असम विधानसभा चुनाव 2021 के पहले चरण में शनिवार को जिन सीटों पर मतदान होना है, क्या बीजेपी पिछले चुनाव के अपने प्रदर्शन को दुहरा पाएगी या उसे इस बार मुँह की खानी पड़ेगी? यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है कि असम में जहाँ सरकार विरोधी भावनाएं उफान पर हैं, वहीं बीजपे ने सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों को इस बार ढंडे बस्ते में डाल दिया है, जिन्हें उसने उस समय जोर शोर से उठाया था।
असम में पहले चरण में जिन 47 सीटों के लिए मतदान होना है, पिछली बार उनमें से बीजेपी ने 27 पर जीत हासिल की थी। असम गण परिषद (एजीपी) को 8, कांग्रेस को 9 और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) को सिर्फ दो सीटें मिली थीं।
12 ज़िलों की 47 सीटें
ये 47 सीटें राज्य के 12 ज़िलों में फैली हुई हैं और इन सीटों पर 264 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है।
चुनाव आयोग के अनुसार, इन विधानभा क्षेत्रों में 81,09,815 मतदाता पहले चरण में अपने मताधिकार का प्रयोग कर पाएंगे।
इन क्षेत्रों में 11,537 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं। ये 47 विधानसभा क्षेत्र सोणितपुर, विस्वनाथ, नगाँव, गोलाघाट, जोरहाट, माजुली, सिवसागर, चरायदेव, लक्ष्मीपुर, धेमाजी, डिब्रूगढ़, तिनसुकिया में हैं।
मुख्य उम्मदीवार, मुद्दे
जिन उम्मीदवारों के भाग्य का फ़ैसला शनिवार के मतदान से होगा, उनमें सबसे प्रमुख राज्य के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल हैं। वे बीजेपी की ओर से माजुली से चुनाव लड़ रहे हैं।
उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी रंजीत दत्त बेहाली विधानसभा से बीजेपी के उम्मीदवार हैं।
विधानसभा अध्यक्ष हितेंद्रनाथ गोस्वामी बीजेपी के टिकट पर जोरहाट से चुनाव लड़ रहे हैं। बीजेपी के ही नब कुमार दोले जानाई से तो संजय किशन तिनसुकिया से मैदान में हैं।
एनडीए में बीजेपी के साथ असम गण परिषद भी है। एजीपी के अतुल बोरा बाकाहाट से चुनावी मैदान में हैं तो केशब महंत कालियाबोर से तकदीर आजमा रहे हैं।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष गोहपुर से
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रिपुन बोरा गोहपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस सचिव भूपेन बोरा बिहपुरिया से मैदान में हैं।
कांग्रेस के ही भरत नारा नाओबोइचा से, प्रणति फूकन नहरकटिया और रकीबुल हसन समागुड़ी से चुनावी मैदान में हैं।
असम जाती परिषद के अध्यक्ष ल्युरिनज्योति गोगोई दो जगहों से चुनाव लड़ रहे हैं- दुलियाजान और नहरकटिया।
राइजोर दल के प्रमुख अखिल गोगोई सिवसागर से मैदान में है।
इन चुनावों की एक बड़ी ख़ासियत यह है कि बीजेपी ने पिछले चुनाव में जिस सीएए और एनआरसी को सबसे बड़ा मुद्दा बना दिया था, इस बार वह इन मुद्दों पर चुप है।
इसके अलावा इन इलाक़ों में हिन्दू मतदाता बड़ी तादाद में हैं और बीजेपी ने वहाँ वोटों के ध्रुवीकरण की भरपूर कोशिश की थी। उसका मक़सद इस ध्रुवीकरण के ज़रिए हिन्दू मतदाताओं को अपनी ओर लाना था।
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