अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान जिस तेज़ी से आगे बढ़ा और आनन फ़ानन में उसने राजधानी काबुल पर क़ब्ज़ा कर लिया और अफ़ग़ान सेना ने कारगर प्रतिरोध तक नहीं किया, उससे कई सवाल खड़े होते हैं।
लेकिन इससे बड़ा सवाल तो यह है कि वहां से सैनिकों को वापस बुलाने की अमेरिकी योजना में क्या गड़बड़ी हुई कि अफरातफरी मची। अंत में सबकुछ पहले की योजना और अनुमान से अलग हुआ। लेकिन क्यों?
विशेषज्ञों का मोटे तौर पर यह मानना है कि अमेरिकी प्रशासन ने अफ़ग़ानिस्तान से सेना हटाने के मामले में तीन स्तर पर ग़लतियाँ कीं।
अमेरिका ने समय का सही अनुमान नहीं लगाया, अफ़ग़ान सेना कितने समय तक और कितना प्रतिरोध करेगी, यह समझने में उनसे ग़लती हुई और तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को समझने में उनसे भूल हुई।
पेंटागन की बैठक में क्या हुआ?
अमेरिकी पत्रिका 'टाइम' के अनुसार, जो बाइडन प्रशासन ने अफ़ग़ानिस्तान से सेना वापस बुलाने की योजना को अंतिम रूप 24 अप्रैल को दे दिया।राष्ट्रपति ने इसके दो हफ़्ते पहले यह एलान किया था कि अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सेना वापस लौट आएगी।
अमेरिकी अख़बार 'न्यूयॉर्क टाइम्स' के मुताबिक़ 24 अप्रैल को एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन, ज्वाइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ कमेटी के प्रमुख जनरल मार्क मिली, खुफ़िया विभाग के लोग और ह्वाइट हाउस के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ इस बैठक में मौजूद थे। विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़े।
दिलचस्प बात यह है कि उस बैठक में किसी ने लोगों को अफ़ग़ानिस्तान से निकालने की आपातकालीन योजना पर कुछ नहीं कहा, दरअसल किसी के जेहन में यह बात आई ही नहीं कि ऐसा भी हो सकता है।
अनुमान ग़लत साबित हुए
राष्ट्रपति बाइडन के सुरक्षा सलाहकारों का अनुमान था कि तालिबान को पूरे देश पर कब्जा करने में कम से कम 18 महीने का समय लग जाएगा।
24 अप्रैल की इस बैठक के बाद पेंटागन के प्रमुख जनरल मिली ने कहा कि अफ़ग़ान सेना के पास पर्याप्त उपकरण हैं, उन्हें अच्छा प्रशिक्षण दिया गया है और वे किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। किसी ने यह नहीं सोचा था कि अफ़ग़ान सेना तालिबान के आगे बिल्कुल निष्प्रभावी साबित होगी और सामान्य विरोध तक नहीं करेगी।
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दूतावास खुला रखने का फ़ैसला
इस बैठक में काबुल दूतावास को खुला रखे की बात कही गई थी, लेकिन इस बैठक के सिर्फ तीन दिन बाद कहा गया कि अमेरिकी नागरिकों को अफ़ग़ानिस्तान से निकल जाना चाहिए। दूतावास ने 15 मई को एक नोटिस जारी कर सभी अमेरिकी नागरिकों से अफ़ग़ानिस्तान से निकलने को कह दिया।
'न्यूयॉर्क टाइम्स' के अनुसार, अशरफ़ ग़नी हालांकि अमेरिकी सेना की वापसी के एकदम ख़िलाफ़ थे, पर उन्होंने यह बात अपने देश के लोगों से नहीं कही।
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ग़नी की माँग
उन्होंने अमेरिका से कहा कि अफ़ग़ान दुभाषियों को वीज़ा देने में जल्दबाजी न की जाए, ताकि लोगों में यह संकेत न जाए कि अमेरिका छोड़ कर जा रहा है और उसके समर्थकों में अफरातफरी न मचे।
ग़नी ने यह भी कहा था कि अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान को वायु सहायता देता रहे और ज़रूरत पड़ने पर तालिबान के ठिकानों बमबारी करता रहे। बाइडन इस पर राजी हो गए।
अमेरिकी राष्ट्रपति ने ग़नी को आगाह किया कि वे अपने सैनिकों को महत्वपूर्ण ठिकानों पर तैनात करें और उन्हें मजबूत करें। पर अफ़ग़ान राष्ट्रपति ने उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया।
खराब अंत
अमेरिका के खुफ़िया अफ़सरों ने 3 अगस्त को कहा कि अफ़ग़ानिस्तान के ज़िला मुख्यालय एक के बाद एक तालिबान के हाथों जा रहे हैं और अब उन्हें रोकना मुश्किल होगा।
पेंटागन ने 6 अगस्त को कह दिया कि अफ़ग़ानिस्तान की सबसे बुरी स्थिति आ गई है और अब अमेरिका को वहां से अपने लोगों को निकालना चाहिए।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने 11 अगस्त को अपने खुफ़िया प्रमुख से इस मुद्दे पर अंतिम बार विमर्श किया और यह तय पाया गया कि अब वहां से अपने लोगों को निकालने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।
अमेरिकियों को अफ़ग़ानिस्तान से निकालने की प्रक्रिया अगले ही दिन शुरू हो गई। इसके तीन बाद ही काबुल पर तालिबान का नियंत्रण हो गया।
लेकिन अमेरिकी प्रशासन अंत तक यह नहीं मानता रहा कि अशरफ़ ग़नी इस तरह बगैर किसी प्रतिरोध के देश छोड़ कर भाग जाएंगे।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि अशरफ़ ग़नी के इस तरह भाग खड़े होने से ही संकट तेजी से बढ़ा, जिसका अनुमान अमेरिका समेत किसी ने नहीं लगाया था।
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