सियासत की रेल कब पटरी बदल ले, कोई नहीं जानता। भारत में दो दिन पहले 'नमो भारत' रेल चली थी और कल ग्वालियर से दिल्ली के बीच 'नमो सिंधिया' रेल चल पड़ी। नमो यानी नरेंद्र मोदी और सिंधियाओं को लेकर पिछले कुछ दिनों से अटकलों का बाजार गर्म था किन्तु शुक्रवार की शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से सिंधिया खानदान का गुणगान किया उसे सुनने के बाद कम से कम भाजपाइयों ने तो मान लिया है कि हिचकोले खा रही 'नमो-सिंधिया' रेल अब पूरी गति से दौड़ने वाली है। नरेंद्र मोदी के बदले रुख की वजह से सिंधिया और सामंतवाद के विरोधियों को निराशा हो सकती है।

दो दिन पहले ग्वालियर के सिंधिया स्कूल के स्थापना समारोह में शामिल हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अचानक सिंधिया की तारीफ़ क्यों करने लगे?
प्रधानमंत्री 21 अक्टूबर को ग्वालियर के सिंधिया स्कूल के स्थापना समारोह के मुख्य अतिथि थे। चुनाव आचार संहिता लगने के बाद उनका ग्वालियर आना एक आश्चर्य का विषय था लेकिन वे न सिर्फ आये बल्कि उन्होंने आदर्श आचार संहिता का पालन करते हुए भी न केवल अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं बल्कि वे सिंधिया परिवार पर भी लट्टू होते दिखाई दिए। उन्होंने सिंधिया परिवार से जो रिश्ता स्वीकार किया वो भी भाजपाइयों की आँखें खोल देने वाला है। उन्होंने कहा कि ग्वालियर से उनका रोटी-बेटी का रिश्ता है। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया गुजरात के दामाद हैं। और उनके ससुर बड़ोदरा के गायकवाड़ों द्वारा स्थापित स्कूल में पढ़े हैं। कल्पना कीजिये कि यदि गायकवाड़ों ने स्कूल न खोला होता तो मोदी जी का क्या होता?