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मनीष वर्मा: जदयू में नीतीश कुमार के एक और ‘उत्तराधिकारी’

पूर्व आईएएस अधिकारी और लंबे समय से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ काम कर रहे मनीष कुमार वर्मा औपचारिक रूप से मंगलवार को नीतीश कुमार की अध्यक्षता वाले जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल हो गए।

आईएएस अधिकारी होने के अलावा उनकी सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह नीतीश कुमार के स्वजातीय कुर्मी हैं और उन्हीं के जिले के रहने वाले हैं। वैसे तो मनीष का जन्म पड़ोसी जिले गया के नीमचक बथानी में हुआ था लेकिन उनका बचपन बिहारशरीफ में बीता और स्कूली शिक्षा भी वहीं से हुई। मनीष की नीतीश कुमार से एक और समानता यह भी है कि दोनों ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। फर्क यह है कि नीतीश कुमार ने पटना के इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई की जबकि मनीष वर्मा आईआईटी ग्रैजुएट हैं। 

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मनीष वर्मा का जनता दल (यूनाइटेड) में शामिल होना महज औपचारिकता थी क्योंकि पहले से यह माना जा रहा था कि वह जदयू में शामिल होंगे और वह नीतीश कुमार को पार्टी के काम में मदद कर रहे थे। यह भी कहा गया कि उन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार के रणनीतिकार के रूप में काम किया। यही नहीं, उन्हें नालंदा सीट से जदयू का उम्मीदवार बनाने की भी चर्चा चली थी। 

इसलिए, अब इस बात पर खूब चर्चा हो रही है कि क्या मनीष वर्मा उसी तरह नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी घोषित होंगे जैसे ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने आईएएस अधिकारी वीके पांडियन को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। यह अलग बात है कि नवीन पटनायक की चुनाव में हार के बाद पांडियन ने राजनीति से विदा ली।

मनीष वर्मा के जदयू में शामिल होने के साथ ही असली बहस यह चल रही है कि जदयू में नीतीश कुमार के बाद फिलहाल किसका स्थान होगा और आगे चल कर उनका स्थान कौन लेगा। बतौर जेडीयू राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने मनीष वर्मा के बारे में सार्वजनिक तौर पर अब तक कोई बयान नहीं दिया है लेकिन ऐसी चर्चा चल रही है कि उन्हें जदयू में कोई बहुत महत्वपूर्ण पद दिया जाएगा। 
कुछ ही दिनों पहले नीतीश कुमार के करीबी समझे जाने वाले संजय कुमार झा को जदयू का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया तो यह समझा जाने लगा कि अब नंबर दो पर वही होंगे।

उसके बाद से यह बहस भी छिड़ी थी कि क्या उनका ललन सिंह के साथ टकराव होगा जो नीतीश कुमार से पहले जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। ललन सिंह इस समय मुंगेर के सांसद और केंद्र में मंत्री हैं। अब मनीष वर्मा के जदयू में शामिल होने के साथ ही एक और बहस छिड़ गई है कि क्या वह तुरंत किसी ऐसे पद पर बैठाए जा सकते हैं जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं को यह संदेश मिले कि नीतीश कुमार के वारिस मनीष वर्मा ही होंगे।

इत्तेफाक की बात है कि मनीष कुमार वर्मा भी ओडिशा कैडर के 2000 बैच के आईएएस अधिकारी थे और इस बात पर विवाद है कि उन्होंने 2018 में अपने पद से त्यागपत्र दिया था या उन्हें वीआरएस मिली थी। मनीष वर्मा 2012 में इंटर कैडर डेपुटेशन पर बिहार आए थे और उसके बाद ओडिशा नहीं लौटे। मुख्यमंत्री सचिवालय से जुड़ने से पहले मनीष वर्मा पटना और पूर्णिया जैसे बड़े जिलों के डीएम भी रह चुके हैं। वह फिलहाल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एडिशनल एडवाइजर के पद पर थे।

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मनीष कुमार वर्मा उन कुर्मी आईएएस अधिकारियों में शामिल हैं जिन्हें नीतीश कुमार ने अपने शुरुआती कार्यकाल में दूसरे राज्यों से बिहार बुलवाया। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वह वाक़ई नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी बनेंगे? पहले आरसीपी सिंह को और कुछ हद तक पीके (प्रशांत किशोर) को भी उनका उत्तराधिकारी माना गया था। अभी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी एक जमाने में नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी माने गए थे। इत्तेफाक की बात है कि आरपी सिंह, प्रशांत किशोर और उपेंद्र कुशवाहा तीनों बाद में नीतीश से अलग हो गए या उन्हें नीतीश ने अलग कर दिया।

मनीष की तरह ही आरसीपी सिंह भी नीतीश कुमार के जिले के और उनकी ही जाति के थे। आरसीपी सिंह भी मनीष वर्मा की तरह आईएएस अधिकारी थे। फर्क यह है कि मनीष ओडिशा कैडर से आए थे और आरसीपी सिंह उत्तर प्रदेश से। आरसीपी सिंह को नीतीश कुमार ने राज्यसभा का सदस्य बनाया था जिसके बाद वह मंत्री भी बने थे तो अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या मनीष वर्मा को भी नीतीश कुमार राज्यसभा भेजेंगे क्योंकि फिलहाल एक सीट राज्यसभा की खाली चल रही है। 

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इन सबके बीच याद रखने वाली बात यह भी है कि नीतीश कुमार अक्सर अपने स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों की वजह से चर्चा में बने रहते हैं। कभी-कभी उनके पुत्र निशांत कुमार के राजनीति में आने की भी चर्चा चलती है लेकिन यह चर्चा आधारहीन साबित हुई है। 

कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार फिलहाल संजय कुमार झा और मनीष कुमार वर्मा के साथ पार्टी को आगे लेकर चलना चाहते हैं। 

एक जमाने में जिस तरह आरसीपी सिंह नीतीश कुमार की प्रशंसा करते थे उसी तरह मनीष वर्मा भी इस समय उनकी तारीफ करते हैं। मनीष इस समय 50 वर्ष के हैं और जनता दल (यूनाइटेड) में उनके लिए आगे काफी संभावनाएं हो सकती हैं। फिर भी बिहार के लोगों में इस सवाल पर बहस चल रही है कि क्या मनीष वर्मा नीतीश कुमार के दूसरे आरसीपी साबित होंगे या अपनी वफादारी साबित करते हुए आख़िरकार नीतीश कुमार के उत्तराधिकारी बनेंगे।

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समी अहमद
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