'प्यास लगे तब कुआँ खोदना' एक पुराना मुहावरा है। ऑक्सीजन के मामले में सरकार यही कर रही है। अब ऑक्सीजन का उत्पादन और आपूर्ति बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। विशेष रेल गाड़ियों और सेना के हवाई जहाज़ों से बड़े शहरों में ऑक्सीजन भेजने का इंतज़ाम किया जा रहा है। ये सब तब हो रहा है, जब न जाने कितने लोग ऑक्सीजन की कमी से मौत का शिकार हो चुके हैं।
ऑक्सीजन की कमी के लिए कौन ज़िम्मेदार?
- विश्लेषण
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- शैलेश
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- 25 Apr, 2021

पूरी दुनिया को पता था कि कोरोना का दूसरा दौर भी आएगा। बल्कि ब्रिटेन और अमेरिका जैसे कुछ देशों में दूसरे दौर की शुरुआत फ़रवरी - मार्च में हो चुकी थी। भारत में भी दूसरा दौर आना ही था। डाक्टर और गणित के आधार पर वैज्ञानिक गणना करने वाले विशेषज्ञ पहले ही भविष्यवाणी कर चुके थे कि दूसरा दौर पहले से ज़्यादा घातक होगा। फिर भी केंद्र और राज्यों की सरकारें सावधान नहीं हुई।
ऑक्सीजन की कमी कितनी ख़तरनाक है, इसका अंदाज़ा उत्तर प्रदेश के कुछ आँकड़ों से लगा सकते हैं। सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक़, लखनऊ में रोज़ 65 मैट्रिक टन ऑक्सीजन की जरुरत है जबकि शुक्रवार को 56 मैट्रिक टन ही उपलब्ध था। यानी 9 मैट्रिक टन की कमी।
एक डाक्टर के मुताबिक़, ज़्यादातर रोगियों की जीवन रक्षा के लिए एक दिन में 25-30 लीटर ऑक्सीजन की जरुरत पड़ती है। अब 9 मीट्रिक टन की कमी होने पर कितने रोगियों की जान जा सकती है इसका अनुमान आप ख़ुद ही लगा सकते हैं।