महत्वपूर्ण विधान सभाओं की कौन कहे, हैदराबाद समेत कई नगर निगमों का चुनाव, त्रिपुरा जैसे छोटे राज्य का चुनाव और एक एक उपचुनाव को महाभारत बनाकर लड़ने वाली नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी बहुप्रतीक्षित जम्मू और कश्मीर विधानसभा चुनाव और दिल्ली से लगे हरियाणा विधानसभा का चुनाव क्यों इस तरह ‘बेमन’ से लड़ रही है, यह गंभीर राजनैतिक चर्चा का विषय होना चाहिए। ऐसा सिर्फ़ दो राज्यों के चलते या एक जगह भाजपा को अपनी सरकार के लिए जनादेश लेने का प्रयास करने भर के लिए ही नहीं है।
विधानसभा चुनावों को लेकर बीजेपी में इतना सन्नाटा क्यों है?
- विश्लेषण
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- 3 Sep, 2024

नगर निगम तक के चुनाव भी जी-जान से लड़ने वाली बीजेपी आख़िर हरियाणा और जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनाव लड़ने में उदासीन क्यों दिख रही है? घाटी में उसने उम्मीदवार तक क्यों नहीं उतारे हैं?
जम्मू-कश्मीर का चुनाव देश, दुनिया, हमारी दीर्घकालिक राजनीति और संघ-भाजपा के अब तक चली कश्मीर नीति की परीक्षा के हिसाब से काफी महत्व का है। इस पर दुनिया की नज़र टिकी हुई है क्योंकि धारा 370 की समाप्ति के बाद यह पहला चुनाव है। लोकसभा चुनाव ने भी लोगों का मन बताने का काम किया लेकिन उसमें हुए उत्साहजनक मतदान ने कई चीजों को छुपा लिया। अच्छा मतदान निश्चित रूप से जम्मू-कश्मीर की ही नहीं, किसी भी इलाक़े की राजनैतिक समस्याओं को निपटाने का सबसे मज़बूत आधार देता है, लेकिन दस साल बाद हो रहे विधानसभा चुनाव स्वशासन के बारे में लोगों की राय लेकर आएंगे। और इतना बड़ा कदम उठाने वाली मोदी सरकार लोगों की नज़र में पास हुई या फेल, यह संदेश भी आएगा।