स्टीमर का भोंपू कर्कश आवाज़ में बज उठता है। गुडलक टी हाउस पर बैठा कोई गाने लगता है- ओ रे माँझी, मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार हूँ इस पार। और इस गाने के बोलों के ज़रिये सहसा जैसे कल्याणी की पीड़ा, उसके मन के भीतर चल रही उठापटक मुखर हो उठती है और गाना ख़त्म होते-होते वह फ़ैसला ले लेती है। कल्याणी  युवा नेकदिल डॉक्टर देवेन के साथ सुखद और सुरक्षित भविष्य की तरफ़ ले जा रही रेल छोड़ कर अपने मन की पुकार सुनकर स्टीमर में बीमार, दुखी और एकाकी विकास के पास चली जाती है जिससे उसका मन वर्षों पहले जुड़ा था लेकिन निष्ठुर संयोगों ने उन्हें वर्षों तक अलग रखा।