इनमें 14 साल से कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों के खिलाफ पोक्सो अधिनियम और 14 से 18 साल तक की उम्र वाली लड़कियों से शादी करने वालों के खिलाफ बाल विवाह रोकथाम अधिनियम, 2006 के तहत मामले दर्ज किए गए हैं. मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने शुक्रवार को एक ट्वीट से इसकी जानकारी दी. सबसे अधिक 370 मामले धुबरी जिले में दर्ज किए गए हैं. उसके बाद होजई (255) और उदालगुड़ी (235) क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं. मुख्यमंत्री ने कहा है कि कम उम्र की लड़कियों से शादी करने वालों को गिरफ्तार कर विवाह को अवैध घोषित किया जाएगा.
राज्य पुलिस ने जिन इलाकों में बाल विवाह के मामले दर्ज किए हैं उनमें से ज्यादातर मुस्लिम-बहुल हैं. मुख्यमंत्री की दलील है कि बाल विवाह के खिलाफ अभियान किसी खास तबके को निशाना बनाने के लिए शुरू नहीं किया गया है. सरकारी अधिकारियों का कहना है कि यह अभियान उन लोगों के खिलाफ है जो पहले ही बाल विवाह जैसा गंभीर अपराध कर चुके हैं. पुलिस अभियान के साथ ही राज्य में इस मुद्दे पर व्यापक जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में बाल विवाह के एक लाख से ज्यादा मामले हैं.
समाजशास्त्रियों ने सरकार की इस पहल का स्वागत किया है. लेकिन कुछ संगठनों ने अंदेशा जताया है कि अल्पसंख्यक तबके के लोगों को परेशान करने के लिए कहीं इस कानून का दुरुपयोग नहीं हो. राज्य सरकार पहले भी अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपने कुछ फैसलों से सुर्खियों में रही है.
राज्य के बांग्लादेश से सटे धुबड़ी में बाल विवाह की दर 50 फीसदी है और दक्षिण सालमारा जिले में 44.7 फीसदी. सरकार की दलील है कि असम में माताओं और शिशुओं मृत्यु की दर बहुत ज्यादा है और इसकी प्राथमिक वजह बाल विवाह है. सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि राज्य में 11 फीसदी से ज्यादा युवतियां कम उम्र में ही मां बन जाती हैं. केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, असम माताओं की मृत्यु दर के मामले में पहले और शिशुओं की मृत्यु दर के मामले में देश में तीसरे नंबर पर है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-20) की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में एक लाख से ज्यादा लड़कियों की शादी उम्र से पहले की गई है. इससे साफ है कि असम में बाल विवाह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. राज्य सरकार के एक सर्वेक्षण के मुताबिक, असम में महज नौ वर्ष की एक लड़की मां बन गई है. राज्य में होने वाले बाल विवाह को ऐतिहासिक भूल बताते हुए सरमा का कहना था कि पिछली सरकारों ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 पर ध्यान नहीं दिया. यही वजह है कि यहां माताओं व शिशुओं की मृत्यु दर देश में सबसे ज्यादा है.
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