शंकराचार्य के एक शिष्य का कहना था कि वैसे भी वे लोग कार्यक्रम में 4 लोगों के जत्थे में ही शिलाओं को लेकर अधिग्रहित परिसर की ओर बढ़ने वाले थे। यह निर्णय अयोध्या प्रशासन की सख़्ती और अधिग्रहित परिसर को सुरक्षा कवच में जकड़ने के बाद किया गया था।
कार्यक्रम रद्द करने का दबाव बढ़ा
देश में बदली परिस्थितियों के कारण स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती पर कार्यक्रम को स्थगित करने का दबाव बढ़ा। पहले वह संतों व प्रयागराज प्रशासन के अनुरोध को ठुकरा चुके थे। हालाँकि अयोध्या में उनके कार्यक्रम की तैयारी न के बराबर ही थी।
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने भी कार्यक्रम स्थगित करने का अनुरोध किया था। लेकिन स्वामी स्वरूपानंद नहीं माने थे और 17 फ़रवरी को अयोध्या कूच का एलान किया था। 21 फ़रवरी को अधिग्रहित परिसर में शिलान्यास की योजना थी।
विहिप ने किया स्वागत
विहिप प्रवक्ता शरद शर्मा ने शंकराचार्य के निर्णय का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि देश को आतंकी हमला करने वालों से निपटने के लिए एकजुट होने की ज़रूरत है। विहिप का कहना है कि राम मंदिर तो बनेगा ही, लेकिन शंकराचार्य को अयोध्या कूच का कार्यक्रम नहीं रखना चाहिए था। विहिप के मुताबिक़, कार्यक्रम का असली मक़सद धार्मिक न होकर राजनीतिक था।
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