2024 के लिए चुनावी जंग का मैदान सज चुका है। एक तरफ़ 26 विपक्षी दलों ने मिलकर 'इंडिया' नाम से नया गठबंधन तैयार कर लिया है। वहीं अपनी सत्ता बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 25 साल पुराने एनडीए को विस्तार देते हुए 38 दलों को इसमें शामिल कर लिया है। दोनों गठबंधनों के बीच लोकसभा की 400 सीटों पर सीधे मुकाबले के आसार बन रहे हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि सत्ता की चाबी के लिए असली जंग 9 राज्यों की 145 लोकसभा सीटों पर होगी। इनपर कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला होना है।
बीजेपी से सीधे मुकाबले में कांग्रेस कहां?
अगला लोकसभा चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस ने भले ही 26 दलों को अपने झंडे तले इकट्ठा कर लिया हो लेकिन उसकी जीत का सारा दारोमदार इस बात पर होगा कि बीजेपी को सीधे मुकाबले में वो कितनी सीटों पर हरा पाती है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस सीधे मुकाबले में बीजेपी से टक्कर लेनें में पूरी तरह नाकाम रही। देशभर की 186 लोकसभा सीटों पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबला है। 2019 में इनमें से बीजेपी ने 170 सीटें जीती थीं। कांग्रेस महज 16 सीटों पर सिमट गई थी। जबकि 2014 में कांग्रेस ने इनमें से 24 सीटें जीती थीं और बीजेपी ने 162 सीटें। साल 2009 में कांग्रेस ने बीजेपी से सीधे मुकाबले में 100 से ज्यादा सीटें जीती थीं। तब उसने 206 सीटें जीत कर 2004 में बनी यूपीए सरकार को कायम रखा था।
नौ राज्यों में पस्त कांग्रेस
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधे मुकाबले वाले 9 राज्यों की 145 सीटों में से बीजेपी 140 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को 4 और जेडीएस को एक सीट मिली थी। बाद में हिमाचल प्रदेश में हुए उपचुनाव में कांग्रेस एक लोकसभा सीट जीत गई थी। इस लिहाज से मौजूदा लोकसभा में इनमें से 139 बीजेपी के पास हैं। कांग्रेस के पास सिर्फ 5 सीटें हैं। कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधे मुकाबले वाले राज्यों में सबसे बड़ा मध्यप्रदेश है। राज्य की 29 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 28 सीटें जीती थीं जबकि कांग्रेस को सिर्फ एक ही सीट पर संतोष करना पड़ा था। उसके बाद कर्नाटक की 28 सीटों में से बीजेपी सहयोगी के साथ 26 सीटें जीती थीं। एक कांग्रेस को मिली थी और एक जेडीएस को। गुजरात की सभी 26, राजस्थान की सभी 25, हरियाणा की सभी 10, दिल्ली की सभी 7, उत्तराखंड की सभी 5 और हिमाचल की सभी 4 सीटें बीजेपी जीत गई थी। कांग्रेस छत्तीसगढ़ की 11 सीटों में से सिर्फ 2 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में जीत के बावजूद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इन राज्यों में कोई करिश्मा नहीं दिखा सकी थी।
2009 में थी बराबर की टक्कर
जबकि 2009 में इन नौ राज्यों में कांग्रेस को 73 सीटें मिली थीं। बीजेपी को सिर्फ 67 सीटें ही मिली थीं। बाकी पांच सीटें अन्य दलों के खाते में चली गई थीं। कह सकते हैं कि 2009 में इन राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी की बीच बराबर की टक्कर थी।
विधानसभा चुनाव होंगे महत्वपूर्ण
बीजेपी और कांग्रेस के सीधे मुक़ाबले वाले इन 9 राज्यों में से तीन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ तेलंगाना में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। इन्हें सत्ता का सेमी फाइनल माना जा रहा है। ये लोकसभा चुनाव से करीब 6 महीना पहले हो रहे हैं। कर्नाटक में विधानसभा चुनाव बड़े बहुमत से जीतने के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं। वो चारों राज्य जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। अगर कांग्रेस चार में से तीन राज्यों में भी जीत जाती है तो अगले लोकसभा चुनाव के लिए उसके पक्ष में माहौल बन जाएगा। बीजेपी इसी से डरी हुई है। पिछले साल हिमाचल प्रदेश के बाद इस साल कर्नाटक में कांग्रेस के हाथों बुरी तरह हारने के बाद बीजेपी को अब इन राज्यों के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में भी हार का डर सताने लगा है।
कर्नाटक की जीत से मिली नई ऊर्जा
दरअसल, कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस को एक नई ऊर्जा मिली है। मध्य प्रदेश के राजनीतिक हालात कर्नाटक की तरह ही हैं। दोनों ही राज्यों में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की सरकार बनी थी लेकिन बाद में बीजेपी ने 'ऑपरेशन लोटस' के तहत दोनों ही सरकारों को गिरा कर अपनी सरकार बना ली थी। ऐसे में माना जा रहा है कि मध्यप्रदेश में भी बीजेपी का वही हाल होगा जो कर्नाटक में हुआ है। यानी कर्नाटक की तरह मध्य प्रदेश में भी बीजेपी बुरी तरह हारेगी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस मज़बूत दिख रही है। वहाँ सत्ता में उसकी वापसी के आसार दिख रहे हैं। राजस्थान में कांग्रेस में जितनी आपसी खींचतान है उतनी ही बीजेपी में भी है। हालाँकि राजस्थान में पिछले कई दशकों से एक बार कांग्रेस और एक बार बीजेपी की सरकार बनने का रिवाज है। बीजेपी रिवाज कायम रखना चाहती है जबकि कांग्रेस रिवाज को बदलना चाहती है। रिवाज बना रहा तो लोकसभा चुनाव पर शायद ही इसका कोई फर्क पड़े। अगर रिवाज बदल गया तो बीजेपी की राह में बड़ी मुश्किलें पैदा हो जाएंगी।
वाजपेयी खा गए थे गच्चा
इसलिए राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों के नतीजों को लोकसभा चुनाव के लिए लिटमस टेस्ट भी माना जाता है। इन राज्यों में विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी का प्रदर्शन अच्छा होता है माना जाता है कि लोकसभा में भी वह अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। हालांकि पिछले रिकॉर्ड इसकी गवाही नहीं देते। साल 2003 में दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। इनमें से दिल्ली को छोड़कर बाकी तीनों बीजेपी ने जीत लिए थे। तब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार थी। लोकसभा चुनाव अक्टूबर 2004 में होने थे। एनडीए के रणनीतिकारों को लगा कि कांग्रेस 3 राज्यों में विधानसभा चुनाव में पस्त हो गई है। अगर लोकसभा चुनाव समय से 6 महीने पहले करा लिया जाए तो चुनाव जीता जा सकता है। इसी रणनीति के तहत अप्रैल-मई में चुनाव कराए गए थे। तब सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों के गठबंधन ने अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कद्दावर नेता को धूल चटा दी थी। एनडीए का ‘शाइनिंग इंडिया’ का नारा हवा हवाई साबित हुआ था।
समयपूर्व लोकसभा चुनाव की अटकलें
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद सरकारी खेमों से इस बात के संकेत मिले थे कि मोदी सरकार अगला लोकसभा चुनाव चार राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ करा सकती है। अभी भी ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं। दरअसल, कर्नाटक के विधानसभा चुनाव का बड़ा राजनीतिक संदेश है। चुनाव में हार जीत तो होती रहती है लेकिन कर्नाटक में जिस तरह कांग्रेस ने स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर डटी रहकर बीजेपी के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा सीटें जीती हैं उससे कांग्रेस को जीत का रहस्य मिल गया है। बीजेपी को अपनी हार से ज्यादा कांग्रेस को लगातार मिली दूसरी बड़ी जीत और जीत का रास्ता दिख जाने का अफसोस है। इसी की वजह से बीजेपी को आने वाले विधानसभा चुनावों के साथ लोकसभा चुनाव में भी हार का डर सता रहा है।
अगले लोकसभा चुनाव में इन्हीं 9 राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच वर्चस्व की लड़ाई होनी है। कांग्रेस के सामने इन राज्यों में 2009 वाला प्रदर्शन दोहराने की बड़ी चुनौती है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी, हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल और जेजेपी की मौजूदगी उसके समीकरण बिगाड़ रही है। वहीं कर्नाटक में जेडीएस उसकी राह में रोड़े अटका सकती है। अगर इन राज्यों की 145 सीटों में से कांग्रेस 2009 की तरह बीजेपी को आधी सीटों पर हरा देती है तो निश्चित रूप से कांग्रेस अगला लोकसभा चुनाव जीतेगी और उसी के नेतृत्व में केंद्र में अगली सरकार बनेगी। लेकिन अगर वो 2014 और 2019 की तरह बीजेपी के मुकाबले वो पिछड़ गई तो केंद्र की सत्ता हासिल करने का उसका सपना लगातार तीसरी बार चकनाचूर हो जाएगा।
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