मैं यह पत्र बहुत दु:ख और गुस्से में लिख रहा हूँ। पुलवामा में सीआरपीएफ़ के 40 जवानों की मौत ने देश को बड़े गहरे घाव दिए हैं। एक भारतीय के नाते हम इस वक़्त बहुत गुस्से में हैं और बदले की भावना से भरे हुए हैं।
अब यह पूरी तरह से स्थापित हो चुका है कि जैश-ए-मुहम्मद और पाकिस्तानी फ़ौज़ का संबंध बरसों से है। इसके दस्तावेज़ी सबूत हैं और पूरी दुनिया उसे आतंकवादी मानती है, सिर्फ़ आपका दोस्त चीन ही अपवाद है।
हमले को फ़ौज की कारस्तानी न बताएँ
कृपया आप पहले की पाकिस्तानी सरकारों की तरह से यह बहाना न बनाएँ कि यह घटना पाकिस्तानी फ़ौज़ की कारस्तानी है। पाकिस्तान की सरकार आपकी सरकार है और आप पाकिस्तान के चुने हुए प्रधानमंत्री हैं। पाकिस्तान में जो कुछ भी होता है, वह आपकी जानकारी में होता है। हम जानते हैं कि पाकिस्तान में फ़ौज़ और जनरल बाजवा निर्णायक भूमिका निभाते हैं, जैसा कि वे पिछले 70 सालों से करते आए हैं। लेकिन आप अपनी ज़िम्मेदारियों से मुँह नहीं मोड़ सकते।
अगर आप करतारपुर साहिब गलियारा खोलकर भारत के साथ दोस्ती का क्रेडिट लेते हैं तो जम्मू-कश्मीर में सीमापार आतंकवाद को रोकने में असफलता की ज़िम्मेदारी भी आपको लेनी पड़ेगी।
आपकी क्षमताओं की हमेशा प्रशंसा की
आपकी छक्के मारने की प्रतिभा और तेज़ गेंदबाज़ी के हुनर के हम सब लोग कायल थे। आपकी शारीरिक सुंदरता और आकर्षक व्यक्तित्व से हम ईर्ष्या करते थे। बार-बार चोट लगने के बाद खेल के मैदान में बार-बार वापसी और अपने खेल में लगातार बदलाव करने की आपकी क्षमता से हम लोग हमेशा ही चमत्कृत रहते थे। और जब आपने 1992 में विश्व कप जीता था, उस वक़्त में मैलबर्न में था और मैं बहुत ख़ुश हुआ था।
भारतीय उप महाद्वीप के क्रिकेट खिलाड़ियों की एक पूरी पीढ़ी आपको एक करिश्माई रोल मॉडल मानती आई है और क्रिकेट के बाद जब आपने एक कैंसर अस्पताल बनाने के लिए अपना जीवन लगा दिया तब मैं आपसे बहुत प्रभावित हुआ था।
भारतीय उपमहाद्वीप में किसी भी दूसरे खिलाड़ी से ज़्यादा आपने अपनी प्रसिद्धि और ख्याति का इस्तेमाल कर समाजसेवा करने का काम किया। आपने साबित किया कि आप सिर्फ़ कहते नहीं हैं, करते भी हैं। और सही मायनों में अर्थपूर्ण तरीक़े से नया पाकिस्तान बनाने में आपने अपना योगदान दिया।
- 1990 के दशक में जब आप राजनीति में आए तो मैं थोड़ा हतप्रभ था। लेकिन बाद में जिस तरीक़े से आपने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ बड़े ही आक्रामक तरीक़े से लड़ाई लड़ी, उससे मैं आपका कायल हो गया। जब मुझसे लोग कहते थे कि एक राजनीतिज्ञ के तौर पर इमरान ख़ान ने चरमपंथी इस्लामी ताक़तों से समझौता कर लिया है तो मुझे इस बात का बिलकुल यक़ीन नहीं होता था।
- पिछले साल जब आप पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, तो मैं बड़ा ख़ुश था। आप पहले ऐसे क्रिकेटर थे जो किसी देश के शासनाध्यक्ष बने। यह एक एतिहासिक क्षण था। चुनाव के बाद, यह ख़बर आई थी कि पाकिस्तानी फ़ौज़ ने धाँधली कर आपको प्रधानमंत्री बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है। इस बात से मैं परेशान हुआ था। लेकिन तब भी मुझे यक़ीन था कि आपको कोई कठपुतली नहीं बना सकता। आप एक ऐसे शख़्स हैं जिसे कोई दूसरा आदमी नियंत्रित नहीं कर सकता।
रिश्ते बेहतर होने की थी उम्मीद
मुझे यह आशा थी कि भारत, पाकिस्तान के रिश्ते बेहतर होंगे। पाकिस्तान का कोई भी प्रधानमंत्री कभी भी इतनी बार हिंदुस्तान नहीं आया था, न ही इस देश में उनके इतने सारे दोस्त थे। मुझे आशा थी कि भारत-पाकिस्तान के बीच दशकों से जो अविश्वास की दीवार खड़ी है, उसे आप तोड़ेंगे और उसके बाद जब आपने करतारपुर साहिब गलियारा खोलने का काम किया तो मैं इस बात से मुतमईन था कि फ़ौज़ ने आपको इतनी जगह दी है कि आप भारत से संपर्क कर सकें। मैं तब मीडिया डेलीगेशन के एक हिस्से के तौर पर करतारपुर आया था, क्योंकि मैं आपनी आँखों के सामने इतिहास को बनते देखना चाहता था।
बढ़ गया था भरोसा
सिखों की उस पवित्र ज़मीन पर जब आपने यह कहा कि दोनों देशों को अपनी पुरानी शत्रुता को भूलकर भविष्य की तरफ़ बढ़ना है तब आपकी बातें मन को छू गईं थी। जब आपने एक पत्रकार वार्ता में पाकिस्तान की जेल में रहने वाले एक युवा भारतीय क़ैदी के मामले में दख़ल देने का वचन दिया था तब मेरा भरोसा काफ़ी बढ़ गया था।
इमरान, आप सही दिशा में आगे बढ़ रहे थे, सही बातें कह रहे थे और सही क़दम उठा रहे थे। यह वही इमरान ख़ान थे, जिन्हें मैं जानता था, जिनका मैं सम्मान करता था। वह एक ऐसा शख़्स था, जो सीमाओं के पार एक नया इतिहास बनाना चाहता था।
- इस बीच, पुलवामा की यह घटना होती है। जब यह घटना होती है तो आप अचानक चुप हो जाते हैं। तब आपके मुँह से निंदा का कोई शब्द नहीं निकलता है, आप पुलवामा की घटना के लिए ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं करते हैं और ऐसा लगता है कि मसूद अज़हर आपकी हद से बाहर है।
मसूद के ख़िलाफ़ करें कार्रवाई
जो शख़्स क्रिकेट के मैदान में कभी भी पीछे नहीं रहा, आज वही फ़ौज़ियों के सामने सरेंडर कर रहा है। ऐसा लगता है कि फ़ौज़ आपकी सरकार को चला रही है। अगर आप मसूद अज़हर के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर सकते हैं तो यह बोलिए। आप यह बहाना मत बनाइए कि कश्मीर एक विवादित ज़मीन है, कि आतंक को स्थानीय लोगों ने अंजाम दिया है और जैश-ए-मुहम्मद जैसे संगठन स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई लड़ रहे हैं।
इमरान भाई, अब वक़्त कार्रवाई करने का है
अगर आप भारतीय नागरिकों पर हमला बोलने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं कर सकते हैं तो हमारी इस दोस्ती का क्या मतलब है। और उस गर्मजोशी का क्या मतलब है जो भारतीयों ने आपको हमेशा बख़्शी है। माफ़ करिएगा इमरान भाई, अब वक़्त करने का है, जो कहते थे। वह करिए। वैसे ही जैसे क्रिकेटर होने के नाते आपने तटस्थ अंपायरों की पुरजोर वक़ालत कर खेल को पूरी तरह से बदल दिया है।
एक नेता के तौर पर अब आपको बोलना होगा। मानवता के दुश्मन आतंक के सौदागरों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी होगी। मसूद अज़हर को भारत को सौंपिए, सीमा से लगे आतंकवादी कैंपों को बंद करिए, फ़ौज़ से कहिए कि भारत से हज़ार साल की जंग ख़त्म करे।
मैं जानता हूँ कि जब आप यह सब करेंगे तो आपका प्रधानमंत्री पद नहीं बचा रहेगा लेकिन चुनाव आपको करना है कि आप ऊँचे आदर्शों के लिए इस पद को छोड़ने के लिए तैयार हैं या भारत देश में जो सद्भावना आपने अपने लिए बटोरी है, उसको खोना चाहते हैं। मैंने पहले ही कह दिया है कि मैं यह चिट्ठी बहुत गुस्से और दु:ख में लिख रहा हूँ। यह गुस्सा धीरे-धीरे कम हो जाएगा लेकिन दु:ख कम नहीं होगा।
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