्रिपाठी की भी एक्टिंग हमेशा की तरह बेहतरीन रही।
एच.ई. अमजद ने फ़िल्म को बनाने में काफ़ी मेहनत की है, जो कि आपको फ़िल्म देखने के बाद पता चलेगा। डायरेक्टर अमजद ने हर एक सीन रियल दिखाने की कोशिश की है। एक्टर पंकज त्रिपाठी की एक्टिंग का डायरेक्टर लाभ नहीं उठा पाए और उन्हें बेहद कम स्क्रीन दी गई।
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क्यों देखें फ़िल्म?
अगर आप मलाला या तालिबानी हमलों के बारे में थोड़ा जानना चाहते हैं तो यह फ़िल्म देख सकते हैं। अगर आप बायोपिक देखना पसंद करते हैं तो ही आप यह फ़िल्म देख सकते हैं।
क्यों न देखें फ़िल्म?
‘गुल मकई’ एक बायोग्राफ़ी फ़िल्म है और इसमें मलाला के संघर्ष के बारे में होना चाहिए था लेकिन इसमें उनके संघर्ष को नाम मात्र का भी नहीं दिखाया गया है। उसकी जगह आतंकियों द्वारा किए जा रहे हमलों को ज़्यादा केंद्रित किया गया है। जो कि एक वक़्त के बाद आपको बोर कर देगा।
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