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कौन है मणिपुर का माई-बापः घुसपैठ और सुरक्षा के साथ खिलवाड़ क्यों?

भारत के सुदूर पूर्वोत्तर में स्थित और म्यांमार-बांग्लादेश की सीमाओं से जुड़ा मणिपुर, केवल एक राज्य नहीं है; यह भारत की सुरक्षा, अस्मिता और रणनीतिक धरोहर का प्रतीक है। यह राज्य लंबे समय से अस्थिरता और हिंसा के साए में जी रहा है। हाल के घटनाक्रमों ने इस संवेदनशीलता को और अधिक गहरा दिया है। लेकिन सवाल यह है कि मणिपुर के साथ सुरक्षा के स्तर पर खिलवाड़ कौन कर रहा है? म्यांमार की सीमा से 900 हथियारबंद कूकी उग्रवादियों की घुसपैठ की सनसनीखेज खबर जिसने पहले से ही संघर्षों में उलझे राज्य को हिला दिया था, आखिरकार झूठी निकली। इसने न केवल राज्य की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए, बल्कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की सुरक्षा नीतियों पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाए।

झूठा अलार्म या असली चिंता?

20 सितंबर, 2024 को मणिपुर के सुरक्षा सलाहकार, कुलदीप सिंह ने एक प्रेस कांफ्रेंस में घोषणा की थी कि 900 कूकी उग्रवादियों की म्यांमार से घुसपैठ हो चुकी है। इन उग्रवादियों को जंगल युद्ध, ड्रोन से हमले और बमबारी की ट्रेनिंग दी गई थी, और वे 28 सितंबर को मणिपुर के मैतेई समुदाय पर समन्वित हमले की योजना बना रहे थे। यह खबर सुनते ही मणिपुर में दहशत फैल गई और कई समुदायों में तनाव की स्थिति बन गई। कूकी समुदाय ने इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया और इसे उनके खिलाफ हिंसा भड़काने का बहाना करार दिया।

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यू-टर्न: सबूतों की कमी, सुरक्षा में चूक

चौंकाने वाली बात यह है कि कुछ ही दिनों बाद, 26 सितंबर को वही सुरक्षा सलाहकार, कुलदीप सिंह ने अपनी पिछली बात से पलटते हुए कहा कि 900 कूकी उग्रवादियों की घुसपैठ की सूचना जमीन पर सत्यापित नहीं हो सकी है। उनके अनुसार, "इस इनपुट को कई स्रोतों से सत्यापित करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं मिला।" यह बयान न केवल सुरक्षा सलाहकार की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि इस गंभीर खुफिया सूचना के आधार पर राज्य में उत्पन्न भय को भी बेवजह साबित करता है।इससे पहले, 17 सितंबर को मणिपुर के मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा भी एक पत्र जारी हुआ था, जिसमें डीजीपी और सुरक्षा सलाहकार को 900 उग्रवादियों की घुसपैठ के बारे में चेतावनी दी गई थी। उस पत्र ने सोशल मीडिया पर खूब चर्चा बटोरी, और इसे कई लोगों ने अफवाह करार दिया, लेकिन राज्य सरकार की चुप्पी ने इस रिपोर्ट को और विश्वसनीय बना दिया था।

कौन कर रहा है मणिपुर की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ः यह कौन लोग हैं, जो पहले कहते हैं कि मणिपुर में म्यांमार की सीमा से 900 हथियारबंद कूकी उग्रवादी घुस आये हैं, उनके पास कौन कौन से हथियार हैं और वे कितनी टुकड़ियों में बंटे हैं, और किस तारीख को हमला करने वाले हैं। और फिर कहते हैं कि ये सारी सूचनाएं जमीन पर गलत साबित हुईं। कमाल है! य़े सूचना किसी वाट्सएप्प यूनिवर्सिटी की सूचना तो थी नहीं। बाकायदा इस सूचना की पुष्टि मणिपुर में राज्य के सुरक्षा सलाहकार के तौर पर तैनात वरिष्ठतम अधिकारी की है। क्या देश की सुरक्षा के साथ यह मजाक राज्य की पहले से ही नाकारा साबित हो चुकी मुख्यमंत्री एन बीरेन्द्र सिंह की सरकार की भयंकर छीछालेदर के साथ-साथ केन्द्र की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार पर गंभीर सवाल खड़े नहीं करता?

समूचे राज्य के साथ देश भर के लोगों में सनसनी मचा देने वाली ऐसी गंभीर लापरवाही क्या सुरक्षा सलाहकार महोदय की काबिलियत, समझ और क्षमता की कलई नहीं खोल देती? जब राज्य के जनजातीय समुदाय के लोग आंदोलित हो उठें, दबाव के बावजूद स्थानीय मीडिया राज्य में इंटेलिजेंस एजेंसियों और उनके आकाओं के इंटेलिजेंस को कठघड़े में खड़ा कर दें, तो आप आकर कहते हैं, कि मेरी सूचना कन्फर्म नहीं हुई?

यह घटना एक बार फिर मणिपुर के गंभीर हालात को बयां करती है। यह घटना राज्य में तैनात सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों खासकर उनके आला अफसरों की काबिलियत पर गंभीर सवाल खड़े करती है।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर 900 हथियारबंद कूकी उग्रवादी म्यांमार से सीमा पार कर मणिपुर में घुसे, तो सीमा पर तैनात असम राइफल्स क्या कर रही थी? जब दैनिक संगाई एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में इस मुद्दे पर तीखे सवाल उठाए कि: "जब 900 उग्रवादी सीमा पार कर भारत में प्रवेश कर सकते हैं, तो सीमा की सुरक्षा का क्या मतलब रह जाता है?"
और यह भी सवाल उठा कि सीमा की निगरानी करने वाली असम राइफल्स के रहते ये उग्रवादी बिना किसी मदद के कैसे सीमा पार कर पाए, क्या यह सुरक्षा एजेंसियों की गंभीर चूक नहीं है? इसके अलावा, यह सवाल भी उठने लगा कि अचानक कूकी बहुल इलाकों में सीमा पर फेंसिंग का काम क्यों रोक दिया गया?, तो उसके बाद ये खंडन आ गया, कि न कोई घुसा था, न घुसा है, न घुस रहा है।

केंद्र सरकार की चुप्पी: क्या कोई राजनीतिक खेल चल रहा है? केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर की हिंसा के पीछे सीमा पार से हो रही घुसपैठ को मुख्य कारण बताया था। लेकिन इसके कुछ ही दिनों बाद, 900 उग्रवादियों की घुसपैठ की रिपोर्ट आई, जो अब झूठी साबित हो रही है। इसके बावजूद, केंद्र सरकार की तरफ से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है। क्या एजेंसियां उन्हें बरगला रही हैं या राज्य सरकार? संगाई एक्सप्रेस ने अपने हालिया संपादकीय में गंभीर संकेत किये हैं, "इस पूरे घटनाक्रम से लगता है कि दिल्ली कोई खेल खेल रही है, और इससे मणिपुर के लोगों में और भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है।"

असम राइफल्स की भूमिका: क्या वास्तव में सीमा सुरक्षित है?

असम राइफल्स एक बहुत पुराना और प्रतिष्ठित सुरक्षा बल है। इसकी अपनी साख है। पर जब फेक-न्यूज और मिसइन्फॉर्मेशन-डिसइन्फ़ॉर्मेशन का दौर चल रहा हो, राजनीतिक चालें चली जा रही हों, तो उसमें उसका पिसना भी स्वाभाविक है। लोग पूछ रहे हैं कि 900 उग्रवादियों का मणिपुर में प्रवेश करना अगर सच था, तो यह भारत की सुरक्षा में गंभीर चूक होती। लेकिन अगर यह गलत था, तो इससे साफ है कि खुफिया एजेंसियां या तो नाकाम रहीं, या फिर जानबूझकर अफवाह फैलाई गई। इससे एक सवाल और उठता है कि क्या असम राइफल्स ने अपनी जिम्मेदारी निभाई? या उसकी सुनी नहीं गयी?

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निष्कर्ष: मणिपुर में सुरक्षा संकट या राजनीतिक चाल?

इस पूरे प्रकरण से मणिपुर की सुरक्षा स्थिति पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। 900 उग्रवादियों की घुसपैठ की झूठी रिपोर्ट ने राज्य में डर और भ्रम की स्थिति पैदा कर दी, और सुरक्षा एजेंसियों की विश्वसनीयता को भी धक्का पहुंचाया। केंद्र सरकार को इस मामले की गंभीरता से जांच करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मणिपुर जैसे संवेदनशील राज्य की सुरक्षा के साथ किसी भी तरह का खिलवाड़ न हो। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह की नाकामियों के कारण मणिपुर पहले से नेतृत्वविहीन महसूस कर रहा है। केन्द्र सरकार भी इस तरफ गंभीरता से ध्यान देती नहीं दिखती। तो सवाल ये है कि मणिपुर का माई बाप कौन है?
(वरिष्ठ पत्रकार ओंकारेश्वर पांडेय  भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों और विदेश मामलों पर तीखी नजर रखते हैं और सत्य हिन्दी के लिए लिखते हैं)
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क़मर वहीद नक़वी
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