कल्पना सोरेन
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नीतीश कुमार को 'पीएम मटीरियल' बताने पर हुए विवाद के बाद लगता है जनता दल (यूनाइटेड) ने अपने पैर पीछे खींच लिए हैं और डैमेज कंट्रोल मोड में आ गया है।
इसे इससे समझा जा सकता है कि पार्टी महासचिव के. सी. त्यागी ने सोमवार को कहा कि एनडीए के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तो नरेंद्र मोदी ही हैं।
उन्होंने कहा, "आगामी आम चुनाव 2024 में पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी हैं और वही इस पद के उम्मीदवार रहेंगे।"
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नीतीश कुमार प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं। जदयू एनडीए का सबसे भरोसेमंद सदस्य है और पीएम मोदी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन यानी राजग के नेता हैं।
के. सी. त्यागी, महासचिव, जनता दल यूनाइटेड
कुछ दिन पहले ही नीतीश कुमार ने जाति जनगणना की मांग के लिए राज्य में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव सहित कई दलों के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री से मुलाक़ात की थी। पेगासस स्पाइवेयर से मोदी सरकार भले ही किनारा कर रही थी, लेकिन नीतीश कुमार ने इस मामले में जाँच की मांग कर बीजेपी को असहज कर दिया था।
जेडीयू राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए जदयू के प्रमुख महासचिव और राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा, 'जिस तरह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान एनडीए की एक समन्वय समिति थी, हम अब इसी तरह की एक समिति का स्वागत करेंगे जो कई मुद्दों पर चर्चा करे। जिन मुद्दों पर हम अलग-अलग विचार रखते हैं। यह गठबंधन के सुचारु कामकाज में मदद करेगा और एनडीए गठबंधन के नेताओं की अनुचित टिप्पणियों को हतोत्साहित करेगा।'
बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता तारकिशोर प्रसाद ने भी एनडीए के भीतर समन्वय की मांग का समर्थन किया। तारकिशोर प्रसाद ने कहा कि पहले भी एनडीए समन्वय समिति का गठन किया गया था।
समन्यव समिति की मांग इसलिए अहम है कि गठबंधन सरकार बनने के बाद से ही जब तब बीजेपी और जेडीयू नेताओं के बीच अक्सर बयानबाज़ी होती रही है। हाल में तो बड़े स्तर पर अलग-अलग विचार तब दिखे जब नीतीश कुमार ने पेगासस स्पाइवेयर मामले की जाँच की मांग का समर्थन कर दिया।
इस महीने की शुरुआत में ही नीतीश कुमार ने कहा था कि लोगों को परेशान करने के लिए इस तरह की चीजें नहीं की जा सकतीं और इस मामले में सब बातों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
निश्चित रूप से नीतीश कुमार के इस बयान से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ीं क्योंकि वह एनडीए के सहयोगी दल के पहले ऐसे नेता थे जिन्होंने इस मामले में न सिर्फ अपना बयान जारी किया बल्कि जाँच कराने की मांग की। तब समझा गया कि बीजेपी और जेडीयू के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। नीतीश का यह बयान विपक्षी दलों के नेताओं से मेल खाने वाला था। संसद के मानसून सत्र में इस मुद्दे पर खासा हंगामा हो चुका है और संसद के दोनों सदनों में विपक्ष ने कथित जासूसी मामले की जांच कराने की मांग को पुरजोर ढंग से रखा।
जाति जनगणना की मांग पर भी नीतीश का विचार विपक्षी दलों से मेल खाता हुआ दिखा। आरजेडी नेताओं के साथ उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के सामने जाति जगगणना की मांग रखने का फ़ैसला किया। इस मामले में जब प्रधानमंत्री मोदी ने शुरुआत में मिलने का समय नहीं दिया था तो उन्होंने नाराज़गी जताते हुए कहा था कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी मिलने का समय नहीं दे रहे हैं। इस बीच तो नीतीश कुमार ने यह भी कह दिया था कि यदि केंद्र ने जाति आधारित जनगणना शुरू नहीं की तो इसके लिए राज्य स्तर पर चर्चा शुरू की जा सकती है।
इस मामले में अब तक केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना के पक्ष में नहीं है। पिछले महीने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि भारत सरकार ने जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जाति आधारित आबादी की जनगणना नहीं करने के लिए नीति के रूप में तय किया है।
जाति जनगणना को लेकर काफ़ी दबाव झेल रहे प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार के प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात के लिए समय दिया। तब नीतीश और तेजस्वी साथ दिखे। हालाँकि उस प्रतिनिधिमंडल में बीजेपी के नेता भी साथ थे।
तो सवाल है कि क्या बीजेपी समन्वय समिति के लिए राज़ी होगी? यदि वह राज़ी हो भी जाए तो क्या पेगासस स्पाइवेयर जैसे मुद्दे पर नीतीश या जेडीयू की तरफ़ से बयान आना रुक जाएगा?
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