सरकारी स्कूल की पाँचवीं कक्षा की छात्रा आमना हिंदी में सिर्फ़ अपना नाम लिख पाती हैं, लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद सड़क, गाड़ी, बाज़ार, चीनी, जागरण जैसे आसान शब्दों को पढ़ने में वह नाकाम रहती हैं। उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों की उन्हें कोई पहचान नहीं है। उनकी संख्यात्मक अभियोग्यता भी शून्य है। आमना की माँ शकीला कहती हैं, ‘मास्टरवा ही ठीक से नहीं पढ़ाता होगा। आमना तो रोज़ स्कूल जाती थी, बस लाॅकडाउन के बाद से वह स्कूल नहीं गई है।’