कुढ़नी विधानसभा सीट के उपचुनाव में महागठबंधन समर्थित जेडीयू प्रत्याशी मनोज कुमार सिंह उर्फ मनोज कुशवाहा को बीजेपी उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता के हाथों हार मिली है। क्या यह हार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए बानगी तो नहीं बन जाएगी? उनके विरोधी ऐसा जरूर चाहेंगे लेकिन क्या महज एक सीट के उपचुनाव के फैसले को लेकर यह बात कही जा सकती है?

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कुढ़नी में मिली जीत से बीजेपी का खुश होना स्वाभाविक है। इससे पहले गोपालगंज में भी उसे जीत मिली थी। लेकिन कुढ़नी में जेडीयू-महागठबंधन समर्थित उम्मीदवार की हार का क्या मतलब है?
जाहिर है ऐसे सवाल सिर्फ नीतीश कुमार के लिए नहीं बल्कि तेजस्वी यादव और पूरे महागठबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
पहले यह बात समझनी जरूरी है कि 2020 में बीजेपी के केदार प्रसाद गुप्ता आरजेडी के अनिल सहनी से 712 वोटों से तब हारे थे जब नीतीश कुमार बीजेपी के साथ थे। दूसरी बात यह है कि 2015 में भी यहां बीजेपी को जीत मिली थी जबकि उस समय भी नीतीश कुमार और आरजेडी एक साथ थे और भारी बहुमत से महागठबंधन की सरकार बनी थी। इसलिए हर चुनाव में हार जीत के कारण एक जैसे नहीं माने जा सकते।