असम सरकार ने शुक्रवार देर रात बड़ा फैसला लेते हुए राज्य में मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट 1935 या मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को खत्म कर दिया है। शुक्रवार देर रात हुई मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा की अध्यक्षता में राज्य कैबिनेट की बैठक में यह फैसला लिया गया है।
अब राज्य में सभी शादियां स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत पंजीकृत होंगी। माना जा रहा है कि असम सरकार का यह फैसला राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड की दिशा में पहला कदम है। असम सरकार का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब एक पखवाड़े पहले ही उत्तराखंड विधानसभा ने यूसीसी पर लाए गए विधेयक को पारित कर दिया है।
असम सरकार का कहना है कि मुस्लिम मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट 1935 को खत्म करने से राज्य में बाल विवाह रुकेंगे। असम सरकार के मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने कहा है कि यह राज्य में समान नागरिक संहिता की दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।
2011 की जनगणना के मुताबिक, असम की आबादी में 34 प्रतिशत मुस्लिम हैं। राज्य की कुल 3.12 करोड़ की आबादी में से 1.06 करोड़ मुस्लिम समुदाय के लोग हैं। माना जाता है कि राज्य सरकार के इस फैसले से ये बड़ी आबादी प्रभावित होगी।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सोशल मीडिया एक्स पर इसकी जानकारी देते हुए कहा है कि 23 फरवरी 2024 को असम कैबिनेट ने सदियों पुराने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम को निरस्त करने का एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया।
इस अधिनियम में विवाह पंजीकरण की अनुमति देने वाले प्रावधान शामिल थे, भले ही दूल्हा और दुल्हन 18 और 21 वर्ष की कानूनी उम्र तक नहीं पहुंचे हों, जैसा कि कानून द्वारा आवश्यक है। यह कदम असम में बाल विवाह पर रोक लगाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम है।
असम सरकार के मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने मीडिया को जानकारी देते हुए कहा है कि असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को खत्म कर दिया है। कैबिनेट की शुक्रवार को हुई बैठक में इसे खत्म किया गया है।
इसके बाद से इस कानून के तहत मुस्लिम विवाह या तलाक का पंजीकरण नहीं हो सकेगा। उन्होंने कहा कि, हमारे पास स्पेशल मैरेज एक्ट है, इसलिए हम चाहते हैं कि सभी विवाह इसके तहत हो। उन्होंने असम मुस्लिम विवाह और तलाक पंजीकरण अधिनियम 1935 को औपनिवेशिक समय का कानून बताया।
उन्होंने इस फैसले को बाल विवाह के खिलाफ राज्य सरकार की कार्रवाई से जोड़ते हुए कहा है कि इससे बाल विवाह को रोकने में मदद मिलेगी।
इस कानून को निरस्त करने के बाद अब मुस्लिम समाज के विवाह और तलाक का रजिस्ट्रेशन डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर और डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार के द्वारा किया जाएगा।
राज्य सरकार के इस फैसले पर ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के प्रमुख मौलाना बदरुद्दीन अजमल ने कड़ी आपत्ति जताई है। मौलाना ने कहा है कि बाल विवाह केवल मुसलमानों में नहीं है, बल्कि अन्य समुदाय में भी है। ऐसे में सिर्फ मुसलमानों को टारगेट करना सही नहीं है।
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