दुनिया भर में मरने वाला हर 10वां कोरोना का मरीज भारतीय है। एशिया में कोरोना से मरने वाला हर दूसरा मरीज भारतीय है। हिन्दुस्तान के 28 में से 18 राज्यों में 1 लाख से ज्यादा कोरोना के मरीज हैं। टेस्टिंग में हिन्दुस्तान 105वें नंबर पर है। कोई पड़ोसी देश ऐसा नहीं है जिससे भारत की स्थिति बेहतर हो। फिर भी प्रधानमंत्री कहते हैं कि भारत संभली हुई स्थिति में है। यह कोरोना काल का सबसे बड़ा मजाक है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 23 मार्च और 20 अक्टूबर को राष्ट्र के नाम संबोधन के बीच 212 दिन का वक्त गुजर चुका है। तब कोरोना ने भारत में सिर्फ एक इंसान की जान ली थी। आज यह तादाद 1 लाख 15 हजार से ज्यादा है। तब कोरोना संक्रमित 471 लोग थे। आज 76 लाख से ज्यादा हैं। मतलब ये कि औसतन हर दिन 35,849 लोगों को कोरोना का संक्रमण हुआ है।
पड़ोसी देश म्यांमार में संक्रमण का कुल आंकड़ा 37,205 है। हम कह सकते हैं कि बीते 212 दिनों में हमारे वहां हर दिन म्यांमार के बराबर कोरोना संक्रमण बढ़ता रहा है। फिर भी देश को मानना पड़ेगा कि भारत ‘संभली हुई स्थिति’ में है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसा कहते हैं।
‘सामुदायिक संक्रमण’ की अनदेखी?
‘संभली हुई स्थिति’ बिगड़े नहीं, इस डर से देश में कभी सामुदायिक संक्रमण की बात स्वीकार तक नहीं की गयी। दो दिन पहले ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने माना है कि देश में सामुदायिक संक्रमण की स्थिति आ चुकी है लेकिन यह कुछ राज्यों के कुछ जिलों तक सीमित है। ईमानदारी से बात स्वीकार की जाती तो ऐसे राज्य और ऐसे जिलों में कोरोना से निपटने के अलग से प्रावधान किए जाते और देश को पूरी जानकारी दी जाती।
अमेरिका में 50वां केस सामुदायिक संक्रमण का उदाहरण होता है और भारत में 76 लाख केस के बाद भी सामुदायिक संक्रमण की तसवीर सामने नहीं रखी जाती। क्या इसलिए कि ‘संभली हुई स्थिति’ की पोल खुल जाएगी?
पीएम मोदी कहते हैं कि आज देश में रिकवरी रेट अच्छा है। क्या मतलब है इस रिकवरी रेट के अच्छे होने का? रिकवरी में संख्या की दृष्टि से भारत टॉप पर है मगर ऐसे दस शीर्ष देशों की तुलना करें तो भारत का रिकवरी रेट छठे नंबर पर है। रिकवरी रेट के हिसाब से इन देशों को सिलसिलेवार ढंग से रखने पर ये क्रम बनता है- चिली (94.26%), पेरू (90.03%), दक्षिण अफ्रीका (90.07%), ब्राजील (89.15%), कोलंबिया (89.86%), भारत (88.61%), अर्जेंटीना (83.23%), मेक्सिको (72.92%), रूस (75.82%) और अमेरिका (65.07%)।
पड़ोसी देशों से बदतर हालात
प्रधानमंत्री ने कहा है कि देश में कोरोना की वजह से मॉर्टलिटी रेट यानी मृत्यु दर कम है। भारत में प्रति दस लाख लोगों में मृत्यु दर 83 है जबकि अमेरिका, ब्राजील, स्पेन, ब्रिटेन जैसे अनेक देशों में यह आंकड़ा 600 के पार है। मगर, प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया कि पड़ोसी देशों नेपाल (26), पाकिस्तान (30), बांग्लादेश (35), म्यांमार (17), चीन (3), श्रीलंका (0.6) समेत इंडोनेशिया (46), जापान (13) और दक्षिण कोरिया (9) जैसे देशों में कोरोना का संक्रमण प्रति 10 लाख लोगों में भारत के मुकाबले बहुत कम है। इनमें कई घनी आबादी वाले भी हैं और कई विकसित देश भी।
कोरोना संक्रमण की सच्ची तसवीर
प्रधानमंत्री यह तो कहते हैं कि भारत में प्रति 10 लाख आबादी में साढ़े पांच हजार कोरोना के मरीज हैं जबकि अमेरिका और ब्राजील जैसे देशों में यह आंकड़ा 25 हजार के करीब है। मगर, एक बड़ी सच्चाई को वह छिपा जाते हैं। वे यह नहीं बताते कि दुनिया में कोरोना मरीजों का 18.69 फीसदी भारत में है जबकि आबादी 16.8 फीसदी है।
एशिया की आबादी के 29.6 प्रतिशत लोग भारत में रहते हैं जबकि कोरोना मरीजों के मामले में यह आंकड़ा 60.2 प्रतिशत है। ये आंकड़े भारत की वास्तविक तसवीर पेश करते हैं न कि अमेरिका और ब्राजील के उदाहरण से भारत में कोरोना की वास्तविक तसवीर सामने आती है!
10.25 फीसदी मौतें भारत में
दुनिया में अब तक कोरोना से कुल मौत हुई हैं- 11,23,876 और भारत में कोरोना से कुल मौत हुई हैं- 1,15,236। मतलब ये कि दुनिया की 10.25 प्रतिशत मौत भारत में हुई हैं। फिर भी हम कह रहे हैं कि भारत ‘संभली हुई स्थिति’ में है! क्या इसलिए ‘संभली हुई स्थिति’ में है क्योंकि भारत में मौत का आंकड़ा आबादी में वैश्विक हिस्सेदारी यानी 16.8 फीसदी के मुकाबले 10.25 फीसदी है?
एशिया में भी भारत की स्थिति का आकलन करने की जरूरत है। एशिया में मौत का आंकड़ा 2,26,476 है जबकि भारत में 1,15,552। साफ है कि कोरोना से एशिया में हुई मौत की लगभग आधी भारत में हुई हैं। क्या यह ‘संभली हुई स्थिति’ है?
90 लाख बेड थे तो 76 लाख कैसे मरे?
सवाल ये है प्रधानमंत्री जी कि अगर भारत में 90 लाख से ज्यादा बेड्स की सुविधा है तो 76 लाख से ज्यादा मौत कैसे हो गयी? क्या इन्हें कोरोना काल में अस्पताल और बेड की सुविधा मिली थी? सच तो ये है कि ज्यादातर लोगों को अस्पताल की सुविधा नहीं मिली, जिन्हें मिली उनकी केयर नहीं हुई। स्वास्थ्यकर्मियों तक के पास पीपीई किट नहीं रहे।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक़, सितंबर के अंत तक 515 डॉक्टर तो कोरोना की वजह से शहीद हुए। अगर इनके लिए अस्पताल की सुविधा नाकाफी रही, तो आम आदमी के लिए चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
12 हजार क्वारेंटीन सेंटर और 200 लैब के आंकड़ों के उन 1.15 लाख दिवंगत लोगों और उनके परिवारों के लिए क्या मायने रखते हैं?
क्यों कम हुई टेस्टिंग?
कोरोना की टेस्टिंग का आंकड़ा 9.6 अरब जरूर पहुंचा है और संख्या के हिसाब से चीन और अमेरिका के बाद तीसरे नंबर पर भारत है। मगर, 10 लाख की आबादी पर भारत में टेस्टिंग का आंकड़ा बहुत बेहतर नहीं है। भारत दुनिया में 105वें नंबर पर है और यह आंकड़ा 69,444 प्रति दस लाख है। भारत ने प्रति दिन 10 लाख टेस्टिंग का स्तर 21 अगस्त को हासिल कर लिया था। मगर, उसके बाद 19 अक्टूबर को फिर उसी स्तर पर पहुंच गया। क्यों?
पीएम मोदी आम लोगों को उपदेश दे रहे हैं कि जब तक कोरोना को पूरी तरह हरा नहीं दिया जाए तब तक निश्चिंत ना हों। वे संत कबीरदासजी को याद करते हैं और अधपकी फसल देखकर ‘काम हो गया’ समझ लेने से मना करते हैं। ऐसे में खुद सरकार ने देश में ‘काम हो गया’ समझ कर कोरोना की टेस्टिंग क्यों घटा दी? खुद सरकार ने इस उपदेश का पालन क्यों नहीं किया?
यह जानी और मानी हुई बात है कि जब टेस्टिंग कम होगी तो आंकड़े ‘संभली हुई स्थिति’ में दिखेंगे। यह क्यों न माना जाए कि 19 अक्टूबर को अगर कोरोना मरीजों का आंकड़ा सुधरकर 45,490 के स्तर पर आया है तो इसकी वजह 30 सितंबर को 14 लाख 23 हजार टेस्टिंग के मुकाबले 19 अक्टूबर को 30 प्रतिशत कम हुई टेस्टिंग है?
सवालों के जवाब मिलेंगे?
प्रधानमंत्री जनता को लापरवाही की याद दिला रहे हैं मगर, क्या वे इन सवालों के जवाब देंगे जो बताते हैं कि सरकार खुद लापरवाह रही है?-
- लापरवाही के कारण ही रामजन्मभूमि मंदिर परिसर शिलान्यास से पहले और बाद में में पुजारी, सुरक्षाकर्मी समेत बड़ी संख्या में लोग कोरोना के शिकार हुए थे कि नहीं?
- कमलनाथ सरकार गिराने से लेकर शिवराज सरकार बनाने तक राजनीतिक गतिविधियां चलाने के दौरान क्या कोरोना के नियमों का पालन किया गया था?
- क्या मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन भी कोरोना के दौरान उपरोक्त लापरवाही की बलि नहीं चढ़े?
- क्या यह सच नहीं है कि संसद चलाने के लिए कोरोना का सर्टिफिकेट अनिवार्य होता है और आम लोगों को नौकरी पर जाने के लिए इसकी कोई जरूरत नहीं होती?
- क्या 50 लाख के करीब विद्यार्थियों का कोरोना सर्टिफिकेट लेकर परीक्षा करायी गयी थी? क्या उन्हें असुरक्षित माहौल में सरकार ने नहीं भेजा था?
- क्या वर्चुअल रैली करते समय बेहद सुरक्षित नेताओं को सुन रही भीड़ क्या खुलेआम कोरोना नियमों को तोड़ नहीं रही है? फिर ये वर्चुअल रैली क्यों हो रही हैं?
- वैक्सीन आने तक कोरोना से लड़ाई को कमजोर नहीं पड़ने देने का माद्दा खुद मोदी सरकार ने देश को अनलॉक करते हुए दिखाया है क्या?
प्रधानमंत्री कहते हैं कि “आज देश में रिकवरी रेट अच्छा है। मोर्टलिटी रेट कम है। भारत में जहां प्रति दस लाख करीब साढ़े पांच हजार लोगों को कोरोना हुआ है, वहीं अमेरिका और ब्राजील जैसे देशों में यह आंकड़ा 25 हजार के करीब है।”
अंत में, सबसे महत्वपूर्ण बात। प्रधानमंत्री ने यह तो बताया है कि भले ही लॉकडाउन चला गया है लेकिन वायरस नहीं गया है। मगर, ऐसा क्यों हुआ- यह नहीं बताया। वायरस गये बगैर लॉकडाउन क्यों चला गया? अगर यह जरूरी नहीं था तो लगाया ही क्यों गया?
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