भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर सरकारी देशभक्ति, राष्ट्रवाद के शोरशराबे और उत्साह के बीच देश की विकास यात्रा को समझने के लिए हिंदी सिनेमा एक दिलचस्प नज़रिया और बहुत कारगर ज़रिया है। भारत जैसे देश में जहाँ हर साल हज़ारों फिल्में बनती हैं, जहाँ फिल्म कलाकारों को लेकर दीवानगी का एक अलग ही आलम रहता है, जहाँ फिल्मी संवाद और गाने हमारे जीवन के हर मोर्चे पर, हर मौके पर हमारे साथ रहते हैं, वहाँ सिनेमा को सही मायने में साहित्य की ही तरह समाज का दर्पण कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। वैसे भी, सिनेमा मनोरंजन के आवरण में कहानी कहने की अपनी मूल प्रकृति में सभी पूर्ववर्ती कलाओं का संगम होने की वजह से अपने आविष्कार के समय से समाज से संवाद का सीधा और सशक्त माध्यम रहा है।