बिहार में जहरीली शराब से हुई मौतों को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। अब तक सारण जिले में 38 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हो चुकी है। लेकिन इस मामले में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का हैरान करने वाला बयान सामने आया है। नीतीश ने गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि जो शराब पियेगा, वह तो मरेगा ही।
इस मुद्दे को लेकर गुरूवार को भी बिहार की विधानसभा में हंगामा हुआ है।
जहरीली शराब से लगातार हो रही मौतों को लेकर नीतीश कुमार की सरकार विपक्षी दल बीजेपी के निशाने पर है। ऐसा नहीं है कि बिहार में जहरीली शराब से मौतों का मामला नया हो। नीतीश कुमार जब कुछ महीने पहले तक बीजेपी के साथ सरकार में थे तब भी बिहार के कई इलाकों से लगातार जहरीली शराब से मौत होने की खबरें आती थी।
नीतीश ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि जब शराबबंदी नहीं थी तब भी यहां लोग जहरीली शराब से मरते थे और अन्य राज्यों में भी बड़ी संख्या में लोग जहरीली शराब पीने से मरते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में शराबबंदी है और कुछ लोग गड़बड़ करते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को जहरीली शराब से सतर्क रहना चाहिए और शराब बुरी चीज है, इसे नहीं पीना चाहिए।
उनके इस बयान पर बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने एएनआई से कहा कि नीतीश कुमार ने जब बिहार में शराबबंदी लागू करने का निर्णय लिया, तो फिर कैसे इतनी बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं, इतनी बड़ी संख्या में लोग जेल कैसे जा रहे हैं?
बिहार में नकली शराब पीने से मौत होना इसलिए बड़ी बात है क्योंकि राज्य में 2016 से शराबबंदी लागू है। इसका मतलब बिहार के अंदर शराब बनाना, इसकी बिक्री करना और इसे पीने पर पूरी तरह प्रतिबंध है। शराबबंदी वाले एक और राज्य गुजरात से भी नकली व जहरीली शराब पीने की वजह से लगातार मौतों की खबर आती रहती है। मतलब साफ है कि इन राज्यों में शराबबंदी पूरी तरह फेल हो गई है।
नीतीश कुमार के लिए शराबबंदी बेहद अहम फैसला रहा है लेकिन शराबबंदी के बाद भी जहरीली शराब कैसे बिक रही है, इस बारे में उन्हें जवाब देना होगा।
इस साल की शुरुआत में नीतीश के गृह ज़िले नालन्दा और सारण में लगभग 30 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई थी। पिछले साल भी जहरीली शराब से क़रीब 100 लोगों की मौत हो चुकी है।
क़ानून वापस लेने का दबाव
नीतीश कुमार पर शराबबंदी क़ानून पूरी तरह से वापस लेने का दबाव भी है। बीजेपी के अलावा नीतीश के करीबी हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी भी कई बार शराबबंदी क़ानून की समीक्षा या समाप्ति की मांग कर चुके हैं। मांझी का कहना है कि इस क़ानून के बाद दलित वर्ग के लोगों को सबसे अधिक गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा है जिनके लिए जमानत कराना बहुत मुश्किल काम है।
विपक्षी दल यह आरोप भी लगाते हैं कि बिहार में शराब की होम डिलीवरी हो रही है और इसमें थानेदार से लेकर पुलिस के बड़े अफ़सर मालामाल हो रहे हैं।
अदालत की टिप्पणी
इस साल जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने शराबबंदी के 40 मामलों में बिहार सरकार की अपीलों को ठुकरा दिया था। तत्कालीन चीफ़ जस्टिस एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने टिप्पणी की थी कि इस कानून ने पटना हाईकोर्ट के कामकाज पर बड़ा असर डाला है। उन्होंने कहा था, “एक केस को सूची में आने में एक साल लग रहा है और सारे कोर्ट शराबबंदी के मामलों से ठसाठस भर गये हैं। मुझे बताया गया है कि हर दिन हाई कोर्ट के 14-15 जज शराबबंदी के मामले में जमानत की अर्जी पर सुनवाई कर रहे हैं।”
शराबबंदी में पकड़े गये लोगों के लिए जेल में भी जगह कम पड़ रही है। पिछले साल आए आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में 59 जेल हैं जिनमें क्षमता से क़रीब 23 हजार अधिक कैदी बंद हैं। इन जेलों में बंद 70 हजार कैदियों में 25 हजार कैदी शराबबंदी में पकड़े गये हैं।
शराब की तस्करी
कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश और झारखंड के अलावा नेपाल से भी बिहार में शराब की तस्करी होती है और यह एक तरह से रोजगार बन गया है। इससे कुछ बेईमान पुलिसवालों की चांदी हो गयी है। दूध की गाड़ी से लेकर एम्बुलेंस तक से शराब की ढुलाई शुरू हो गयी जिनमें से कुछ तो पकड़ी गयीं और बाक़ी से तस्करी होती रही।
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