क्या बिहार विधान सभा चुनाव में जातीय समीकरण ही सब कुछ तय करेगा? यह एक बड़ा सवाल है। पन्द्रह साल पहले नीतीश कुमार सुशासन और विकास के नारे के साथ जीत के रथ पर सवार हुए थे। नीतीश ने जो कुछ किया, उसके लिए दस में से पाँच नंबर तो मिल ही जायेंगे। विपक्ष के नेता और नीतीश कुमार के लिए एक मात्र चुनौती तेजस्वी यादव बिहार को इसके आगे ले जाने का मंत्र अभी नहीं दे पाए हैं। 

देश में यह पहला ख़ामोश चुनाव है। रैलियों का शोर नहीं है। जुलूस का ज़ोर नहीं है। प्रचार की रफ़्तार सबसे धीमी है। सोशल और डिजिटल चुनाव प्रचार का दबदबा बढ़ रहा है। बीजेपी और नीतीश इसके लिए तैयार हैं। तेजस्वी को अपना क़ूबत दिखाना है। यह भी तय होना है कि मतदाता जब डर से ख़ामोश रहता है तो रिज़ल्ट क्या होता है।