कांग्रेस का जोर इन दिनों पांच राज्यों के चुनाव पर है। पुडुचेरी में सरकार गिरने और G23 गुट के नेताओं की बग़ावत के बाद भी पार्टी चुनाव में पूरा जोर लगा रही है। असम में पार्टी को जीत दिलाने का जिम्मा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सौंपा गया है और जब से बघेल ने असम के दौरे शुरू किए हैं, चुनावी हवा बदलती दिख रही है।
बीते कुछ सालों में असम में कई नेता कांग्रेस छोड़कर गए हैं लेकिन इसके बाद भी पार्टी असम चुनाव में जीत का ख़्वाब देख रही है तो इसके पीछे प्रमुख कारण बघेल और उनकी टीम ही है। बघेल ने अपने तीन अहम सलाहकारों विनोद वर्मा, रूचिर गर्ग और राजेश तिवारी के साथ असम में डेरा डाला हुआ है। राहुल गांधी के क़रीबी और असम के प्रभारी जितेंद्र सिंह भी लगातार असम के दौरे कर रहे हैं।
बीजेपी को विदा किया था
भूपेश बघेल वह शख़्स हैं, जिनके प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए 15 साल से छत्तीसगढ़ की सत्ता में बैठी बीजेपी की विदाई हुई थी। जबकि वहां रमन सिंह का हारना बेहद मुश्किल लग रहा था। मुख्यमंत्री पद के चार दावेदारों के बीच कांग्रेस आलाकमान ने बघेल को ही चुना था और उसके बाद से ही बघेल ने आलाकमान की नज़रों में अपना सियासी क़द बढ़ाया है।
‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ पर काम
कांग्रेस असम का चुनाव जीतने के लिए ‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ पर काम कर रही है। ‘छत्तीसगढ़ मॉडल’ कांग्रेस का चुनावी बूथ मैनेजमेंट है और इसी के दम पर कांग्रेस छत्तीसगढ़ में जीती थी। बघेल के द्वारा चुने हुए कांग्रेस नेताओं की एक टीम है जो असम में चुनावी तैयारियों को संभाल रही है।
असम चुनाव पर देखिए चर्चा-
संकल्प शिविरों का आयोजन
ये टीम यहां पर माइक्रो लेवल बूथ मैनेजमेंट पर काम कर रही है और कांग्रेस के प्रशिक्षण सत्रों और संकल्प शिविरों का आयोजन भी कर रही है। टीम के कामकाज पर बघेल ख़ुद भी पूरी निगाह रखते हैं। संकल्प शिविरों के जरिये पार्टी नेताओं को बूथ स्तर पर चुनाव में जुटने के लिए तैयार किया जा रहा है।
दिख रहा असर
बघेल ने छत्तीसगढ़ में प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए ऐसे ही संकल्प शिविर लगाए थे। इन संकल्प शिविरों में बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को वोटर्स लिस्ट को बांटने, वोटर्स को पहचानने, उनसे फीडबैक लेने, मुद्दों को उठाने सहित अन्य अहम बातें बताई जाती हैं। इन संकल्प शिविरों का ज़मीन पर भी असर दिख रहा है। असम की अधिकतर विधानसभा सीटों में बघेल टीम के लोग सक्रिय हैं और वे प्रचार पर पूरी नज़र रख रहे हैं।
असम में कांग्रेस का आधार काफी मजबूत रहा है। तरूण गोगोई की क़यादत में वहां वह लगातार 15 साल तक सरकार चला चुकी है। लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव में उसकी करारी हार हुई थी।
महागठबंधन दिलाएगा जीत
कांग्रेस ने इस बार असम में मजबूत गठबंधन बनाया है। उसके साथ बदरूद्दीन अजमल की ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) सहित वाम दलों सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई (एमएल), बीपीएफ़ और आंचलिक गण मोर्चा का भी साथ है। इस गठबंधन को अंतिम रूप देने में भी बघेल की भूमिका होने की बात कही जाती है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और एआईयूडीएफ़ के साथ लड़ने के कारण बीजेपी को फायदा हुआ था। लेकिन इस बार इन दोनों ने ऐसी भूल नहीं की है।
कांग्रेस असम के बड़े नेताओं को बस यात्रा में भेज रही है। तरूण गोगोई, देबब्रत सैकिया, सुष्मिता देव और प्रद्युत बोरदोलोई इन यात्राओं में शामिल रहे हैं।
कांग्रेस को उम्मीद है कि सीएए के ख़िलाफ़ हुए आंदोलनों, चाय बागानों के वर्कर्स की नाराज़गी, बेरोज़गारी, महंगाई के मुद्दों के कारण उसे असम में मदद मिलेगी। इसके अलावा एआईयूडीएफ़ और बीपीएफ़ जैसे अहम दलों के साथ आने के कारण भी कांग्रेस सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है।
ओबीसी नेता के रूप में उभरे बघेल
भूपेश बघेल पिछड़े वर्ग (ओबीसी) से आते हैं और कांग्रेस को एक ऐसे बड़े ओबीसी नेता की ज़रूरत है जो उसके लिए दूसरे राज्यों में भी चुनावी ज़मीन तैयार कर सके। कांग्रेस उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी बघेल को उतार चुकी है और वह उन्हें प्रमुख ओबीसी चेहरा बनाना चाहती है। देश में पिछड़ों की आबादी 55 फ़ीसदी से ज़्यादा बताई जाती है। अगर बघेल असम में कांग्रेस को जीत दिलाने में कामयाब रहते हैं तो निश्चित रूप से 10, जनपथ की नज़रों में तो उनका क़द बढ़ेगा ही, कांग्रेस में एक बड़े ओबीसी नेता की कमी भी पूरी होगी।
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