पंद्रह साल तक पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार के साथ सत्ता की दोपहिया पर सवार नीतीश कुमार ने सोमवार को सातवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो यह वाहन तिपहिया में बदल गया। उनके साथ भारतीय जनता पार्टी के दो उपमुख्यमंत्रियों ने भी शपथ ली जो राष्ट्रीय सेवक संघ से जुड़े रहे हैं।
एक तरह से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार में उप मुख्यमंत्री तारकिशोर सिंह नंबर दो और रेणु देवी नंबर तीन रहेंगी।
वैसे तो पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी भी संघ से जुड़े रहे हैं लेकिन नीतीश कुमार के साथ उनकी जोड़ी को उस रूप में इसलिए कम कर देखा गया क्योंकि दोनों जेपी आन्दोलन के भी साथी थे। दोनों ने बिहार की सत्ता से राष्ट्रीय जनता दल को बेदखल करने में भी साथ-साथ आन्दोलन किया था।
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में यह माना जा रहा था कि नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड को कम सीटें आएँगी और वैसा ही हुआ जब उसकी सीटें 2015 की 71 से घटकर 43 पर सिमट गयीं। 2010 में जदयू की सर्वाधिक 115 सीटें थीं। ऐसे में बीजेपी पहली बार जदयू से बड़े भाई का दर्जा छीनने की स्थिति में आ गयी क्योंकि उसने 74 सीटें हासिल कर लीं। दोनों दलों के प्रवक्ता ऐसा भले ही न मानें लेकिन कार्यकर्ताओं ने यह बात समझ और मान ली है।
बीजेपी के एक धड़े में यह माना जाता था कि सुशील कुमार मोदी नीतीश कुमार के आदमी हैं। बीजेपी ने अब संघ के दो-दो उप मुख्यमंत्री बनाकर एक तरफ़ नीतीश कुमार के दायरे को तंग किया है तो दूसरी तरफ़ उसने पिछड़ा-अति पिछड़ा और महिला वर्ग को भी एक संदेश देने की कोशिश की है।
बीजेपी ने अपने विधायक दल का नेता कटिहार से चौथी बार विधायक बने तारकिशोर प्रसाद को चुनकर यह साफ़ कर दिया था कि नीतीश कुमार के सिर पर ताज रखकर उसमें काँटे भी लगाए जा सकते हैं।
सुशील कुमार का उप मुख्यमंत्री बरकरार न रह पाना रविवार को उस बैठक के साथ ही तय हो गया था। साथ ही बेतिया की विधायक रेणु देवी को बीजेपी विधायक दल का उपनेता बनाया जाना भी उसकी अति पिछड़ा राजनीति में दखल बढ़ाने का संकेत माना जा रहा है। आम तौर पर महिला और अति पिछड़ा वर्ग में नीतीश कुमार की अच्छी पकड़ मानी जाती है।
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तारकिशोर प्रसाद बीजेपी में आने से पहले लंबे समय तक आरएसएस में सक्रिय रहे हैं। उनका चयन उनके संघ से जुड़े होने के साथ-साथ इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि सीमांचल यहीं से शुरू होता है। सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की पाँच सीटों की सफलता भी बीजेपी की नज़र में होगी और पश्चिम बंगाल की सीमा भी जहाँ अगले साल विधानसभा चुनाव होना है।
तारकिशोर प्रसाद पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी की तरह ही वैश्य समुदाय से आते हैं लेकिन जूनियर मोदी मूल रूप से राजस्थान निवासी हैं जबकि तारकिशोर विशुद्ध रूप से बिहारी हैं। उन्होंने इंटरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त की है। कई लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि उन्हें तो मंत्री होने का भी अनुभव नहीं है तो उप मुख्यमंत्री का पद कैसे संभालेंगे। इस पर प्रसाद कहते हैं कि विधायक होने के नाते उन्होंने सत्ता को क़रीब से देखा है। इसलिए उन्हें शासन चलाने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
तारकिशोर प्रसाद की विशेषता यही बतायी जाती है कि वे पूरी तरह अपने दल के आदमी हैं। इसलिए साझा सरकार में भी उनसे बीजेपी के एजेंडे को दृढ़ता से लागू करवाने में उनसे मदद ली जाएगी। यह स्थिति नीतीश कुमार को असहज कर सकती है।
दूूसरी उप मुख्यमंत्री रेणु देवी भी बीजेपी में आने से पहले आरएसएस और दुर्गा वाहिनी से जुड़ी रही हैं। वे पहले भी मंत्री रह चुकी हैं। उन्होंने बीजेपी के महिला मोर्चा की ज़िला अध्यक्ष से प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर तय किया है। अति पिछड़ा वर्ग से आने वाली रेणु देवी ने इंटरमीडिएट तक की शिक्षा ग्रहण की है। उनके चयन को भी बीजेपी की उस नीति का हिस्सा माना जा रहा है जिसके तहत वह इस वर्ग में नीतीश कुमार की पकड़ को चुपचाप कम करना चाहती है। बीजेपी नेतृत्व यह मानकर चलता है कि सवर्ण वर्ग का वोट उसे ही मिलेगा।
बिहार की सरकार के शीर्ष पदों पर सवर्ण वर्ग का एक भी सदस्य नहीं होने की बहस भी आज-कल में शुरू हो जाएगी लेकिन फ़िलहाल बीजेपी आने वाले चुनावों के मद्देनज़र इसे नज़रअंदाज़ कर चलना चाहेगी।
बीजेपी 2024 के संसदीय चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव के लिए बिहार में अपनी तैयारी यह मानकर भी कर सकती है कि नीतीश कुमार अपनी घोषणा के अनुसार अब चुनाव नहीं लड़ेंगे। उस स्थिति में जदयू का अध्यक्ष पद कौन संभालेगा, अभी यह तय नहीं है। ऐसे में बीजेपी के लिए मैदान खुला मिल सकता है।
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