असम में बाल विवाह कानून के तहत कार्रवाई सरकार के गले की फांस बनती जा रही है। गोहाटी हाईकोर्ट ने बाल विवाह के चार अलग-अलग मामलों में नौ लोगों की अग्रिम जमानत मंजूर करते हुए सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने पूछा है कि इन मामलों में जो कार्रवाई सरकार कर रही है, उसमें पॉक्सो एक्ट (बाल यौन अपराध विरोधी कानूनी ) के तहत कार्रवाई कैसे की जा सकती है।
कथित तौर पर बाल विवाह करने वाले करीब 3,000 से अधिक लोगों को अब तक पूरे असम में गिरफ्तार किया गया है। इन लोगों को अस्थायी जेलों में रखा गया है। इनमें ज्यादातर समुदाय विशेष के लोग हैं। इन गिरफ्तारियों का राज्य की महिलाओं ने विरोध किया और अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले की गिरफ्तारी की निंदा की।
बीजेपी शासित असम में पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल उठाया गया है। क्योंकि इसने लोगों के वर्षों पुराने रिश्तों पर चोट की है। जिन लोगों ने वर्षों पूर्व शादी की थी, वे इस कानून के तहत कार्रवाई का सामना कर रहे हैं। विशेषज्ञों ने ऐसे मामलों में POCSO एक्ट को लागू करने की वैधता पर भी संदेह जताया है। पॉस्को एक्ट में अपराध साबित होने पर बीस वर्ष तक की सजा हो सकती है। गोहाटी हाईकोर्ट ने मंगलवार को मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सुमन श्याम ने कहा-
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने राज्य में लोगों की खराब सेहत के लिए बाल विवाह को जिम्मेदार बताया था और इसी के मद्देनजर उन्होंने कार्रवाई का आदेश दिया था। राज्य पुलिस ने 3 फरवरी को 4,000 से अधिक पुलिस मामलों के साथ बाल विवाह पर कार्रवाई शुरू कर दी। लेकिन इसकी आड़ में मुस्लिम परिवारों और आदिवासियों को टारगेट किया गया।
तमाम समाजशास्त्रियों, स्तभंकारों ने इस कार्रवाई पर ऐतराज करते हुए समय-समय पर कहा कि बाल विवाह एक सामाजिक समस्या है। उसे पुलिस कार्रवाई से खत्म नहीं किया जा सकता।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अपूर्वानंद ने सत्य हिन्दी के लिए लिखे गए कॉलम में इस पर विस्तार से रोशनी डाली थी।
इस बीच मुख्यमंत्री सरमा ने फिर बयान देकर कहा कि इस सामाजिक बुराई के खिलाफ अभियान जारी रहेगा। हम इस सामाजिक अपराध के खिलाफ अपनी लड़ाई में असम के लोगों का समर्थन चाहते हैं।
विपक्षी दलों ने राजनीतिक लाभ के लिए इन गिरफ्तारियों को "कानून का दुरुपयोग" करार दिया था। उसने कहा था कि पुलिस लोगों के साथ ऐसे पेश आ रही है, जैसे वो आतंकवादी हों।
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