अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट से आने वाले फ़ैसले से पहले अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद यानी विहिप ने एक चौंकाने वाला फ़ैसला लिया है। तीन दशक में पहली बार इसने राम मंदिर बनाने के लिए पत्थरों को तराशने के काम को बंद कर दिया है। माना जाता है कि 1990 के बाद से अब तक कई घटनाक्रम हुए लेकिन पत्थरों को तराशने का काम कभी बंद नहीं हुआ था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के 17 नवंबर को सेवानिवृत होने से पहले इस मामले में फ़ैसला आने की उम्मीद है। सरकार से लेकर प्रशासन तक में हलचल तेज़ है, लेकिन विहिप ने पत्थर तराशने के काम को रोक दिया है।
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिंदू परिषद ने पत्थर तराशने के लिए कार्यशाला बनाई थी। सितंबर 1990 में इसका गठन किया गया था। एक समय इसमें हर रोज़ क़रीब डेढ़ सौ कारीगर काम करते थे। जब पत्थरों को तराशने का काम शुरू हुआ था तब मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इसके बाद यह काम लगातार जारी रहा था।
'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार, विहिप के प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा कि उन्होंने पत्थरों को तराशने का काम रोक दिया है। उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि न्यास यह तय करेगा कि फिर कब यह काम शुरू किया जाएगा। विहिप का दावा है कि 1.25 लाख घन फ़ीट पत्थरों को तराशा जा चुका है।
कहा जा रहा है कि अयोध्या में कारसेवकपुरम से अधिकतर कारीगर गुजरात के भुज और सौराष्ट्र में लौट गए हैं। इस काम को बंद होने पर अयोध्या के महंत भी आश्चर्य जताते हैं। ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ के अनुसार, अयोध्या में सरयू कुंज सीता राम मंदिर के महंत युगल किशोर शरण शास्त्री ने कहा, '1992 में जब बाबरी मसजिद ढहाया गया था और आरएसएस, वीएचपी जैसे संगठनों को छह महीने के लिए प्रतिबंधित किया गया था तब भी पत्थरों को तराशने का काम नहीं रुका था। अखिलेश के शासन काल में राजस्थान और गुजरात से लगातार पत्थरों को लाया गया। ऐसे समय में इस काम को रोकना चौंकाने वाला है।'
अपनी राय बतायें