राम मंदिर के निर्माण का मुद्दा चुनावी राजनीति में निर्णायक नहीं
होगा, यह बात बीजेपी अनुभव से जानती है। मगर, इसी मुद्दे की बैसाखी ने बीजेपी को
जवान बनाया है, सत्ता तक पहुंचाया है इस बात को भी बीजेपी अच्छी तरह से मानती है। 2024
में सियासत का आग़ाज़ ही राम मंदिर में श्री राम की प्राण प्रतिष्ठा और राम मंदिर
निर्माण से होगा। हिन्दुत्व के अन्य मुद्दों को जोड़ते हुए आक्रामक सियासत की
तैयारी कर ली गयी लगती है।
राम मंदिर निर्माण से पहले बीजेपी यूनीफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी के
मुद्दे को केंद्र में ला रही है। जनसंख्या नियंत्रण कानून भी लाया जाना तय है।
गोरखपुर प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार देने के बाद अब यह तय प्राय लगता है कि जब
राम मंदिर निर्माण के वक्त माहौल भक्तिमय होगा तब वीडी सावरकर के लिए भारत रत्न की
घोषणा कर वैचारिकी के स्तर पर राष्ट्रवाद को भी बीजेपी चुनावी एजेंडे के कोर एरिया
में ले आएगी।
सिर्फ कांग्रेस से नहीं है बीजेपी का मुकाबला
बीजेपी को सिर्फ कांग्रेस का मुकाबला नहीं करना है। एनडीए और यूपीए की
चुनावी लड़ाई से अलग पहली बार बीजेपी को एकजुट विपक्ष का सामना करना होगा। इसलिए
बीजेपी की रणनीति ऐसे मुद्दे उठाने की है जिससे विपक्ष की एकता कमजोर हो या फिर वह
मजबूत न हो सके। यूसीसी और सावरकर को भारत रत्न की पेशकश ऐसे ही मुद्दे हैं जिस पर
कांग्रेस के गिर्द गोलबंदी कमजोर की जा सकती है।
कांग्रेस ने पहली बार भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर बीजेपी से कर्नाटक छीना है। भ्रष्टाचार का मुद्दा कांग्रेस के लिए बड़ा ब्रह्मास्त्र ना साबित हो, इसके लिए बीजेपी ने कांग्रेस के बजाए विपक्ष के अन्य दलों के नेताओं को इस मुद्दे पर लपेटने की रणनीति बना ली है ताकि कांग्रेस की आक्रामकता को कुंद किया जा सके।
बाबरी विध्वंस के बाद हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 8.75% वोटों का फायदा हुआ और वह पहली बार 20 फीसदी से ज्यादा 20.11 फीसदी वोट हासिल करती दिखी। यह सफलता भी एनडीए का सिरमौर होने के नाते मिली और 13 दिन की सरकार अटल बिहारी वाजपेयी ने चलायी। इससे पहले 1989 में बीजेपी के पास 11.36%और 1984 में 7.74% वोट थे।
राम मंदिर का जादू भी खत्म हुआः 1998 और 1999 के आम चुनाव में बीजेपी ने 182-182 सीटें हासिल कीं और क्रमश: 25.59% और 23.75% वोट हासिल किए। इस दौरान 13 महीने और फिर पूरे पांच साल की सरकार चली। राम मंदिर के नाम पर बीजेपी के उत्कर्ष की कहानी का चरम बिन्दु यही है। फिर शुरू हो जाती है बीजेपी की सीटें और वोट गिरने का सिलसिला शुरू हो जाता है। 2004 में बीजेपी को 22.16% और 2009 में 18.80% वोट मिले और सीटें 138 के बाद और घटकर 116 हो गयीं।
बीजेपी ने आत्ममंथन किया। आरएसएस ने इस पर चिंतन किया। सर्वे किए गये।
रिपोर्ट तैयार हुईं। तय हुआ कि राम मंदिर निर्माण के मुद्दे से अलग कुछ करना होगा।
2014 के आम चुनाव के लिए बीजेपी ने जो घोषणापत्र तैयार किया उसमें राम मंदिर का
मुद्दा सबसे आखिर में उल्लेख किया जाने वाला औपचारिक मुद्दा भर था। नया नारा गढ़ा
गया- सबका साथ, सबका विकास। भ्रष्टाचार का मुद्दा कांग्रेस सरकार पर प्रहार के लिए
था तो नया नारा सुनहरे सपनों को गढ़ने के लिए। नतीजा भी मिला। 31.34% वोट लेकर बीजेपी ने पहली बार अपने दम पर मैजिक फिगर हासिल किया। यह
कहानी 2019 में पुलवामा हमले और जवाबी सर्जिकल स्ट्राइक की पृष्ठभूमि में दोहराए
गये।
स्वर्णिम काल में भी बीजेपी 38% वोट से ऊपर नहींगयीः उल्लेखनीय बात यह है कि जब कांग्रेस 1989 में सत्ता से बाहर हुई थी तब कांग्रेस को जितने वोट मिले थे (39.53%) उतने वोट बीजेपी को अपने स्वर्णिम काल 2019 में (37.46%) भी नहीं मिल सके हैं। मोदी ब्रांड आज भी इंदिरा गांधी ब्रांड से बड़ा नहीं हो सका है। इंदिरा गांधी की शहादत के बाद राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को 415 सीटें और 49.01% वोट मिले थे। वहीं इंदिरा गांधी ने 1971 और 1980 में क्रमश: 352 और 351 सीटें जीतीं। इन चुनावों में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने क्रमश: 43.68% और 42.69% वोट हासिल किए।
2014 और 2019 से पहले कांग्रेस को कभी भी बीजेपी से कम वोट नहीं मिले।
बीते दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस न सिर्फ सीटों के ख्याल से बल्कि वोटों के
ख्याल से भी अपने न्यूनमत स्तर पर पहुंच गयी। बीजेपी को कांग्रेस के मुकाबले
तकरीबन दुगुने वोट हासिल है। मगर, बीजेपी और कांग्रेस को मिलाकर जब-जब वोट प्रतिशत
52% से कम हुआ है क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व
राष्ट्रीय राजनीति में देखने को मिला है। चाहे वह 1989 हो या फिर 1996 या फिर
1998. यूपीए के दौर में भी क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व दिखा था।
कांग्रेस के वोट 7-10% भी बढ़े तो हो जाएगा खेला
बीजेपी को अपने वोट बैंक में विस्तार का आधार नज़र नहीं आ रहा है। क्षेत्रीय दल जो बीजेपी के साथ रहे हैं उनका प्रदर्शन ढीला है। ऐसे में अगर कांग्रेस ने 7 से 10 फीसदी वोट की भी बढ़ोतरी हासिल की तो कांग्रेस एक ऐसे विपक्ष का नेतृत्व देने की स्थिति में आ जाएगी जो बीजेपी को सत्ता से बाहर कर सके। इसलिए बीजेपी की चिंता मजबूत होती कांग्रेस भी है और क्षेत्रीय दल भी।
बीजेपी अपनी दक्षिणपंथी सियासत को और मजबूत करते हुए आगे बढ़ रही है
तो इससे उसे कोई नया साथी नहीं मिलने जा रहा है और न ही उसके प्रभाव क्षेत्र का
कोई विस्तार इससे होगा। वह विपक्ष की सियासत में फूट डालने वाले मुद्दों को शुमार
कर जनता को भ्रमित करने की रणनीति पर चल सकती है। इसलिए 2024 के लिए राम मंदिर के
साथ-साथ हिन्दुत्व के मुद्दे और भ्रष्टाचार के बहाने विपक्ष पर हमले उसकी रणनीति
का हिस्सा है।
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