बिहार में डबल इंजन की सरकार के रहते यहां के किसान हर मौसम में खाद के लिए परेशान हैं। इस समय जब उन्हें यूरिया की सख्त जरूरत है तो यहां इसकी भारी किल्लत है। इस समय जिसे चार बोरी यूरिया की जरूरत है, उसे बमुश्किल एक बोरी खाद मिल रही, वह भी चार बजे भोर से लाइन में लगने के बाद और प्रति बोरी सौ रुपये से अधिक दाम देने पर। अगर कोई किसान इस बात का विरोध करता है तो उसे खाद नहीं दी जाती।
इसमें खाद की सप्लाई के साथ-साथ कालाबाजारी और तस्करी की समस्या मिली हुई है। उत्तर बिहार के किसानों की शिकायत है कि एक तो सप्लाई कम हो रही है, उस पर यह खाद नेपाल को तस्करी की जाती है। हालत यह है कि किसान 266 रुपये प्रति बोरी वाली खाद को 350-400 रुपये खरीद कर खुद को कामयाब मानता है। दूसरी तरफ खाद विक्रेताओं का कहना है कि देर से खाद मिलने के कारण माल और पैसा दोनों फंस जाता है।
कुछ लोगों को लगता है कि उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर चुनाव के कारण वहां खाद भेज दी गयी होगी जिसका खमियाजा बिहार के किसानों को भुगतना पड़ रहा है। हालांकि हकीकत यह है कि यह किल्लत पिछले दो सालों से बनी हुई है। गेहूं की बुआई के समय डीएपी की जरूरत थी, जो उस वक्त नहीं मिली। अब पटवन के समय यूरिया की जरूरत है तो वह नहीं मिल रही।
बिहार में सरकारी आंकड़े के अनुसार पंजीकृत किसानों की संख्या एक करोड़ अस्सी लाख से अधिक है। हालांकि किसानों की वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक मानी जाती है। सरकारी आंकड़े के अनुसार बिहार की जीडीपी का 24.84 प्रतिशत खेती और मछली पालन से आता है और यहां की 77 प्रतिशत आबादी खेती के काम में लगती है। इसके बावजूद यहां मकई और दालों को छोड़कर दूसरे फसलों की उपज राष्ट्रीय औसत से काफी कम है।
यह बात बिहार के कृषि मंत्री अमरेन्द्र कुमार सिंह की जानकारी में भी है मगर इस समस्या का हल नहीं निकल रहा। अखबारों में उनका यह बयान छपा है कि राज्य में खाद की उपलब्धता, आवंटन और वितरण में जीरो टालरेंस की नीति अपनायी जा रही है और इसका उल्लंघन करने वालों को किसी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कुछ खाद दुकानदारों का लाइसेंस रद्द करने और कुछ छोटे-मोटे कर्मचारियों के निलंबन की भी जानकारी दी है।
दो माह पहले गेहूं की बुआई के समय डीएपी खाद की जरूरत थी तो उस समय भी राज्य के विभिन्न जिलों से इसकी किल्लत की खबर आयी थी। कई जगह उग्र प्रदर्शन भी हुए थे।
विक्रेताओं का पैसा फंसा
प्रतीक भान सिंह नवादा जिले के प्रमुख खाद विक्रेता हैं। उन्होंने बताया कि खाद समय से नहीं मिल रही। इसकी वजह से किसानों को तो नुकसान हो ही रहा, विक्रेताओं का भी पैसा फंस जा रहा है। उन्होंने बताया कि डीएपी की डिमांड करने पर सप्लाई तब मिली जब किसानों को उसकी जरूरत खत्म हो गयी थी। इस कारण उनके गोदाम की जगह भरी हुई है, खाद को संभालना मुश्किल हो रहा है और करीब सात लाख रुपये भी फंस गये क्योंकि अब मांग यूरिया की ज्यादा है।
उन्होंने बताया कि उन्हें सीजन में हर दिन 200 बोरी खाद की जरूरत होती है लेकिन 15-20 दिनों में एक बार 600 बोरी खाद मिली है। उनकी जरूरत वैसे तो 3000 बोरी खाद की थी लेकिन उन्होंने 1500 बोरी की मांग की थी।
प्रतीक बताते हैं कि खाद की देर से सप्लाई के कारण किसानों को सवेरे चार-पांच बजे से ही लाइन लगना पड़ता है। कई लोग अपनी जगह लाइन में ईंट रख देते हैं। सप्लाई के दौरान हंगामा न हो, इसके लिए कृषि अधिकारी दो लोगों की ड्यूटी लगाते हैं। एक का काम लाइन लगवाना और दूसरे का काम आधार कार्ड और अन्य कागजात चेक कर खाद दिलाना होता है।
विक्रेताओं की एक दिक्कत यह भी है कि उन्हें नजदीक की रेक से खाद न मिले तो ढुलाई का खर्च बढ़ जाता है। दूसरी ओर किसानों की हालत यह है कि वे ज्यादा पैसे देकर भी खाद लेने को तैयार रहते हैं।
सुपौल के युवा किसान विकास ने बताया कि गोइठा लेकर जाते हैं ताकि लाइन में आग तापें और कम्बल ओढ़कर खड़े होते हैं। उन्होंने कहा- मुझे 4 बोरी खाद की जरूरत है लेकिन एक बोरी ही मिली है। किसी तरह थोड़ी बहुत नैनौ यूरिया से काम चलाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि प्रशासन किसी तरह मामले को टाल देता है। उन्होंने बताया कि एक बार 11 बजे रात में किसानों ने सड़क जाम कर दी तो प्रशासन ने बहला-फुसला कर कहा कि खाद मिल जाएगी लेकिन मिली नहीं।
राशिद चौधरी मुजफ्फरपुर के प्रगतिशील किसान हैं। उन्होंने बताया कि खेती टाइम का खेला है, यहां एक-दो दिन भी देर हुई खाद देने में तो उपज पर असर पड़ता है। उनका कहना है कि जब डीएपी की जरूरत थी तो उसकी किल्लत थी। जब डीएपी की जरूरत कम हो गयी तो उसकी उपलब्धता बढ़ गयी जबकि हमें अभी यूरिया की जरूरत है। राशिद को लगता है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव है और वहां खाद की किल्लत कम हो इसलिए बिहार पर ध्यान कम है।
अफसर बेपरवाह
विकास और राशिद दोनों कहते हैं कि एक तरफ आवंटन कम है तो दूसरी तरफ इसकी ब्लैक मार्केटिंग होती है। विक्रेता ज्यादा पैसे लेकर खाद को कहीं और बेच देते हैं और कहते हैं कि सप्लाई कम है। और इस शिकायत को सुनने वाला कोई नहीं। दोनों ने कहा कि अफसरों को शिकायत करने का असर नहीं होता।
राशिद ने बताया कि नैना यूरिया लिक्विड खाद है लेकिन यह हर जगह उपलब्ध नहीं है। इसे आनलाइन खरीदना पड़ता है, हर किसान के लिए यह आसान प्रक्रिया नहीं है। इसके बारे में सबको जानकारी नहीं है।
दोनों ने बताया कि जून में धान की फसल के लिए डीएपी की जरूरत होगी तब फिर हमें उस खाद की किल्लत का सामना करना पड़ेगा। किसानों की समस्या इतने बड़े पैमाने पर होने के बावजूद इसके लिए कोई मजबूत आन्दोलन नहीं होता। एक-दो दिन के लिए आन्दोलन की खानापूर्ति कर दी जाती है। किसानों का संगठन मजबूत नहीं है। राशिद और विकास कहते हैं कि जब तक किसानों का संगठन नहीं होगा, यह समस्या हल नहीं होगी क्योंकि राजनैतिक दलों के लिए यह महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है।
इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर्स कोआपरेटिव या ‘इफको’, बिहार के राज्य मार्केटिंग मैनेजर सोमेश्वर सिंह ने ’सत्य हिन्दी’ को बताया कि वैश्विक स्तर पर कच्चे माल की कीमत बढ़ने के कारण खाद की थोड़ी किल्लत है लेकिन उन्होंने कहा कि किसान भी अनुशंसित मात्रा से अधिक खाद डाल रहे हैं। चूंकि खुदरा दुकानों पर भीड़ ज्यादा लग रही है, इसलिए संकट सामने नजर आता है। उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया की मांग अच्छी है।
अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य अध्यक्ष विशेश्वर प्रसाद ने ’सत्य हिन्दी’ से बात करते हुए कहा कि बिहार में अभी रासायनिक खाद का इकलौता कारखाना बरौनी में था जो बंद है। सरकार कहती है कि यह जून में चालू होगा।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात में खाद का कारखाने हैं लेकिन वहां मांग से काफी कम उत्पादन हो रहा है। इसलिए कुल खपत की 40 प्रतिशत खाद विदेश से मंगानी पड़ती है। उन्होंने कहा कि बुआई के समय लगभग सभी जिलों में डीएपी, फास्फेट और पोटाश नहीं मिल रहा था। अब यूरिया की किल्लत है।
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