डोनल्ड ट्रंप के उकसावे पर उनके समर्थकों द्वारा कैपिटल बिल्डिंग में घुस कर हिंसा, तोड़फोड़ और गोलीबारी करने की वजह से अमेरिकी राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए उनके ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पेश कर दिया गया है। हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेन्टेटिव्स में सोमवार को पेश इस प्रस्ताव पर मंगलवार को बहस होगी और उसके बाद इसी सप्ताह मतदान होगा।
उकसावा
बता दें कि ट्रंप ने चुनाव की हार की वजह डेमोक्रेटिक पार्टी की धाँधली बताते हुए इसे खारिज कर दिया है। उन्होंने 6 जनवरी को समर्थकों की एक रैली को संबोधित करते हुए उन्हें उकसाया और कहा कि उनका 'चुनाव चुरा लिया गया है', 'उनकी जीत छीन ली गई है' और वे 'कमज़ोरी से अपने देश को फिर हासिल नहीं कर सकते।'
हिंसा
इसके बाद राष्ट्रपति ने उत्तेजित भीड़ से कहा कि वे कैपिटल बिल्डिंग की ओर कूच करें। इसके बाद उनके सैकड़ों समर्थक कैपिटल बिल्डिंग के घेरे को तोड़ कर अंदर घुस गए, तोड़फोड़ की, गोलियाँ चलाईं, जिसमें एक पुलिस अफ़सर समेत पाँच लोग मारे गए।
डोनल्ड ट्रंप को पद से हटाने की माँग विपक्षी दल डेमोक्रेटिक पार्टी ही नहीं, उनकी रिपब्लिकन पार्टी भी कर रही है। उन्हें हटाने के लिए संविधिान संशोधन 25 का इस्तेमाल करने या महाभियोग चलाने की माँग की जा रही है। बहरहाल, डेमोक्रेट्स सोमवार को प्रतिनिधि सभा में उनके ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पेश करेंगे।
ट्रंप के ख़िलाफ़ दूसरा महाभियोग प्रस्ताव
डोनल्ड ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति होंगे जिनके ख़िलाफ़ दूसरी बार महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा। इसके पहले अपनी ताक़तों का दुरुपयोग करने और कांग्रेस (संसद) को बाधित करने के आरोप में ट्रंप जनवरी 2020 में महाभियोग चलाया गया था। ट्रंप ने महाभियोग की कार्रवाई को पूरी तरह पक्षपातपूर्ण बताया था। सीनेट ने महाभियोग के तहत लगाये गये सभी आरोपों से ट्रंप को दोष मुक्त कर दिया गया है।
सीनेट ने ताक़त के दुरुपयोग के आरोप को 52-48 से जबकि कांग्रेस (संसद) को बाधित करने के आरोप को 53-47 से खारिज कर दिया था।
चौथी बार लाया जाएगा महाभियोग प्रस्ताव
सोमवार को अमेरिकी इतिहास में चौथा मौक़ा होगा जब राष्ट्रपति को हटाने का महाभियोग सीनेट को भेजा जाएगा। ट्रंप के ख़िलाफ़ जनवरी 2020 में महाभियोग चलाया गया था। उनसे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति एंड्रयू जॉनसन के ख़िलाफ़ 1868 में और बिल क्लिंटन के ख़िलाफ़ 1998 में महाभियोग लगाया गया था। अब तक किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा पद से हटाया नहीं जा सका है।
क्या है महाभियोग?
अमेरिकी संसद यानी कांग्रेस के दो सदन होते हैं, सीनेट यानी ऊपरी सदन और हाउस ऑफ़ रीप्रेज़ेन्टेटिव्स यानी निचला सदन। इनकी तुलना हम भारत के राज्यसभा और लोकसभा से कर सकते हैं।
यदि किसी सदस्य को लगता है कि राष्ट्रपति ने अमेरिकी संविधान का उल्लंघन किया है तो वह महाभियोग का प्रस्ताव ला सकता है। धोखाधड़ी, घूसखोरी, जघन्य अपराध या बहुत ही बुरे व्यवहार के आधार पर यह प्रस्ताव लाया जा सकता है।
क्या है प्रक्रिया?
सेनेट में अभियुक्त की सुनवाई होती है। यदि राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ अभियोग लगाया जाता है तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ख़ुद उसकी सुनवाई करते हैं।
यह अदालत में होने वाली सामान्य सुनवाई की तरह ही होती है। इसमें दोनों पक्षों को यह हक़ होता है कि वे गवाह पेश कर सकते हैं, पेश गवाहों से पूछताछ कर सकते हैं, जिरह कर सकते हैं।
यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद सेनेट में इस पर मतदान होता है। यदि सेनेट की बैठक में मौजूद सदस्यों के दो-तिहाई ने इसके पक्ष में वोट कर दिया तो राष्ट्रपति को पद से हटा दिया जाता है।
अब तक क्या हुआ?
अमेरिका के हाउस ऑफ़ रीप्रेज़ेन्टेटिव्स में 1789 से लेकर अब तक 62 बार महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई है। अब तक 19 लोगों के ख़िलाफ़ महाभियोग लगा कर उन्हें पद से हटाया गया है। इसमें 15 फ़ेडरल जज, तीन ज़िला जज और 1 सुप्रीम कोर्ट एसोसिएट जस्टिस रहे हैं।
अब तक तीन बार राष्ट्रपतियों के ख़िलाफ़ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई है, रिचर्ड निक्सन, एंड्रयू जॉन्सन और बिल क्लिटंन।
मामला एंड्र्यू जॉन्सन का
तत्कालीन राष्ट्रपति एंड्र्यू जॉन्सन पर 24 फरवरी 1868 को टेन्योर ऑफ़ ऑफ़िस एक्ट के उल्लंघन का आरोप लगा। इस पर 26 मई 1868 को वोटिंग भी हुई। लेकिन मतदान में प्रस्ताव गिर गया।
रिचर्ड निक्सन का मामला
तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन पर 1973 में आरोप लगाया गया कि उन्होंने क़ानून को अपना काम करने से रोका है, पद का दुरुपयोग किया और कांग्रेस की अवमानना की। हाउस कमिटी ने 30 अक्टूबर, 1973 को जाँच शुरू की। हाउस ऑफ़ रीप्रेज़ेन्टेटिव्स ने महाभियोग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। लेकिन इस वोटिंग के पहले ही 8 अगस्त 1974 को निक्सन ने इस्तीफ़ा दे दिया। इस तरह निक्सन पर महाभियोग लगा, लेकिन उन्होंने प्रक्रिया पूरी होने के पहले ही इस्तीफ़ा दे दिया।
बिल क्लिंटन
तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के ख़िलाफ़ 19 दिसंबर को महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। उन पर अदालत में झूठ बोलने और न्याय प्रक्रिया में रुकावट डालने के आरोप लगे। सेनेट ने 12 फरवरी 1999 को उन्हें इन दोनों ही मामलों में बरी कर दिया।
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