कास्ट-दिलजीत दोसांझ, परिणीति चोपड़ानिर्देशक- इम्तियाज अली

अमर सिंह चमकीला एक बायोपिक है। चमकीला ने दो शादियां की थीं। उन्होंने दूसरी शादी की तो अपनी पहली पत्नी के बारे में दूसरी को नहीं बताया था। चमकीला को समाज कैसे देखता है? पढ़िए फिल्म की समीक्षा।
पंजाब के गायक अमर सिंह चमकीला ऊर्फ धनीराम के जीवन पर बनी बायोपिक "चमकीला" ( चमकीला की भूमिका में दिलजीत दोसांझ) पर अब तक इतना लिखा जा चुका है कि मामला अब बहसों और विमर्शों से परे जा चुका है। इतने लोगों ने इस पर अपनी राय-कुराय व्यक्त की है कि "चमकीला" की चमक धूमिल होने लगी है। फिल्म को लेकर समाज दो भागों में बंट चुका है। एक धड़ा इसे खराब बताने पर तुला है तो दूसरा पक्ष इसे महान बता रहा है। सबके पास अपने तर्क -कुतर्क हैं। उसे इतिहास के अंधेरे कोने में ढकेलने की पूरी तैयारी है इस बहसबाज समाज की, जो एक सिनेमा को अलग-अलग कसौटी पर कसता है, सिर्फ सिनेमा को सिनेमा की तरह नहीं देखता। वह ऐसी बहसों और दलीलों में उलझ जाता है कि एक कमजोर दिल निर्देशक फिल्म बनाने से संन्यास ले ले। सिनेमा प्रेमी होना और सिनेमा को समझने वाले दो अलग लोग हो सकते हैं। हमें सिनेमा को उसके टूल्स से समझना होगा। न कि उसे सवालों के घेर में लेकर उससे जिरह प्रारंभ कर दें। एक निर्देशक ने फिल्म बनाई है और आप उसे देखने और समझने की कोशिश सिनेमा के दायरे में करें तो बेहतर। दिक्कत तब आती है जब हम सिनेमा को "विजुअल" माध्यम की तरह न देख कर उसे "टेक्सचुअल" नजरिये से देखने लगते हैं।
यह सच है कि हर कला सवाल उठाती है। अपने तमाम सम्मोहनों के बावजूद सिनेमा बेहद असरकारक माध्यम है जो तत्क्षण विचलित कर सकता है। "चमकीला" ने क्या किया। यही तो किया कि उसे देखते ही समूचा समाज उद्वेलित हो उठा। उद्वेलन ठीक है, उसके साथ न्याय जुड़ा होना चाहिए और उस पर एक सार्थक बहस हो।