‘आज तो गर्दा उड़ा दिया’, फ़ेसबुक की एक एक लाइन की टिप्पणी पर इस लेखक को जैसी और जितनी प्रतिक्रिया मिली वह बताती है कि विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी का पहला भाषण सफल रहा। राहुल गांधी संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बोल रहे थे। उनका भाषण सौ मिनट का हुआ और लोकसभा चुनाव से जीवंत हुए विपक्षी खेमे में इस दौरान जो उत्साह दिखा वह तो उल्लेखनीय था ही, सत्ता पक्ष में जिस किस्म की हड़बड़ी दिखी उससे भी लगता है कि राहुल अपनी रणनीति में सफल हुए। इस भाषण के तत्काल बाद भाजपा की तरह से दो केन्द्रीय मंत्रियों और मुख्य पार्टी प्रवक्ता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपना पक्ष रखा या राहुल की बातों को काटने की कोशिश की। और फिर तो मीडिया मैनेजमेंट और भाजपा का प्रचार सेल तरह-तरह से हमले या राहुल की कमियाँ बताने के अभियान में जुट गया। पर जो जीवंतता संसद के अंदर दिखी वह टीवी चैनलों और अख़बारों में भी झलकी और हर जगह राहुल को वह स्थान और प्रमुखता मिली जो आम तौर पर उनके हिस्से नहीं आती थी। यू-ट्यूब समेत सोशल मीडिया पर तो चुनाव के आसपास से ही राहुल और प्रतिपक्ष को एक किस्म की बढ़त रही है। वहां स्वाभाविक तौर पर इस भाषण ही नहीं, इस सौ मिनट के पूरे तमाशे का शोर रहा।
तो पप्पू फर्स्ट क्लास पास हो गया!
- विश्लेषण
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- 2 Jul, 2024

विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल गांधी का पहला भाषण कितना सफल रहा? पढ़िए, संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर राहुल के भाषण का विश्लेषण।
राहुल के भाषण का कंटेन्ट भी बदला है, लेकिन सबसे ज्यादा उनका तरीका बदला है। अब यह पूरी तरह मैच्योर और लाइन पर आ गया हो, यह कहना कठिन है। कांग्रेस के जयपुर अधिवेशन में कार्यकारी अध्यक्ष चुने जाने पर उन्होंने जबरदस्त भाषण दिया था, इस संसद में भी एक दो बार उनका भाषण अच्छा हुआ है, लेकिन बाद के व्यवहार से उनका असर धुल गया। इस बार भी वे अगर हिन्दू समाज या भारतीय समाज में शांति, अहिंसा, निर्भयता जैसे गुण बताने के लिए तस्वीरें दिखाने जैसे काम न करते तो बेहतर प्रभाव होता। यह सब नाटक जैसा लगा। और केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव का यह टोकना भी काफी हद तक सही था कि अपने भाषण के काफी व्यक्त राहुल ने अध्यक्ष के आसन की तरफ पीठ भी दिखाई। विपक्ष के नेता को इतना तो आना ही चाहिए कि सारा सम्बोधन अध्यक्ष की तरह हो अपने साथियों की तरफ़ अलग से ध्यान देना जरूरी नहीं है। कुछ विषयों पर कम या ज्यादा जोर देने की बात भी की जा सकती है। दो दिन पहले आप नीट की चर्चा के लिए अभिभाषण रुकवाना चाहते थे लेकिन सौ मिनट के भाषण में उसकी चर्चा काफी कम थी।