बिहार में धार्मिक ध्रुवीकरण और सियासी बयानबाजी के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने एक ऐसा क़दम उठाया है, जिसने सबको चौंका दिया है। नीतीश सरकार ने फ़ैसला किया है कि राज्य के सभी सरकारी और गैर-सरकारी कर्मचारियों को उर्दू भाषा सिखाई जाएगी। इस योजना के तहत हर सोमवार से गुरुवार तक दो घंटे की विशेष कक्षाएं आयोजित की जाएंगी। यह निर्णय ऐसे समय में आया है, जब बिहार में हिंदू-मुस्लिम मुद्दों पर सियासत गरमाई हुई है। नीतीश का यह क़दम क्या सियासी चाल है या सामाजिक समरसता की कोशिश, इस पर बहस छिड़ गई है। यह सब अगले कुछ महीनों में राज्यों में होने वाले चुनाव से पहले हो रहा है।
हिंदू-मुस्लिम सियासत के बीच नीतीश उर्दू सिखाने की योजना क्यों ले आए?
- बिहार
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- सत्य ब्यूरो
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- 13 Mar, 2025
बिहार में नीतीश कुमार की सरकार उर्दू शिक्षा को बढ़ावा देने की योजना क्यों ला रही है? क्या यह हिंदू-मुस्लिम सियासत से जुड़ा है या बिहार की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा? जानें इसके पीछे की राजनीति और संभावित असर।

बिहार में पिछले कुछ समय से धार्मिक और जातिगत आधार पर सियासत तेज हो रही है। नीतीश के जदयू के सहयोगी बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दों को जोर-शोर से उठाती रही है। कुछ दिन पहले ही अमित शाह ने मिथिला में सीता माता का भव्य मंदिर बनाने की बात कही है। इसी बीच नीतीश कुमार ने उर्दू सिखाने की योजना की घोषणा कर एक नया दांव खेला है। यह योजना न केवल सरकारी कर्मचारियों बल्कि गैर-सरकारी क्षेत्र के कर्मियों को भी शामिल करती है, जिससे इसका दायरा व्यापक हो जाता है।