मेडिकल प्रवेश परीक्षा का मामला इस बार जहां पहुंचा है उसमें साफ़ लगता है कि देश भर के बच्चे और अभिभावक तथा सुप्रीम कोर्ट इसे किसी साफ़ नतीजे तक पहुँचाए बगैर नहीं रहेगा। अदालत अब राज्यों में दर्ज मामलों को भी अपने पास लेकर एक साथ सुनवाई और फ़ैसला करना चाहती है। इस मामले ने निश्चित रूप से राजनैतिक रंग भी लिया है और यह कहने में भी हर्ज नहीं है कि कोई साफ़ और सर्वमान्य फ़ैसला होने में देरी के साथ ही मामले के राजनीतिकरण की गुंजाइश बढ़ती जाएगी। यह बात अदालत भी जानती होगी, लेकिन वह एक बार में अपनी शक्ति का उपयोग करके अफरा-तफरी मचाना नहीं चाहती होगी। सो उसने इस तरह के सवाल इस परीक्षा का संचालन करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) और सरकार के सामने रखे और यह प्रयास भी किया कि सारे बच्चों को दोबारा परीक्षा में बैठाने या व्यवस्था को ज्यादा परेशान किए बिना कुछ ‘लोकल ऑपरेशन’ से बीमारी ठीक हो जाए तो वह भी किया जाए। पहले उसने काउंसलिंग रोकने पर बंदिश नहीं लगाने का फैसला दिया था। पर इन सारी कोशिशों में चालीस दिन से ज्यादा का कीमती समय निकल चुका है। क़ीमती इसलिए कि अब तक बच्चों की काउंसलिंग और नामांकन का काम पूरा हो चुका होता और कई जगह पढ़ाई भी शुरू हो जाती।
नीट पेपर लीक केस: यह मंत्रीजी और सरकार के लिए परीक्षा!
- विचार
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- 17 Jul, 2024

नीट पेपर लीक मामले में भले ही सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला जो कुछ भी आए, लेकिन एक तो तय है कि धर्मेन्द्र प्रधान और नरेंद्र मोदी सरकार की परीक्षा अभी से शुरू हो गई है?
देरी की शुद्ध वजह केंद्र सरकार और उसकी इस एजेंसी एनटीए द्वारा की जा रही शरारतें हैं। शरारत ही कहना ज्यादा उचित है क्योंकि इन दोनों का व्यवहार ऐसा है जैसे इनको पता ही नहीं है कि पेपर लीक हुआ और परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। पेपर लीक की कथा तो परीक्षा की तारीख से पहले ही शुरू हुई और दिन ब दिन नए साक्ष्य और अपराधी सामने आते जाने से इसकी व्यापकता, भयावहता और इसमें शामिल लोगों की ताकत का रहस्य खुलता जा रहा है।