जम्मू और कश्मीर में चुनाव की घोषणा के बाद की स्तरों वाली चुनौतियां बढ़ जरूर गई हैं लेकिन ये कभी समाप्त हो गई थीं, यह नहीं कहा जा सकता। पर इसके साथ ही यह कहना भी जरूरी है कि इन चुनौतियों के डर के बीच भी राज्य में चुनाव कराने के जो लाभ हैं वे सबसे ऊपर हैं और किसी भी खतरे या चुनौती के नाम पर उसको अनिश्चित काल के लिए रोका नहीं जाना चाहिए था। बल्कि चुनाव और पहले हो गए होते और निष्पक्ष ढंग से होते (या अभी भी होंगे) तो लाभ और ज्यादा होता।
जम्मू-कश्मीर चुनाव किन-किन के लिए बड़ी परीक्षा?
- विश्लेषण
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- 20 Aug, 2024

असली परीक्षा भाजपा की है जिसके लिए सहयोगी ढूँढना भी आसान नहीं है। लोक सभा चुनाव में उसके नाम के सहारे उतरे सभी लोग घाटी में पिट गए थे जबकि खुद उसने घाटी की सीटों पर उम्मीदवार ही नहीं दिए।
आजादी के बाद से कश्मीर को लेकर जितने प्रयोग हुए हैं उनमें निष्पक्ष चुनाव का लाभ ही सर्वाधिक रहा है। और बाकी चीजों को छोड़िए, अनुच्छेद 370 की मौजूदगी के लाभ या घाटे को लेकर भी काफी कुछ कहा गया है। इस बार उस सवाल पर लोगों की राय भी सामने आ जाएगी और इस लेखक जैसे काफी सारे लोग हैं जिनको लगता है कि जनमत के पक्ष विपक्ष होंगे लेकिन चुनाव से कश्मीर को लाभ होगा। 370 की समाप्ति पर कश्मीरियों की न तो राय ली गई थी न उनकी आवाज को खास महत्व मिला। इस अनुच्छेद के पक्षधर विरोध करते रहे लेकिन उनके विरोध का भी न्यस्त स्वार्थ सबको दिखाई देता है।