लोकजनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के प्रमुख चिराग पासवान और सीएम पद के लिए महागठबंधन के उम्मीदवार तेजस्वी यादव का साझा मक़सद है- नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करना। इन दोनों का एक और मक़सद मिलता-जुलता है। वह है- किसी तरह बिहार की सत्ता हासिल करना। बस फर्क यह है कि एक बीजेपी से लड़ते हुए बिहार की सत्ता का ख्वाहिशमंद है तो दूसरा बीजेपी के साथ केंद्र में बने रहते हुए सत्ता में हिस्सेदारी की एक और संभावना तलाश रहा है।
जाहिर है कि बीजेपी एक की दुश्मन है, जबकि दूसरे की सियासी दोस्त। ऐसे में क्या चिराग और तेजस्वी की युगलबंदी की इजाजत सियासत देती है? अगर नहीं तो तेजस्वी ने ऐसी पहल क्यों की है जिससे दोनों का ही नुक़सान और सिर्फ नुक़सान तय है?
नीतीश को नापसंद कर रहे लोग
चिराग ने समय रहते यह भांप लिया था कि बिहार में नीतीश सरकार के लिए जबरदस्त एंटी इनकंबेंसी है। यह एंटी इनकंबेंसी अब तक सामने आए सर्वे में भी नज़र आती है। महज 31 फीसदी लोग सीएम के तौर पर नीतीश कुमार को पसंद कर रहे हैं। अक्टूबर आते-आते नीतीश के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार को नापसंद करने वाले लोगों की तादाद तो 80 फीसदी तक जा पहुंची है। जाहिर है कि ये सर्वे एलजेपी के उस फैसले को सही ठहराते हैं जिसमें उसने कहा था कि वह नीतीश कुमार के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी। मगर, चिराग की पहल खुद को विकल्प के तौर पर पेश करने की भी है- अकेले नहीं, बीजेपी के साथ।
बीजेपी-एलजेपी की सियासत
बीजेपी को बिहार में कभी अपने आप पर भरोसा नहीं रहा। चिराग पर भी उसका भरोसा इस रूप में नहीं हुआ कि वे बिहार में परिवर्तन के वाहक बन सकते हैं। अलग-अलग समझ ने बीजेपी और एलजेपी दोनों के रास्ते अलग कर दिए। एक नीतीश के साथ खड़ी है तो दूसरी नीतीश के खिलाफ। मगर, एक-दूसरे के लिए आकर्षण कम नहीं हुआ। दोनों ने आंखों ही आखों में सियासी बातें कर लीं। फिर शुरू हो गया सियासत का नया खेल।
“नीतीश को वोट देने का मतलब है बिहार के विकास को चोट”- इस नारे को चिराग जितनी जोर से कहते हैं, नीतीश उतने ही ज़्यादा आहत होते हैं। मगर, सबसे ज़्यादा जो बात नीतीश को चुभती है, वो है- “चुनाव बाद बीजेपी-एलजेपी की सरकार।”
इस नारे में जेडीयू को बीजेपी की ओर से विश्वासघात का डर सताता है। यह बात जेडीयू को और भी चुभती है कि जिस एलजेपी को उसने एनडीए तक में रहने नहीं दिया, वह बीजेपी के साथ बिहार में सरकार बनाने की बात कर रही है।
दबाव में थे नीतीश
तेजस्वी के बयान से पहले नीतीश कुमार भारी दबाव में थे। यही दबाव वे बीजेपी की ओर ट्रांसफर कर रहे थे। आखिरकार सीटों के बंटवारे की घोषणा के वक्त बीजेपी नेताओं को कहना पड़ा कि एलजेपी न नरेंद्र मोदी की तसवीर का उपयोग करेगी और न ही एनडीए सरकार के नाम पर वोट मांगेगी। अगर ऐसा होता है तो उसकी शिकायत चुनाव आयोग से की जाएगी।
जब बात इससे भी नहीं बनी, तो अब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बयान दिलाया गया है। हालांकि अमित शाह ने भी इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि चिराग पासवान को केंद्रीय मंत्री बनाया जाएगा या नहीं। उन्होंने कहा कि बिहार चुनाव के बाद इस विषय पर बात करेंगे।
चिराग को होगा नुक़सान!
एक तरह से अमित शाह ने जेडीयू की मांग भी मान ली और एलजेपी से सहयोग की संभावना को भी जिन्दा रखा। नीतीश को काबू में रखने के लिए यह बीजेपी की रणनीति का हिस्सा लगता है। शाह के बयान से ‘चुनाव बाद बीजेपी-एलजेपी सरकार’ का नारा भी खारिज नहीं होता। यहीं पर तेजस्वी फंस गये। उन्होंने बीजेपी के हितों को नुक़सान पहुंचाने के लिए यह बात कह डाली कि चिराग पासवान के साथ एनडीए में बहुत खराब व्यवहार हो रहा है। जबकि, खुद चिराग ने कभी ऐसा नहीं कहा। वे अब तक बीजेपी नेताओं की तारीफ ही करते रहे हैं। जाहिर है कि तेजस्वी की बात से जितना नुक़सान बीजेपी को होगा उससे कहीं ज्यादा चिराग को होने जा रहा है।
नीतीश के लिए मौक़ा
जेडीयू के नजरिए से सोचें तो नीतीश कुमार उस सियासत को तोड़ने में लगे थे जो उनके बगैर बिहार में एनडीए सरकार के नाम पर पनप रही थी। ऐसे में चिराग पासवान से सहानुभूति वाले तेजस्वी के बयान से सबसे ज्यादा सुकून नीतीश कुमार को मिला है जो अब यह बता सकेंगे कि एलजेपी की महागठबंधन के साथ मिलीभगत है और वह वास्तव में एनडीए को नुक़सान पहुंचाना चाहती है।
नीतीश अब यह भी कह सकेंगे कि एलजेपी को वोट देने का मतलब एनडीए विरोधी महागठबंधन को वोट देना है। इससे एनडीए के वोट बैंक और खासकर अपने लिए बीजेपी के वोट बैंक को बिखरने से नीतीश कुमार रोक सकेंगे। मगर, यह भी तय है कि नीतीश ऐसा करने में सफल तभी होंगे जब चिराग पासवान अपने मक़सद में विफल रहेंगे।
तेजस्वी को क्या मिलेगा?
चिराग पासवान से हमदर्दी दिखाकर आरजेडी को वोटों का कोई फायदा होगा, ऐसा भी नहीं लगता। बंटे हुए दलित वोट बैंक का जो हिस्सा एलजेपी को मिलना है वह किसी भी सूरत में आरजेडी में नहीं जाने वाला है। वजह यह है कि एलजेपी हर उस सीट पर चुनाव मैदान में है जहां जेडीयू चुनाव लड़ रही है। एलजेपी के वोटर अपनी पार्टी को छोड़ कर आरजेडी को वोट करेंगे, ऐसा नहीं लगता। जो लोग बीजेपी से बगावत कर एलजेपी से आ जुड़े हैं वे तो कभी भी आरजेडी के लिए वोट करने-कराने नहीं निकलेंगे- यह भी तय है।
चिराग के प्रति सहानुभूति वाले तेजस्वी के बयान के बाद बीजेपी-जेडीयू में दूरी घटेगी। नीतीश इसी बढ़ती दूरी से परेशान रहे हैं। मतलब ये कि तेजस्वी के बयान से नीतीश की परेशानी कम होगी।
इस बयान से चिराग पासवान की वह मुहिम कमजोर होगी जिसमें वे हर हाल में नीतीश कुमार को सत्ता से बेदखल करना चाहते हैं और उनकी जगह बीजेपी-एलजेपी की सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं। कह सकते हैं कि तेजस्वी ने चिराग से हमदर्दी दिखाकर बड़ी रणनीतिक भूल कर दी है। इस भावना को वे चुनाव तक दबा कर रखते तो उन्हें सरकार बनाने के वक्त राजनीतिक रूप से इसका फायदा मिलता।
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