पटना में गंगा नदी और ऐतिहासिक अशोक राजपथ के बीच खड़ी दुनिया भर में अपनी 21 हज़ार अमूल्य पांडूलिपियों के लिए मशहूर खुदाबख्श खां ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी को अपनी वजूद की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इसलिए कि उसके सामने से होते हुए एक एलिवेटेड सड़क बननी है।

दुनिया भर में अपनी 21 हज़ार अमूल्य पांडूलिपियों के लिए मशहूर खुदाबख्श खां ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी को अपनी वजूद की लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इसलिए कि उसके सामने से होते हुए एक एलिवेटेड सड़क बननी है।
बिहार विधानसभा की पुस्तकालय समिति, पुस्तक और विरासत प्रेमियों के भारी विरोध के बाद ऐसे संकेत मिले हैं कि भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अन्तर्गत चलने वाली इस लाइब्रेरी को जीवनदान मिल जाए लेकिन अभी यह बात पूरे विश्वास के साथ नहीं कही जा सकती।
1819 में खुदाबख्श खां द्वारा स्थापित इस लाइब्रेरी के दक्षिणी हिस्से में लगभग 115 साल पहले बना कर्जन रीडिंग रूम है जहाँ पटना विश्वविद्यालय और अन्य शिक्षण संस्थानों के लगभग दो सौ छात्र व अन्य पाठक हर दिन आते हैं। यहाँ हिन्दी, उर्दू और अंग्रेजी के राष्ट्रीय व स्थानीय समाचार पत्र और पत्रिकाएँ उपलब्ध रहती हैं। लाइब्रेरी का मुख्य भवन रिसर्च स्कॉलर्स के लिए है।