क्या है वुहान भावना?
इस यात्रा का मुख्य मक़सद वुहान में बने सौहार्द्र को आगे बढ़ाना है। बीते साल शी जिनपिंग के न्योते पर मोदी चीनी शहर वुहान गए, दो दिन रहे और दोनों नेताओं में बातचीत हुई। इसमें यह पाया गया कि दोनों देशों के बीच सीधी बातचीत नहीं होने और ग़लतफ़हमी होने की वजह से डोकलाम जैसा संकट खड़ा हुआ था।वुहान से महाबलीपुरम!
इस वुहान भावना को बढ़ाने के लिए महाबलीपुरम बैठक रखी गई है। पर शी जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा से इसमें गड़बड़ी हुई। उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान में जो कुछ कहा, वह बीजिंग की आधिकारिक नीति के अनुकूल है। यह चीन की साफ़ नीति है कि उसे पाकिस्तान को समर्थन करते रहना है। इसके पीछे चीन के आर्थिक हित तो हैं ही, पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति और बदलती अंतरराष्ट्रीय राजनीति भी है।चीन के लिए पाकिस्तान बेहद अहम इसलिए है कि वह चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा बना रहा है, जिस पर उसे लगभग 60 अरब डॉलर खर्च करने हैं। इस गलियारे के बन जाने से चीनी प्रांत शिनजियांग सीधे अरब सागर के तट पर बसे ग्वादर बंदरगाह से जुड़ जाएगा।
पाकिस्तान का महत्व
यह पाकिस्तान के बलोचिस्तान में है। ग्वादर बंदरगाह से चीन अपने उत्पाद पूरी दुनिया में बेच सकता है। दूसरे, आर्थिक गलियारे को बढ़ा कर पाकिस्तान केंद्रीय एशिया के देश होते हुए यूरोप तक पहुँच सकता है। यदि वह इस सड़क को तैयार करने में कामयाब होता है यूरोपीय बाज़ार तक उसकी पहुँच आसान और सस्ती हो जाएगी।ग्वादर और हम्बनटोटा
ग्वादर का सामरिक महत्व आर्थिक उपयोग से भी ज़्यादा है। यदि ग्वादर पर चीनी विमानवाहक पोत खड़े कर दिए जाएँ तो चीन पूरे हिन्द महासागर पर नज़र रख सकेगा। वह भारत की घेराबंद तो कर ही लेगा, अफ्रीका महाद्वीप के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण कर सकेगा। यह ख़तरा भारत से ज़्यादा अमेरिका को है। ग्वादर से थोड़ी ही दूर पर बसा है श्रीलंका का हम्बनटोटा। यह बंदरगाह भारतीय जल सीमा से बस कुछ नॉटिकल माइल पर बसा हुआ है। चीन ने इसे कोलंबो की मदद करने के नाम पर तैयार किया, पर बाद में इस पर लगे 8 अरब डॉलर माँग लिए। इतने पैसे देने में नाकाम श्रीलंका ने चीन को यह बंदरगाह 99 साल की लीज़ पर दे दिया है।पाकिस्तान के ग्वादर और श्रीलंका के हम्बनटोटा के ज़रिए पूरे हिंद महासागर पर चीन का कब्जा हो सकता है। चीन डिएगो गर्सिया समेत पूरे हिन्द महासागर में कहीं भी अमेरिकी नौसैनिक अड्डे की निगरानी कर सकता है और ज़रूरत पड़ने पर नाकेबंदी भी।
बड़े काम का पाक
रूस के पराभव के बाद जो विश्व राजनीति बनी है, अकेला चीन ही अमेरिका को रोक सकता है और वह रोकेगा। इसमें पाकिस्तान उसके बड़े काम का देश है। ऐसे में पाकिस्तान का समर्थन करना चीन की मजबूरी है और रणनीति भी। उसकी नज़र भारत नहीं अमेरिका पर है। यही वजह है कि चीन ने पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़े चीन की मदद करने के लिए कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाया।
भारत का बाज़ार
चीन की दिलचस्पी भारत में इसलिए भी बढ़ रही है कि अमेरिका से उसका व्यापार युद्ध कम से कम दो साल तक नहीं रुक सकता। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव 2020 के नवंबर में होगा। राष्ट्रपति ने जिस तरह का उग्र राष्ट्रवाद खड़ा किया है और 'अमेरिका फर्स्ट' का नारा दिया है, उस वजह से वह चीन को कोई रियायत दे ही नहीं सकते। उसके बाद भी स्थिति बहुत ज़्यादा नहीं बदलेगी, क्योंकि अमेरिकी उत्पाद चीन की बराबरी नहीं कर सकते।ऐसे में भारत की 130 करोड़ जनसंख्या के बाज़ार पर चीन की निगाहें टिकी हुई हैं। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने संयुक्त राष्ट्र में अकारण ही नहीं कहा था कि भारत के 130 करोड़ लोगों के बाज़ार की वजह से कोई दिल्ली के ख़िलाफ़ मुँह नहीं खोलता है।
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