मेडिकल प्रवेश परीक्षा का मामला इस बार जहां पहुंचा है उसमें साफ़ लगता है कि देश भर के बच्चे और अभिभावक तथा सुप्रीम कोर्ट इसे किसी साफ़ नतीजे तक पहुँचाए बगैर नहीं रहेगा। अदालत अब राज्यों में दर्ज मामलों को भी अपने पास लेकर एक साथ सुनवाई और फ़ैसला करना चाहती है। इस मामले ने निश्चित रूप से राजनैतिक रंग भी लिया है और यह कहने में भी हर्ज नहीं है कि कोई साफ़ और सर्वमान्य फ़ैसला होने में देरी के साथ ही मामले के राजनीतिकरण की गुंजाइश बढ़ती जाएगी। यह बात अदालत भी जानती होगी, लेकिन वह एक बार में अपनी शक्ति का उपयोग करके अफरा-तफरी मचाना नहीं चाहती होगी। सो उसने इस तरह के सवाल इस परीक्षा का संचालन करने वाली नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) और सरकार के सामने रखे और यह प्रयास भी किया कि सारे बच्चों को दोबारा परीक्षा में बैठाने या व्यवस्था को ज्यादा परेशान किए बिना कुछ ‘लोकल ऑपरेशन’ से बीमारी ठीक हो जाए तो वह भी किया जाए। पहले उसने काउंसलिंग रोकने पर बंदिश नहीं लगाने का फैसला दिया था। पर इन सारी कोशिशों में चालीस दिन से ज्यादा का कीमती समय निकल चुका है। क़ीमती इसलिए कि अब तक बच्चों की काउंसलिंग और नामांकन का काम पूरा हो चुका होता और कई जगह पढ़ाई भी शुरू हो जाती।