2015 में बिहार का विधानसभा चुनाव लगभग सीधे-सीधे लड़ा गया था। एक तरफ आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस का महागठबंधन था तो दूसरी तरफ बीजेपी-एलजेपी-आरएलएसपी-हम का एनडीए। इस बार महागठबंधन से जेडीयू और एनडीए से एलजेपी के बाहर होने के साथ-साथ उपेन्द्र कुशवाहा और असदउद्दीन ओवैसी का एक गठबंधन- ग्रेंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट भी है।
बिहार: क्या रहेगी छोटे दलों की भूमिका, किसे-कितना नफ़ा-नुक़सान पहुंचाएंगे?
- बिहार
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- 9 Oct, 2020

मोटे तौर पर ओवैसी की पार्टी के बारे में यह समझा जाता है कि इससे मुसलमानों के वोटों में बिखराव आएगा जिसका नुक़सान आरजेडी-कांग्रेस को होगा जबकि कुशवाहा के उम्मीदवार एनडीए के उम्मीदवारों के वोट काटेंगे। दूसरी तरफ चिराग पासवान की एलजेपी के बारे में स्पष्ट राय है कि यह एनडीए के उम्मीदवारों का नुक़सान करेगी क्योंकि अब तक पासवान जाति के वोट को एनडीए का माना जा रहा था।
2019 के लोकसभा चुनाव के समय महागठबंधन में शामिल ‘हम’ अभी एनडीए में है, जेडीयू दो साल पहले ही महागठबंधन से अलग हो चुका था और आरएलएसपी दोनों गठबंधनों से बाहर एक अलग मोर्चे में है। इसके अलावा जन अधिकार पार्टी (जेएपी) के अध्यक्ष पप्पू यादव के संयोजकत्व वाला पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस (पीडीए) भी मैदान में है।