समझौता एक्सप्रेस बम कांड में असीमानंद के ख़िलाफ़ जाँच एजेंसियों के पास जो सबसे बड़ा सबूत था, वह था अपना अपराध स्वीकार करता हुआ 42 पेज का वह क़बूलनामा जो असीमानंद ने 19 दिसंबर 2010 को हरिद्वार में गिरफ़्तार होने के तुरंत बाद दिया था। गिरफ़्तारी के तुरंत बाद के इस क़बूलनामे में महत्वपूर्ण बात यह थी कि यह पुलिस के सामने नहीं, बल्कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत एक मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया था जो क़ानूनी रूप से पूरी तरह मान्य था। असीमानंद यह भी जानते थे कि इस क़बूलनामे के कारण उन्हें फाँसी की सज़ा हो सकती थी। असीमानंद के वकीलों ने बाद में उनसे कहा भी कि आपके इस क़बूलनामा के बाद हम भी आपको नहीं बचा पाएँगे।
समझौता ब्लास्ट, किस्त 2: जज ने कही थी फाँसी की बात
- विश्लेषण
- |
- |
- 30 Mar, 2019

समझौता धमाका मामले में स्वामी असीमानन्द को 'क्लीट चिट' मिल गई है। सरकार अदालत के फ़ैसले को चुनौती नहीं देगी। ऐसा क्यों है कि मोदी सरकार आने के बाद से आतंकवाद से जुड़े कुछ ख़ास मामलों में, जिनमें आरएसएस से जुड़े लोगों के नाम हैं, प्रमुख अभियुक्त बरी हो रहे हैं। 'सत्य हिन्दी' ने इस मामले की गहरी पड़ताल की और लंबी रिपोर्ट तैयार की है। इसकी पहली किस्त प्रकाशित की जा चुकी है और अब पेश है दूसरी किस्त।
नीरेंद्र नागर सत्यहिंदी.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वे नवभारतटाइम्स.कॉम में संपादक और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 35 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वे देश