18 जुलाई को ही बेंगलुरु में 26 विपक्षी दलों ने ‘इंडिया’ नाम के गठबंधन के तहत लोकसभा का चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। गठबंधन में शामिल दलों के बीच सीटों के बँटवारे का काम आसान नहीं माना जा रहा। विशेष रूप से उन राज्यों में सीटों के बंटवारे में कई तरह की अड़चनें आएंगी जहां कांग्रेस और उसके सहयोगी या संभावित सहयोगियों के बीच हितों का सीधा टकराव है। आम आदमी पार्टी ने दो राज्यों- दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस को हराकर सत्ता हासिल की है। तीसरे राज्य गुजरात में वो मजबूत राजनीतिक ताक़त बनकर उभरी है। लिहाजा अगले लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में इन दोनों के बीच ही बड़ा पेंच फंसने वाला है।
प्रदेश इकाइयों का विरोध
दिल्ली, पंजाब और गुजरात में कांग्रेस की स्थानीय इकाइयाँ आम आदमी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन करने के हक में नहीं हैं। तीनों ही राज्यों में प्रदेश कमेटियों ने पार्टी आलाकमान को जमीनी हालात से अवगत करा दिया है। लेकिन अंतिम फ़ैसला आलाकमान पर छोड़ दिया है। कांग्रेस आलाकमान जल्द ही तीनों राज्यों की ईकाइयों के साथ विचार विमर्श के लिए बैठक करेगा। अगले महीने महाराष्ट्र में होने वाली विपक्षी दलों के नए गठबंधन ‘इंडिया’ बैठक से पहले ये बैठकें होने के आसार हैं। दरअसल ‘इंडिया’ की अगली बैठक में गठबंधन के सहयोगी दलों के बीच सीटों के बंटवारे के फॉर्मूले पर चर्चा हो सकती है। लिहाजा कांग्रेस के लिए होमवर्क करना ज़रूरी हो जाता है।
राहुल ने विरोध को नकारा
दिल्ली में अजय माकन और संदीप दीक्षित के विरोध के बावजूद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल को समर्थन का भरोसा देकर साफ़ कर दिया है कि वो अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए राज्यों में छोटे हितों का त्याग करने को तैयार हैं। लेकिन सवाल ये पैदा होता है कि त्याग करने को वो कितना आगे तक जाएंगे? दिल्ली, पंजाब और गुजरात में आम आदमी पार्टी ने अपनी जो धाक जमायी है उसे दखते हुए इन तीनों राज्यों की 46 लोकसभा सीटों पर आपस में बंटवारा कोई आसान काम नहीं लगता। पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनावों के नतीजों के आंकड़ों को देखते हुए तीनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी का दावा काफी मजबूत नज़र आता है। सीटों के बँटवारे के दौरान एक-एक सीट पर खींचतान होगी।
दिल्ली विरोध का सबसे बड़ा केंद्र
2009 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी 7 सीटें कांग्रेस ने बड़े अंतर से जीती थीं। तब कांग्रेस को 57.11% और बीजेपी को 35.23% वोट मिले थे। तब 'आप' का वजूद नहीं था। 2014 में सभी सातों सीटें बीजेपी ने जीतीं। आम आदमी पार्टी सभी सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई थी। तब बीजेपी को 46.40%, आप को 32.90% और कांग्रेस को सिर्फ 15.10% वोट ही मिले थे। इस चुनाव में 2009 के मुकाबले बीजेपी को 11.17% वोटों का फायदा हुआ था और कांग्रेस को 42.01% वोटों का नुक़सान हुआ था। आप एक ही झटके में 32.90% वोट हासिल करके दिल्ली में बड़ी राजनीतिक ताक़त बनकर उभरी थी। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप ने मोदी-शाह की अजेय समझे जाने वाली जोड़ी को बुरी तरह हराया था। तब आप ने 67 सीटें जीतीं और बीजेपी महज़ तीन सीटों पर सिमट गई थी।
2014 से अलग रहा 2019 का लोकसभा चुनाव
मोदी की दूसरी लहर में बीजेपी को 56.40% वोट मिले। यानी उसे 10.46% वोटो का फायदा हुआ। कांग्रेस को 7.42% वोटों का फायदा हुआ और उसे 22.51% वोट मिले। जबकि 2014 में 32.90% वोट हासिल करने वाली ‘आप’ 18.11% वोटों पर सिमट गई। उसे 14.79% वोटों का नुकसान हुआ।
इस चुनावी नतीजों के आँकड़ों से ये बात साफ़ जाहिर होती है कि दिल्ली जनता की विधानसभा चुनाव में पहली पसंद अरविंद केजरीवाल और ‘आप’ ही हैं। लोकसभा चुनाव में फिलहाल उसकी पहली पसंद प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी बीजेपी है। दूसरी पसंद कांग्रेस है। सीटों के बँटवारे के दौरान ये तथ्य कांग्रेस के पक्ष में जा सकता है।
पंजाब में मुश्किल
सीटों के बँटवारे को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच पंजाब में भी पेंच फँसेगा। पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में ‘आप’ ने पंजाब में कांग्रेस को बुरी तरह हराकर खुद को सबसे बड़ी राजनीतिक ताक़त के रूप में स्थापित किया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी ‘आप’ कांग्रेस से बड़ी पार्टी थी। तब पंजाब की 13 लोकसभा सीटों में से ‘आप’ ने चार और कांग्रेस ने 3 सीटें जीती थीं। हालाँकि कांग्रेस को तब 33.10% वोट मिले थे और उसे 12.13% वोटों का नुक़सान हुआ था। आम आदमी पार्टी पहले ही चुनाव में 24.4% वोट हासिल करके बड़ी राजनीतिक ताक़त बनकर उभरी थी। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने दिल्ली की तरह पंजाब में भी जबरदस्त वापसी की थी। तब कांग्रेस को 40.12% वोटों के साथ 4 सीटें मिली थीं जबकि ‘आप’ 7.3% वोटों के साथ एक सीट पर ही सिमट कर रह गई थी।
विधानसभा चुनाव के बाद बदले हालात
पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 92 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया। लोकसभा की ज्यादातर सीटों में उसके वोट कांग्रेस के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं। बंटवारे के दौरान 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े और 2022 के आंकड़ों के आधार पर दोनों ही पार्टियों के बीच एक-एक सीट को लेकर जमकर खींचतान होनी तय है। विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री भगवंत मान के इस्तीफे से खाली हुई संगरूर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में अकाली दल (मान) की जीत के बाद लगा था कि पंजाब में ‘आप’ का जादू फीका पड़ रहा है। लेकिन कांग्रेस सांसद संतोख सिंह के निधन के बाद जालंधर लोकसभा सीट पर उपचुनाव जीत कर आम आदमी पार्टी ने अपना वर्चस्व एक बार फिर साबित कर दिया। इससे कांग्रेस के सामने ‘आप’ की सौदेबाजी की ताकत बढ़ गई है। केजरीवाल किसी सूरत में आधी से कम सीटों पर मानने वाले नहीं दिखते।
गुजरात में ‘आप’ की गुगली
दिल्ली, पंजाब और गुजरात के चुनावी नतीजों के आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच इन राज्यों में सीटों का बंटवारा कोई हंसी का खेल नहीं है। तीनों ही राज्यों की प्रदेश इकाइयों को गठबंधन के लिए राजी करना कांग्रेस आलाकमान के लिए एक बड़ी चुनौती है। इन राज्यों में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने को लेकर तीखा विरोध है। विरोध यहां तक है कि अगर राहुल गांधी अपनी जिद पर अड़े रहे तो तीनों ही राज्यों में कांग्रेस में बगावत भी हो सकती है। कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन भी थाम सकते हैं। लिहाज़ा लोकसभा चुनाव जीतने के लिए आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करना कांग्रेस के लिए तलवार की धार पर चलने जैसा है।
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