बिहार में 7 जनवरी से जातिगत गिनती शुरू हो गई लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का असमंजस खत्म नहीं हुआ। 9 अगस्त 2022 से पहले तक नीतीश कुमार के साथ सरकार में रही भारतीय जनता पार्टी के नेता चाहे-अनचाहे जातीय जनगणना के लिए कैबिनेट की स्वीकृति दिलाने में शामिल रहे थे। लेकिन अब उनके नेताओं के बयानों से ऐसा लगता है कि इस मुद्दे पर उनसे न निगलते बन रहा, न उगलते।
भारतीय जनता पार्टी के असमंजस को इस बात से समझा जा सकता है कि उसके नेता एक तरफ तो इस जातीय गणना का श्रेय भी लेना चाहते हैं और दूसरी तरफ उसके ही नेता इसे जातिवाद की राजनीति बता रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य और पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी चाहते हैं कि मौजूदा उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इसका श्रेय न लें बल्कि भारतीय जनता पार्टी को इसका श्रेय मिले। उन्होंने इसका कारण यह बताया कि जब कैबिनेट से जातीय गणना का निर्णय पारित हुआ था तब तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री नहीं थे। वे यह भी कहते हैं कि कर्नाटक और तेलंगाना के बाद बिहार तीसरा राज्य है जहां भाजपा के समर्थन से जातीय जनगणना शुरू हो रही है।
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दूसरी तरफ पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और वर्तमान नेता प्रतिपक्ष भारतीय जनता पार्टी के सीनियर लीडर विजय कुमार सिन्हा जातीय गणना के लिए श्रेय लेने के बजाय इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। उन्होंने बयान दिया कि पिछले 75 सालों में किसी दल ने जातीय गणना क्यों कराई, 1931 के बाद जाति जनगणना क्यों नहीं हुई। उन्होंने लालू प्रसाद का नाम लिए बिना कहा कि उनके (नीतीश के) बड़े भाई ने जातीय उन्माद पैदा करवाने के लिए या जातीय गणना शुरू कराई है।
उन्होंने लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनों के 32 साल के कार्यकाल को जोड़ते हुए पूछा कि इस दौरान उन्होंने जातीय जनगणना क्यों नहीं कराई। उन्होंने जातीय जनगणना को जातिविहीन समाज के विचार की बात से भी जोड़ दिया।
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दूसरी ओर, सुशील कुमार मोदी तो बाजाब्ता तौर पर पोस्टर बनाकर बता रहे हैं कि भाजपा ने विधानसभा और विधान परिषद में जातीय जनगणना का समर्थन किया और पार्टी इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से मिले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल थी। उन्होंने एक और जगह लिखा भाजपा हमेशा जातीय जनगणना के पक्ष में रही है। बिहार में जातीय जनगणना कराने का कैबिनेट का फैसला भी उस सरकार का था जिसमें दो उपमुख्यमंत्री भाजपा के थे।
भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल जातीय जनगणना के विरोध में सीधे तो कुछ नहीं कह रहे हैं लेकिन इसकी प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि सिर्फ जाति की गणना हो रही है, उप जातियों की गणना क्यों नहीं हो रही है। उन्हें लगता है कि इसमें आंकड़े छिपाने की साजिश है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि कुशवाहा समाज में दांगी समाज को उपजाति नहीं मानेंगे तो क्या उसे एक अलग ही जाति मानेंगे और बनिया समाज में 65 उपजातियां हैं तो क्या उसे एक वैश्य समाज ही मानेंगे या 65 उप जातियों में मानेंगे।
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भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के विपरीत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बारे में स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि इस गणना का लाभ हर जाति के लोगों को होगा क्योंकि इसमें आर्थिक जानकारी भी ली जा रही है। जदयू के वरिष्ठ नेता और वित्त मंत्री विजय कुमार चौधरी ने कहा कि बिहार में जाति आधारित गणना शुरू हो जाने से भाजपा नेता हताश और परेशान हैं।
उन्होंने कहा कि पहले तो भाजपा को यह उम्मीद नहीं रही होगी कि जातीय जनगणना शुरू होगी लेकिन अब जब यह शुरू हो गई है तो वे आरोप लगा रहे हैं इससे जातीय उन्माद का खतरा है। उन्होंने कहा कि इससे तो सवर्णों सहित सभी जाति के गरीबों की पहचान होगी जिससे उनके उत्थान के लिए योजनाएं बनाने में सुविधा होगी।
आमतौर पर सुशील कुमार मोदी को जवाब देने का काम नीतीश कुमार के करीबी जदयू उपाध्यक्ष व एमएलसी संजय सिंह का रहता है। उन्होंने सुशील मोदी की आपत्तियों पर कहा कि यदि वे जाति आधारित गणना के समर्थन में हैं तो फिर हिम्मत दिखाएं और केंद्र सरकार से अपील करें कि पूरे देश में ऐसी गणना की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि जातीय गणना कराने का फैसला जरूर पिछली सरकार का था लेकिन भाजपा का फैसला मजबूरी का था और उसके नेताओं ने कदम कदम पर यह बताने की कोशिश की थी कि उनका समर्थन नहीं है।
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