मेडिकल प्रवेश परीक्षा का मामला इस बार जहां पहुंचा है उसमें साफ़ लगता है कि देश भर के बच्चे और अभिभावक तथा सुप्रीम कोर्ट इसे किसी साफ़ नतीजे तक पहुँचाए बगैर नहीं रहेगा। अदालत अब राज्यों में दर्ज मामलों को भी अपने पास लेकर एक साथ सुनवाई और फ़ैसला करना चाहती है। इस मामले ने निश्चित रूप से राजनैतिक रंग भी लिया है और यह कहने में भी हर्ज नहीं है कि कोई साफ़ और सर्वमान्य फ़ैसला होने में देरी के साथ ही मामले के राजनीतिकरण की गुंजाइश बढ़ती जाएगी। यह बात अदालत भी जानती होगी, लेकिन वह एक बार में अपनी शक्ति का उपयोग करके अफरा-तफरी मचाना नहीं चाहती होगी। सो उसने इस तरह के सवाल इस परीक्षा का संचालन करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) और सरकार के सामने रखे और यह प्रयास भी किया कि सारे बच्चों को दोबारा परीक्षा में बैठाने या व्यवस्था को ज्यादा परेशान किए बिना कुछ ‘लोकल ऑपरेशन’ से बीमारी ठीक हो जाए तो वह भी किया जाए। पहले उसने काउंसलिंग रोकने पर बंदिश नहीं लगाने का फैसला दिया था। पर इन सारी कोशिशों में चालीस दिन से ज्यादा का कीमती समय निकल चुका है। क़ीमती इसलिए कि अब तक बच्चों की काउंसलिंग और नामांकन का काम पूरा हो चुका होता और कई जगह पढ़ाई भी शुरू हो जाती।
देरी की शुद्ध वजह केंद्र सरकार और उसकी इस एजेंसी एनटीए द्वारा की जा रही शरारतें हैं। शरारत ही कहना ज्यादा उचित है क्योंकि इन दोनों का व्यवहार ऐसा है जैसे इनको पता ही नहीं है कि पेपर लीक हुआ और परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है। पेपर लीक की कथा तो परीक्षा की तारीख से पहले ही शुरू हुई और दिन ब दिन नए साक्ष्य और अपराधी सामने आते जाने से इसकी व्यापकता, भयावहता और इसमें शामिल लोगों की ताकत का रहस्य खुलता जा रहा है।
जब लीक कराने के खेल के छुटभैये पोस्ट डेटेड चेक से भुगतान लेने जैसे व्यवहार चला रहे थे तब उनकी पहुँच, दुस्साहस और ऊपर से कनेक्शन के बारे में सहज ही सोचा जा सकता है। यह तो भला हो बिहार पुलिस के एक जुनूनी अधिकारी का जिसने जान जोखिम में डालकर इस पूरे षडयंत्रकारी नेटवर्क को नंगा दिखाने की शुरुआत की। और हम देख रहे हैं कि रोज नई गिरफ्तारियां हो रही हैं और रोज नए साक्ष्य मिल रहे हैं। अभी ही जो तस्वीर उभर रही है वह कई-कई राज्यों में पचास से सौ करोड़ रुपए तक की लेन-देन की ओर इशारा करते हैं। और यह संबंधों या विचारधारा के आधार पर कुछ बच्चे-बच्चियों को ‘फ़ेवर’ करने की जगह एक धंधे के रूप में, वार्षिक कमाई के अवसर के रूप में सामने आ चुका है।
और जिस तरह से सरकार, मानव संसाधन मंत्री और एनटीए ने पहले दिन से इस मामले में आचरण किया है वह बताता है कि वे न तो इस मामले में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई चाहते हैं, न अपना दोष या चूक मानने को तैयार हैं और ना ही आगे से ऐसी गलती न हो इसका इंतजाम करना चाहते हैं। मंत्री महोदय तो पहले दिन से पेपर लीक न होने का तमगा बांटने में लग गए थे। जो एकमात्र कार्रवाई हुई है वह एनटीए के प्रमुख का तबादला है-उनको भी किसी तरह की सजा नहीं मिली है। ये वही सज्जन हैं जिन्हें मध्य प्रदेश में व्यापमं करवाने का अनुभव है और आज भी उस मामले में कुछ नहीं हुआ है जबकि उसे सामने लाने वाले कितने ही लोग मारे जा चुके हैं। जब मंत्री जी पेपर लीक मानने लगे तो उनका मंत्रालय और एनटीए इसे सीमित लीक बताने में लगा है। और जगह तो नहीं लेकिन अदालत में सरकार और एनटीए की तरफ से दी जाने वाली दलीलें उनकी मंशा का सबसे अच्छा प्रमाण हैं। लगता ही नहीं कि इतना बड़ा अपराध हुआ है। सारी कोशिश मामले को ढकने और रफा दफा करने की लगती है।
अभी अदालत तो सुनवाई करके जल्दी फैसला देगी, क्योंकि उसे बच्चों के एकेडमिक साल की चिंता है और अगर दोबारा परीक्षा कराने का आदेश हुआ तो यह लगभग एक सेमेस्टर का वक्त बर्बाद करेगा। दूसरा उपाय अब दिखता भी नहीं।
एक चिंता तो अभी की गलती मानना, उसका निदान करना और दोषियों को सजा देना है। मामला जहां तक पहुंचा है उसमें उसे नतीजे तक जाने से रोकना किसी के वश में नहीं है। अगर मंत्री जी की नाक के नीचे यह सब चलता रहा (क्योंकि पिछली दफे भी वही मंत्री थे) और उनको पता नहीं था या उनकी भागीदारी थी तो क्या सजा होनी चाहिए यह वही तय करें। लेकिन ज्यादा बड़ी चिंता आगे से फुलप्रूफ़ परीक्षा व्यवस्था बनाने की है। उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों ने पेपर लीक पर सख्त सजा के प्रावधान के कानून बनाए हैं। पर लीक रोकना पहली ज़रूरत है। और उसके लिए चीन जैसे देशों की परीक्षा व्यवस्था से सीखना हो तो वह भी किया जा सकता है। उससे ज्यादा अच्छी चीज परीक्षा को विकेंद्रित करना होगा। हर राज्य एक तारीख और एक पाठ्यक्रम के आधार पर प्रवेश परीक्षा कराए। एक हद तक पाठ्यक्रम में भी विविधता मानी जा सकती है। या फिर सात चरण के चुनाव की तरह परीक्षा को भी फेज के हिसाब से किया जाए। तकनीक और कंप्यूटर के बेहतर इस्तेमाल की भी सोची जा सकती है। दुखद यह है कि धड़ाधड़ पेपर लीक और परीक्षा कैंसिल होने के बीच भी इस पक्ष की चर्चा लगभग गायब है। और नीट-24 में अगर सरकार और मंत्री जी की परीक्षा हो रही है तो इस प्रसंग में तो पूरा पढ़ने-लिखने वाला समाज ही परीक्षा दे रहा है और उसकी तरफ़ से कोई जबाब नहीं आ रहा है।
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