पिछले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान नीतीश कुमार की पार्टी को जब कथित तौर पर कमजोर करने की कोशिश की जा रही था तो लोक जनशक्ति पार्टी यानी एलजेपी में भी दरारें पड़ रही थीं। चुनाव के कुछ समय बाद जिस एलजेपी में चाचा और भतीजे दो अलग-अलग खेमे हो गए थे, उनको अब बीजेपी एक करना चाहती है। लेकिन क्या एलजेपी के दोनों खेमे विलय के लिए तैयार होंगे?
इस सवाल के जवाब से पहले यह जान लें कि एलजेपी में विभाजन किस वजह से हुआ था। कहा जाता है कि दिवंगत राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी के विभाजन ने एक बार नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड को कमजोर करने और भाजपा को बढ़त दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। लेकिन यही विभाजन अब भाजपा के लिए सिरदर्द साबित हो रहा है। बीजेपी चाहती है कि पासवान वोटों में बिखराव को रोकने के लिए दोनों गुट एक छतरी के नीचे आएँ, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है।
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता मज़बूत हो रही है और कहा जा रहा है कि मजबूरी में बीजेपी भी एनडीए को मज़बूत करने में जुटी है। विपक्षी दलों के एकजुट होने की योजना के साथ बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने भी 18 जुलाई को एक बैठक बुलाई है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान सहित कई नए सहयोगी और कुछ पूर्व सहयोगी एनडीए की बैठक में शामिल हो सकते हैं।
एलजेपी के एक खेमे वाले राम विलास पासवान के भाई पशुपति नाथ पारस वर्तमान में केंद्र सरकार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हैं। एलजेपी के दूसरे खेमे लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान भी एनडीए में आ रहे हैं। इसी को लेकर ज़्यादा मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं।
दो दिन पहले बीजेपी के केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय ने दोनों गुटों से मुलाकात की थी। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार नित्यानंद राय ने विलय का विचार रखा था। लेकिन पासवान के भाई पशुपति नाथ पारस ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। रिपोर्ट के अनुसार पारस ने कहा है, 'उन्होंने कहा कि चाचा, भतीजे, एक साथ हो जाओ, मैंने कहा कि यह संभव नहीं है। जब चीजें गलत हो जाती हैं, जब दूध फट जाता है, तो आप कितनी भी कोशिश कर लें, आपको मक्खन नहीं मिलता है।'
रिपोर्ट के अनुसार पशुपति पारस के नेतृत्व वाले गुट ने कहा कि वे एनडीए में चिराग पासवान के प्रवेश का विरोध नहीं करेंगे, लेकिन वे उनका स्वागत भी नहीं करेंगे।
बता दें कि 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के विरोध में उम्मीदवार उतारे थे। हालाँकि, उन्होंने बीजेपी का विरोध नहीं किया था। इसी बीच एलजेपी में मनमुटाव की ख़बरें आई थीं। 2021 में पार्टी में विभाजन हो गया था और चिराग के चाचा पशुपतिनाथ पारस ने एलजेपी पर दावा किया था। आख़िर में दोनों खेमे अलग हो गए थे। तब पारस बीजेपी के साथ सरकार में शामिल हो गए थे। अब चिराग पासवान बीजेपी से हाथ मिला रहे हैं।
चाचा और भतीजा फिलहाल हाजीपुर सीट को लेकर लड़ाई में फंसे हुए हैं। दोनों का लक्ष्य राम विलास पासवान की विरासत पर दावा करना है। अपने जीवनकाल में यह सीट राम विलास पासवान का गढ़ थी। 2019 में यहां से पारस और जमुई से चिराग पासवान जीते थे। पारस ने अब अपने भतीजे के लिए सीट छोड़ने से इनकार कर दिया है। उन्होंने अपने भतीजे पर लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल से सहानुभूति रखने का भी आरोप लगाया।
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