समझौता एक्सप्रेस बम कांड में असीमानंद के ख़िलाफ़ जाँच एजेंसियों के पास जो सबसे बड़ा सबूत था, वह था अपना अपराध स्वीकार करता हुआ 42 पेज का वह क़बूलनामा जो असीमानंद ने 19 दिसंबर 2010 को हरिद्वार में गिरफ़्तार होने के तुरंत बाद दिया था। गिरफ़्तारी के तुरंत बाद के इस क़बूलनामे में महत्वपूर्ण बात यह थी कि यह पुलिस के सामने नहीं, बल्कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत एक मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया था जो क़ानूनी रूप से पूरी तरह मान्य था। असीमानंद यह भी जानते थे कि इस क़बूलनामे के कारण उन्हें फाँसी की सज़ा हो सकती थी। असीमानंद के वकीलों ने बाद में उनसे कहा भी कि आपके इस क़बूलनामा के बाद हम भी आपको नहीं बचा पाएँगे।