कहते हैं कि राजनीति में एक सप्ताह बहुत होता है और इस हफ्ते बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक के बाद एक ऐसे बयान दिये जिससे साफ हो गया कि वे अब अपने ’भाई समान दोस्त’ के बेटे तेजस्वी यादव को सत्ता सौंपने का मन बना चुके हैं। कम से कम ऐसे बयानों से वह तेजस्वी यादव के लिए माहौलबंदी तो कर ही रहे हैं।
हालांकि उनका यह बयान पहले से दिये जा रहे इशारे के मुताबिक ही है लेकिन इसके एलान में नीतीश कुमार जल्दबाजी तो नहीं कर रहे, यह सवाल जरूर पूछा जा सकता है। इसका कारण पार्टी स्तर पर सहमति, 2024 का लोकसभा चुनाव और प्रशासनिक लाबी की स्वीकार्यता है।
नीतीश के इस एलान के साथ तेजस्वी यादव की उस बात पर भी गौर करना चाहिए जिसमें वे उन्हें अपना अभिभावक बताते हैं। नीतीश ’पलटू चाचा’ से ’अभिभावक’ बन जाएंगे, यह सोचना कितना अजीब लगता है। जाहिर है कि रणनीति यह है कि नीतीश अब तेजस्वी को पूरी तरह प्रोजेक्ट करेंगे और बदल में तेजस्वी, और सेहत के हिसाब से लालू प्रसाद- दोनों नीतीश को राष्ट्रीय स्तर का नेतृत्वकर्ता बताने में अपना जोर लगाएंगे।
नीतीश कुमार ने सितंबर के महीने में दिल्ली का दौरा भी किया था और उस दौरान राहुल गांधी और दूसरे नेताओं से मुलाकात की भी थी। इस अवधि में खुद को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की रेस से बाहर बताने के बीच उनका हमेशा यह जोर रहा कि उनकी दिलचस्पी विपक्षी एकता में है और उनका मकसद किसी भी तरह नरेन्द्र मोदी व भाजपा को 2024 की केन्द्र सरकार बनाने से रोकना है।
बीच में दो राज्यों के विधानसभा चुनाव आ गये और बिहार के उपचुनाव भी हुए। इसलिए कोई ऐसा सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं हुआ जहां नीतीश तेजस्वी यादव के बारे में कोई बयान देते लेकिन इसके बाद जब जनता दल यूनाइटेड की राष्ट्रीय परिषद की बैठक हुई तो उन्होंने इन बातों की चर्चा फिर छेड़ी। इसके बाद नालंदा के एक कार्यक्रम के दौरान तेजस्वी यादव को आगे बढ़ाने की बात कही और फिर 2025 का विधानसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ने का साफ एलान किया।
इस एलान से बहुत से लोगों को यह लग रहा है कि तेजस्वी यादव अगले साल किसी भी वक्त मुख्यमंत्री का पद संभाल सकते हैं लेकिन शायद यह जल्दबाजी होगी क्योंकि नीतीश कुमार अगर महज 45 विधायकों के साथ मुख्यमंत्री बने हुए हैं तो यह उनके अनुभव और उनकी घाघ राजनीति का परिणाम है जो उन्हें भारतीय जनता पार्टी की चालों से निपटने में सक्षम बनाती है। सवाल यह है कि अगर तेजस्वी यादव को अगले छह महीनों में मुख्यमंत्री बनना है तो वह भारतीय जनता पार्टी की उन चालों से निपटने में सक्षम हो गये हैं?
खुद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद से हटकर विपक्ष की एकता के लिए मारे मारे फिरेंगे, यह बात अव्यावहारिक लगती है। फिलहाल यह कहा जा रहा कि शायद उन्हें यूपीए का संयोजक जैसा कोई पद मिले तो वे बिहार से पूरी तरह बाहर निकलकर 2024 की तैयारी के लिए विपक्ष की रणनीति बनाने में जुट जाएं लेकिन 2024 के चुनाव परिणाम में कोई ठोस निर्णय सामने आने से पहले नीतीश कुमार अगर बिहार की सत्ता छोड़ते हैं तो अपने लिए और सरकार के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं।
इसलिए नीतीश कुमार शायद 2024 तक इस पद पर बने रहना चाहेंगे। यह जरूर है कि इस बीच इस बात की माहौलबंदी करते रहेंगे कि उनके बाद तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनाए जाएंगे और 2025 के विधानसभा चुनाव में भी तेजस्वी यादव बतौर मुख्यमंत्री महागठबंधन का नेतृत्व करें। हालांकि देखना होगा कि इसके लिए महागठबंधन के बाकी दल किस हद तक तैयार रहते हैं।
लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सत्ता छोड़ना नीतीश कुमार और तेजस्वी के लिए दो तरह से चुनौती बन सकता है। पहली बात तो यह कि नीतीश कुमार को अपने जनता दल यूनाइटेड में विभाजन के खतरे का सामना करना पड़ेगा जिसके लिए भारतीय जनता पार्टी नहीं लगी हुई है, यह कोई नहीं मानेगा।
मगर 2024 में नरेन्द्र मोदी और भाजपा के कमजोर पड़ने पर अगर नीतीश कुमार के लिए केंद्र में कोई महत्वपूर्ण रोल तय होता है तो उनके लिए तेजस्वी को सत्ता सौंपने में पार्टी के विभाजन के खतरे का सामना नहीं होगा क्योंकि तब विधानसभा चुनाव बहुत दूर नहीं होगा।
तेजस्वी यादव के लिए नये जनादेश से पहले आईएएस अफसरों से सहयोग पाना एक और चुनौती होगी। यह समस्या उनके पिता लालू प्रसाद को स्पष्ट बहुमत के बाद भी झेलनी पड़ी थी।
तेजस्वी यादव को सत्ता सौंपने से पहले इस बात की भी चर्चा है कि नीतीश कुमार और लालू प्रसाद की सहमति से जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल का विलय हो जाए हालांकि यह काम भी आसान नहीं होगा। दोनों दलों के विलय के लिए कई गलियारों में नये दल के नाम पर भी चर्चा शुरू हो गयी है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि अगर विलय पर अंतिम सहमति बन गयी तो पहले विलय होगा या पहले सत्ता का हस्तांतरण होता है।
नीतीश कुमार के बारे में यह भी कहा जाता है कि वे अगर कुछ बोलते हैं तो उसे भूलते नहीं और आज की बात का मतलब कुछ दिनों के बाद सामने आता है। इसी संदर्भ में उनका वह बयान भी याद करने लायक है जो 2020 में विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने दिया था। उन्होंने कहा था कि वह उनका आखिरी चुनाव है। शायद वह उनका आखिरी विधानसभा चुनाव था जिसमें वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार भी थे।
वैसे, नीतीश कुमार ने अपना व्यक्तिगत चुनाव कब लड़ा था, यह किसी को आज याद भी नहीं। वे तो विधान परिषद से चुनकर सदन के नेता बनते रहे हैं और उनके साथ पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी का भी यही हाल था।
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