देश में आजकल मस्जिदों के नीचे मंदिर ढूँढने का अभियान चल रहा है, लेकिन बिहार के बोधगया में मामला उलटा है। वहाँ एक बौद्धमंदिर को हिंदुओं से मुक्त कराने का आंदोलन चल रहा है। दरअसल, मौजूदा क़ानून के तहत महाबोधि मंदिर की प्रबंध समिति में बौद्धों के साथ-साथ हिंदू प्रतिनिधि भी होते हैं। ऑल इंडिया बुद्धिस्ट फ़ोरम के नेतृत्व में चल रहा आंदोलन मंदिर पर पूर्ण बौद्ध नियंत्रण की माँग कर रहा है। यह मामला 2012 में सुप्रीम कोर्ट भी पहुँचा था लेकिन अभी तक मामला विचाराधीन है। आंदोलनकारी सवाल उठा रहे हैं कि अगर अयोध्या के राम मंदिर समेत तमाम हिंदू मंदिरों में ग़ैर हिंदुओं का प्रतिनिधित्व नहीं है तो फिर बौद्धों के इतने महत्वपूर्ण मंदिर में हिंदुओं को जगह क्यों दी जाती है।
महाबोधि मंदिर आंदोलन याद दिला रहा बौद्ध मंदिरों पर कब्जों का इतिहास!
- विश्लेषण
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- 2 Apr, 2025

सवाल उठता है कि अगर 2300 ईसापूर्व सम्राट अशोक के समय भारत बौद्धमय था तो फिर बौद्ध धर्म को मानने वाले गये कहाँ..? वे 84000 बौद्धविहार कहाँ गये जो अशोक ने बनवाये थे? जिस बिहार का नाम बौद्ध विहारों के नाम पर पड़ा, वहाँ के हज़ारों मठ और विहार कहाँ और कैसे ग़ायब हो गये।
यह आंदोलन 12 फ़रवरी से भूख हड़ताल की शक्ल में शुरू हुआ जिस पर 27 फ़रवरी को पुलिस एक्शन हुआ। भूख हड़ताल करने वाले भिक्षुओं को ज़बरदस्ती अस्पताल पहुँचाया गया। बहरहाल, अब वहाँ अनिश्चितकालीन धरना चल रहा है।आंदोलनकारियों की सबसे प्रमुख माँग है कि 1949 का बोधगया मंदिर एक्ट ख़त्म हो। इस एक्ट के तहत मंदिर का प्रबंध हिंदू-बौद्ध समिति करती है। इस समिति में चार हिंदू और चार बौद्ध होते हैं। ज़िलाधिकारी इस समिति का अध्यक्ष होता है। अध्यक्ष बनने के लिए ज़िलाधिकारी का हिंदू होना ज़रूरी था लेकिन 2013 में बिहार सरकार ने इसमें संशोधन कर दिया।