बजट से जुड़ा हलवा बाँटने वाले और हलवा खाने के रुपक के सहारे बात को जातिगत जनगणना तक ले जाने वाले राहुल गांधी ने अपनी राजनीति चल दी। अब इसका कितने लोगों पर कैसा असर हो रहा है इसका हिसाब अलग-अलग हो सकता है, लेकिन भाजपा पर इसका प्रभाव काफी पड़ा है। उसकी तरफ़ से राजनीति को हिन्दू-मुसलमान लाइन पर ले जाने का प्रयास बंद नहीं हुआ है लेकिन अब वह हर बात में जाति के सवाल को महत्व देने लगी है और राहुल गांधी तथा कांग्रेस को ही नहीं समाजवादी पार्टी और राजद को ही पिछड़ा और दलित विरोधी बताने का प्रयास भी कर रही है। लेकिन निश्चित रूप से वह जातिगत जनगणना के खिलाफ है और इसकी कोई उपयोगिता नहीं मानती-भले उसने बिहार में हुई जातिगत जनगणना का समर्थन किया था। लेकिन राहुल गांधी को अपनी इस राजनैतिक रणनीति या भाजपा की घेराबंदी में एक बार भी याद नहीं आया कि देश में वह सामान्य जनगणना भी नहीं हुई है जो विश्वयुद्ध के दौरान भी नहीं रुकी थी। और सरकार ने जिस करोना के नाम पर जनगणना रोकी थी (हालांकि दुनिया में ऐसा सिर्फ दो अन्य देशों में ही हुआ था) उसे गए जमाना हो गया है और अब आम चुनाव समेत सब काम रूटीन पर लौट आया है।