अयोध्या विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मंगलवार को मुसलिम पक्ष ने कहा कि विवादित स्थल पर चुपके से भगवान रामलला की मूर्तियाँ रखी गई हैं। रोज़ाना सुनवाई के 18वें दिन सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने दलील रखी। उन्होंने कहा कि बाबरी मसजिद में मूर्ति स्थापित करना छल से हमला करना है। इससे एक दिन पहले 17वें दिन की सुनवाई में मुसलिम पक्ष ने बाबरी मसजिद पर बार-बार हमले का ज़िक्र किया था। उन्होंने कहा था कि 1934 में हमला किया गया, 1949 में अवैध घुसपैठ हुई और 1992 में इसे तोड़ दिया गया। सोमवार से मुसलिम पक्षकारों की दलीलें सुनीं जा रही हैं। इससे पहले 16 दिन तक हिंदू पक्षकारों की दलीलें सुनी गई थीं।
मुसलिम पक्ष की ओर से पेश राजीव धवन ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दलील रखी कि देश के आज़ाद होने की तारीख़ और संविधान की स्थापना के बाद किसी धार्मिक स्थल का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से मैं चाहूँगा कि वह इस मामले के तथ्यों के आधार पर फ़ैसला दे।
दलील रखने के दौरान धवन ने पुरानी तसवीरें कोर्ट के सामने रखीं। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि विवादित ढाँचे में बीच वाले मेहराब के ऊपर अरबी लिपि में बाबर और अल्लाह उत्कीर्ण था। उन्होंने दलील रखी कि कलमा भी लिखा था।
मुसलिम पक्ष के वकील धवन ने यह भी कहा कि अब कोई रथयात्रा नहीं होनी चाहिए। कब्जे के अधिकार के सवाल पर उन्होंने कहा कि भले ही मुसलिम पक्ष के पास विवादित ज़मीन के कब्ज़े का अधिकार नहीं है, लेकिन मुसलिम पक्ष वहाँ नमाज़ अदा करता रहा था। उन्होंने कहा कि मुसलिम पक्ष के पास विवादित ज़मीन के कब्जे का अधिकार नहीं है क्योंकि 1934 में निर्मोही अखाड़ा ने ग़लत तरीक़े से कब्जा कर लिया था और इसके बाद नमाज़ अदा नहीं की गई।
धमकी देने वाले को नोटिस
मुसलिम पक्ष की दलीलें रख रहे राजीव धवन को जान से मारने की धमकी देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व प्रोफ़ेसर षणमुगम को नोटिस जारी किया। आरोप हैं कि उन्होंने राजीव को धमकी दी थी और कहा था कि उन्हें सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ़ से पेश नहीं होना चाहिए।
इस मामले में राजीव धवन ने सोमवार को भी सुनवाई के दौरान इस मामले को उठाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए मंगलवार का दिन तय कर दिया था।
क्या था इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला?
सुप्रीम कोर्ट उन केसों की सुनवाई कर रहा है जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के 30 सितंबर 2010 के फ़ैसले के ख़िलाफ़ 14 अपीलें दायर की गई हैं। हाई कोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान के बीच समान रूप से विभाजित करने का आदेश दिया था। लेकिन हाई कोर्ट का यह फ़ैसला कई लोगों को पसंद नहीं आया। यही कारण है कि इस मामले के ख़िलाफ़ कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएँ दायर कीं। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए मई 2011 में हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। इसी मामले में यह रोज़ाना सुनवाई चल रही है।
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