जय प्रकाश नारायण विश्वविद्यालय के एमए राजनीति शास्त्र के पाठ्यक्रम में बदलाव से बीजेपी और जेडीयू में फिर विवाद बढ़ने के आसार हैं। नीतीश कुमार ने पाठ्यक्रम में बदलाव पर सख्त नाराज़गी जताई है। विश्वविद्यालय के चांसलर बीजेपी के पूर्व नेता और मौजूदा राज्यपाल फागू चौहान हैं। वैसे, जब से राज्य में बीजेपी और जेडीयू की गठबंधन सरकार बनी है तब से कई मुद्दों पर दोनों दलों के बीच तलवारें तनती रही हैं।
मौजूदा मामला उस 'लोक नायक' जय प्रकाश नारायण यानी जेपी नाम के विश्वविद्यालय से जुड़ा है जो एक तरह से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक गुरु कहे जा सकते हैं। नीतीश कुमार के साथ ही लालू प्रसाद यादव जैसे नेता जेपी आंदोलन से ही निकले हैं। इसी जेपी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम से जय प्रकाश नारायण के साथ ही राम मनोहर लोहिया जैसे विचारकों को हटा दिया गया है। नये सिलेबस में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे नाम जोड़े गए हैं। यह मामला तब सामने आया जब स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की स्थानीय इकाई ने आपत्ति जताई। एसएफ़आई नेता शैलेंद्र यादव ने कहा कि कैसी विडंबना है कि यह जेपी विश्वविद्यालय है और जयप्रकाश नारायण और लोहिया पर अध्याय को हटा दिया गया।
एसएफ़आई द्वारा आवाज़ उठाए जाने के बाद इस पर विवाद बढ़ा। विपक्षी दलों के नेता भी सवाल उठाने लगे। शिक्षा मंत्री विनय कुमार चौधरी ने बताया कि जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय, छपरा के राजनीति विज्ञान के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम से लोकनायक जयप्रकाश नारायण एवं डा. राम मनोहर लोहिया के राजनीतिक विचार एवं दर्शन निकाले जाने को सरकार एवं शिक्षा विभाग ने गंभीरता से लिया है।
शिक्षा विभाग की ओर से बयान में मुख्यमंत्री के हवाले से कहा गया है कि यह बदलाव अनुचित और अनावश्यक है। इन बदलावों पर उन्होंने अपनी नाराज़गी जताई है और तत्काल सुधारात्मक क़दम उठाने के लिए कहा है। बयान में चेताया गया है कि राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों को भी पाठ्यक्रम में कोई बदलाव करने से पहले शिक्षा अधिकारियों से परामर्श लेना होगा। मुख्यमंत्री ने बदलावों पर भी निशाना साधते हुए कहा कि परंपरा का पालन नहीं किया गया और उनकी सरकार जनता के मूड के ख़िलाफ़ पाठ्यक्रम को स्वीकार नहीं कर सकती।
आरजेडी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने भी पाठ्यक्रम से जेपी और लोहिया जैसे समाजवादी विचारकों को हटाए जाने पर सरकार की आलोचना की। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि यूनिवर्सिटी के सिलेबस से संघी बिहार सरकार तथा संघी मानसिकता के पदाधिकारी महान समाजवादी नेताओं- जेपी-लोहिया के विचार हटा रहे हैं।
मैंने जयप्रकाश जी के नाम पर अपनी कर्मभूमि छपरा में 30 वर्ष पूर्व जेपी विश्वविद्यालय की स्थापना की थी।अब उसी यूनिवर्सिटी के सिलेबस से संघी बिहार सरकार तथा संघी मानसिकता के पदाधिकारी महान समाजवादी नेताओं जेपी-लोहिया के विचार हटा रहे है।यह बर्दाश्त से बाहर है।सरकार तुरंत संज्ञान लें pic.twitter.com/t3Hpxz7bLh
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) September 1, 2021
इस मामले में विश्वविद्यालय के वीसी व दूसरे अधिकारियों को पटना तलब किया गया है और स्थिति स्पष्ट करने को कहा गया है। 'एनडीटीवी' की रिपोर्ट के अनुसार विश्वविद्यालय के कुलपति फारूक अली ने कहा है कि पाठ्यक्रम को पिछले राज्यपाल लालजी टंडन द्वारा अनुमोदित किया गया था और सीबीसीएस (पसंद-आधारित क्रेडिट प्रणाली) को शुरू करने में देरी के कारण इसका कार्यान्वयन रोक दिया गया था। लालजी टंडन ने राज्य में अगस्त 2018 से जुलाई 2019 तक सेवा दी थी। वीसी ने कहा, 'जो भी पाठ्यक्रम को मंजूरी दी गई थी, उसे अब लागू किया गया है।'
जेपी यूनिवर्सिटी पर जेडीयू और बीजेपी के बीच यह विवाद दोनों दलों के बीच कोई पहली बार विवाद नहीं है। दोनों दलों के बीच अक्सर विवाद होते रहे हैं। इससे पहले विवाद तब हुआ था जब जेडीयू ने पिछले रविवार को कहा था कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में वे सभी गुण हैं जो एक प्रधानमंत्री के लिए होने चाहिए। विवाद बढ़ा तो जेडीयू नेता और पार्टी महासचिव के. सी. त्यागी को सोमवार को सफ़ाई देनी पड़ी थी। बाद में उन्होंने कहा कि एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तो नरेंद्र मोदी ही हैं।
कुछ दिन पहले ही नीतीश कुमार ने जाति जनगणना की मांग के लिए राज्य में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सहित कई दलों के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की थी। इससे पहले इस मामले में जब प्रधानमंत्री मोदी ने शुरुआत में मिलने का समय नहीं दिया था तो उन्होंने नाराज़गी जताते हुए कहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी मिलने का समय नहीं दे रहे हैं। इस बीच तो नीतीश कुमार ने यह भी कह दिया था कि यदि केंद्र ने जाति आधारित जनगणना शुरू नहीं की तो इसके लिए राज्य स्तर पर चर्चा शुरू की जा सकती है।
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